फाख्ता का घर-परिवार - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

शनिवार, 18 मई 2013

फाख्ता का घर-परिवार

कभी जब घर आँगन, खेतिहर जमीनों में, धूल भरी राहों में, जंगल की पगडंडियों में भोली-भाली शांत दिखने वाली फाख्ता (पंडुकी) भोजन की जुगत में कहीं नजर आती तो उस पर नजर टिक जाती। उसकी भोलेपन से भरी प्यारी सूरत देखकर उसे पकड़कर अपने पास रखने को मन मचल उठता तो उसके पीछे-पीछे दबे पांव चल देते। वह भी हमें पास आता देख मुड़-मुड़ कर टुक-टुक-टुक कर दाना चुगते हुए तेजी से आगे बढ़ जाती। इससे पहले कि हम उसके करीब पहुंचकर झपट्टा मारकर उसे पकड़ने की नाकाम कोशिश करते, वह फर-फर कर उड़ान भरकर जैसे यह कहते हुए फुर्र हो जाती कि- "फिर कभी संग चलूंगी तुम्हारे! जरा अभी दाना-पानी में व्यस्त हूँ।"
         आज 30 बरस बाद जब घर की खिड़की से लटके टीवी एन्टिना पर फाख्ता का घरौंदा देख रही हूं तो मन खुशी से आश्चर्यचकित है। अभी साल भर ही तो हुआ है हमें अपने इस नए घर में रहते हुए, लेकिन इस दौरान तीन बार उसी एक ही घौंसले में फाख्ता ने भी अपना घर परिवार बसा लिया है। अभी दो बार फाख्ता के चार बच्चों को पलते-बढ़ते देखना मुझे और मेरे परिवार को बहुत सुखकर लगा। अब तीसरी बार फिर जब उसी घरौंदे में उसे 2 सफेद झक अंडों को सेंकती देख रही हूं तो एक अचरज भरी खुशी से झूम उठती हूं कि निश्चित ही उसे भी मेरे घर के पास रहना सुरक्षित लगता होगा!  मेरे घर के सदस्यों में उसे कुछ तो अपनापन झलकता होगा  तभी तो वह भी बेफिक्र होकर मेरे घर के एक हिस्से पर  अधिकार भाव से अपना घर-परिवार बसाती चली आ रही है।  
          जब कभी छुट्टी के दिन भरी दोपहरी में एक साथ 2-3 फाख्ताओं की "टुटरू की टुर्र-टुर्र टुर्र-टुर्र" सी   प्यारी ममता भरी आवाज मेरे कानों में गूंजती है तो मुझे आभास होता है जैसे मैं गर्मियों के दिन जंगल में कहीं छोटे-छोटे झबरीले-रौबीले चीड़ की छांव में आराम से बैठी उसकी टहनियों में छिप कर बैठी फाख्ताओं (स्थानीय बोली में घुघुता-घुघती) की धुन में रमी हुई हूँ। उनकी लरजती -खनकती ममतामयी बोली में मुझे अपना वह  प्रिय लोकगीत याद आने लगता है जिसमें मायके से दूर ससुराल में रह रही कोई नई नवेली दुल्हन व्याकुलतावश मायके को याद कर अपना दुःखड़ा फाख्ता को सुनाने बैठ जाती है- 
  "ना बांस घुघती चैत की, खुद लगी च मां मैत की।"
     .............................................................
 "घुघुती घुरौण लैगे मेरा मैत की, बौडि़-बौडि़ ऐगे ऋतु चैत की"
आजकल जब ऑफिस  निकलती हूँ तो बच्चों को नानी के घर छोड़ आती हूँ। पहले तो उन्हें मौसी का घर अच्छा लगता था लेकिन जैसे ही स्कूल की छुट्टियाँ लगी उनको नानी का घर कुछ ज्यादा ही प्यारा लगने लगा और लगे  भी क्यों नहीं आखिर वहाँ उन्हें नानी के लाड़ दुलार के साथ-साथ अच्छी-अच्छी चीजें खाने-पीने को तो मिलती ही हैं साथ ही टीवी पर अपनी पंसद का कार्टून देखने,  कम्प्यूटर पर इंटरनेट में नये-नये गेम खेलने का मुफ्त में लायसेंस जो मिल जाता है!  मैं जब ऑफिस में होती हूँ तो दिन में एक-दो बार जरूर फोन लगाकर हाल-चाल पूछकर बच्चों की चिन्ता से मुक्त हो लेती हूँ लेकिन इस बीच आंखों में घर के एन्टिना पर बड़ी शांतिपूर्वक घौंसले में बैठी मासूम फाख्ता अंडों को सेंकती नजर आने लगती है। इसी चिन्ता में मैं कभी-कभी भगवान से प्रार्थना करने बैठ जाती हूँ कि वह उन्हें सपरिवार सलामत रखे और जब अंडों से बच्चे बाहर निकल आयें तो उन्हें भी जल्दी से बड़ा कर दें, ताकि वे हमेशा मेरे बगीचे, घर-आंगन में रहकर मेरे करीबी बने रहें। इसी सोच विचार के चलते जब शाम को बच्चों को लेकर जैसे ही घर पहुंचती हूँ  तो घर का ताला बाद में खोलती हूँ पहले फाख्ता का घर परिवार देख चिन्ता मुक्त हो लेती हूँ।
जब-जब मैं उसे बड़ी आत्मीयता से देखती हूँ तब-तब मुझे महसूस होता है जैसे वह भी उसी तन्मयता से मुझे अपनी प्यारी ममता भरी मासूम नजर से निहार रही है, जिसे देख मेरा मन आत्मविभोर हो उठता है और इससे मेरे घर में एक खुशी की लहर दौड़ने लगती है।
        ...कविता रावत


 

56 टिप्‍पणियां:

अन्तर सोहिल ने कहा…

ममता की एक ही परिभाषा है हर शिशु के लिये चाहे मां किसी भी रुप में हो मानव हो या जीव

प्रणाम स्वीकार करें

vijay ने कहा…

कभी हम भी गाँव में गर्मियों में जब गाय चराने जाते थे तो दिन में पेड़ों में टहनियों में बैठी अपनी ही धुन में आंख बंद करके गाती हुयी फाख्ता को बहुत देर तक सुनते रहते थे उस समय बचपना में उसके छोटे छोटे बच्चों को अपने हाथों में पकड़ना बहुत अच्छा लगता था ....
मासूम फाख्ता जैसे सजीव लेखन के लिए धन्यवाद शब्द कम है फिर भी ...

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी
क्या बात

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी
क्या बात

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,सादर आभार.

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बढ़िया कहानी !

latest post वटवृक्ष
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

चित्रण मार्मिक बन चला है। एक यह भी सोचने का विषय है कि आज इंसानों ने इनके लिए घर बसाने की प्रयाप्त जगह भी नहीं बाकी रखी और इन पक्षियों को एंटीना का सहारा लेना पद रहा है !

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

बहुत सुन्‍दर अनुभव घुघूतियों को अपने घर में घर बना कर रहते हुए देखने का।

Surya ने कहा…

फाख्ता के पलते-बढ़ते घर-परिवार पर इतना सुन्दर वृत्तचित्र पहले बार देख रहा हूँ............................ बहुत सुदंर ...दोनों तरफ ममता का रूप ........... बहुत बहुत बधाई!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मूक पंछी भो तो प्यार के प्यासे होते हैं बच्चों की तरह ...
अपनी समझ अनुसार पंछी समझ जाते हैं की कहां वो सुरक्षित हैं ... कहां ममता की छाँव है ...
सुन्दर भाव मय पोस्ट ...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

मनोभावों का बहुत ही सजीव चित्रण किया है आपने, व्यक्ति सरल हृदय हो तो पक्षियों के मनोभावों को समझना बहुत आसान हो जाता है, वो क्या कहते हैं? क्या चाहते हैं यह सहज ही बोधगम्य होने लगता है, बहुत सुंदर आलेख.

रामराम.

Maheshwari kaneri ने कहा…

घुघूती न बासा ,,आम की डाली म घुघूती न बासा.. घुघूती का जिग्र आने पर ये गीत याद आगया..जो मेरी बेटी बचपन में बहुत गाती थी..बहुत सुंदर आलेख.

Aditi Poonam ने कहा…

भावभीनी ,ममतामयी अभिव्यक्ति कविता जी .....बहुत सुंदर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नवजात से सक्षम बनाने तक में माँ का योगदान अप्रतिम है।

Kailash Sharma ने कहा…

माँ की ममता सभी में समान है...बहुत सुंदर भाव भीनी प्रस्तुति...

Ranjana verma ने कहा…

आपकी रचना आत्मीयता से भरपूर बहुत सुंदर....

संध्या शर्मा ने कहा…

ममता भरा ह्रदय ही ममता की भाषा समझ सकता है... बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

maa mamta wo lafz hai jise kisi shabdo me vyaqt nhi kiya ja sakta...
aapki jitni tarif kroo km hai...waaah waaah bhot khub bhot khub

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संभालिए महा ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बहुत सुन्दर ममतामयी प्रस्तुति।
लेकिन इस पक्षी के नामों से हम परिचित नहीं।
क्या दिल्ली में पाए जाते हैं ?

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत प्यारी पोस्ट...
कोमल से भाव लिए अभिव्यक्ति...

अनु

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,सादर आभार कविता जी।

Unknown ने कहा…

aaj kal to sharo me nahi dikhte hain....

अरुणा ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

Ramakant Singh ने कहा…

कोमल भाव लिए आपका पक्षी प्रेम मन को आल्हादित कर गया गया ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

ये भी अपना एक अलग संसार बुनते रहते हैं

Ankur Jain ने कहा…

सुंदर, भावपूर्ण पोस्ट...

RAJ ने कहा…

हम भी घुघुता-घुघती का घुरून अपने उत्तराखंड की पहाड़ियों में खूब सुना करते थे ..अब पूछों नहीं शहर में कहीं मिल जाय तो फिर तो गाँव की याद आणि हैं खुशकिस्मत हैं जी आप जो घुघती आपके घर बस गयी हैं ....एक और गीत जो मुझे आज भी बहुत अच्छा लगता है ................
मेरी प्यारी घुघूती जैली,मेरु माजी कु रैबार लैली

अभिमन्‍यु भारद्वाज ने कहा…

बहुत सुन्‍दर लेख पुराने दिनों की याद आ गयी आभार
हिन्‍दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्‍त करने के लिये एक बार अवश्‍य पधारें और टिप्‍पणी के रूप में मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ साथ पर अनुसरण कर अनुग्रहित करें MY BIG GUIDE

नई पोस्‍ट एक अलग अंदाज में गूगल प्‍लस के द्वारा फोटो दें नया लुक

Dr. Sanjay ने कहा…

It portrays the unique gifts of nature are rare elsewhere!

Hearty congratulations!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

मन में प्रेम हो तो घर और आस पास में पूरी दुनियाँ अपनी और खुबसूरत नजर आती है.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

मन में प्रेम हो तो घर और आस पास में पूरी दुनियाँ अपनी और खुबसूरत नजर आती है.

Unknown ने कहा…

super!

तेजवानी गिरधर ने कहा…

अति सुंदर

kshama ने कहा…

Tasveeron ke saath likha ye aalekh ek alaghee duniyame le gaya!Behad sundar!

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत अच्छा लगा. मैं स्वयं भी आनंदित हुआ तब आप लोगों की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है. हम भी भोपाल में ही रहते हैं परन्तु अभी चेन्नई में होने के कारण मजबूर हूँ. अन्यथा आपसे पता पूछ कर देखने आ गया होता.

pratibha ने कहा…

मेरा तो मन मचल रहा है फाख्ता को देखने को ...

Vandana Ramasingh ने कहा…

रूड़की में यह गीत सुना था ...फाख्ता के साथ वो भी याद आगया

Meenakshi ने कहा…

so cute dove!!!!!!!!!!!!!!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

मेरे छत की मुंडेर पर बेला की लतर फैल गई है। एक दिन शाम को देखा एक फाख्ता ने वहाँ घोंसला बना रखा है और चुपचाप बैठी है। पास गया तो वह उड़ गई। ध्यान से देखा तो वहाँ दो अंडे दिखाई दिये। तब जाकर होश आया कि वो तो अंडे से रही थी!मैने सुना है चि़ड़ियों के अंडे नहीं छूने चाहिए वरना फिर चिड़िया पास नहीं आती। डर कर हट गया। दो चार दिन तक छत पर गया ही नहीं। फिर एक दिन देखा वहाँ सिर्फ खाली घोंसला था। न अंडे दिखे न अंडे कि छिलके। पता नहीं क्या हुआ होगा! कहीं बिल्ली तो नहीं खा गई!!! कई दिन तक परेशान रहा फिर भूल गया। आज आपकी इस पोस्ट को पढ़कर वही सब फिर से याद आ गया।

आनन्द विक्रम त्रिपाठी ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी ,सुंदर अभिव्यक्ति के साथ |

Satish Saxena ने कहा…

बधाई आपको ...

Sonu ने कहा…

मेरु पहाड़े कि घुघती ल भोपाल म भ अपुरु घर बसायल
भलु लागुदु भलु लागुदु भलु लागुदु

Sushil Bakliwal ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...
कविताजी आप रावत हैं और भोपाल में भी हैं । क्या श्री कैलाश रावत आपके श्वसुर हैं या इन्दौर के मल्हारगंज में निवासित दिलीप रावत आपकी रिश्तेदारी में हैं ? दिलीप रावत मेरे बचपन के अभिन्न मित्रों में से एक हैं और न सिर्फ हम अक्सर मिल लेते हैं, इनके साथ पिछले वर्ष सोशल ग्रुप के साथ पारिवारिक रुप से नेपाल यात्रा का संयोग भी बना था ।

रचना दीक्षित ने कहा…

मुझे तो पढकर ही मज़ा आ गया.

Rachana ने कहा…

sunder prastuti kamal ka likha hai padh kar aanand aaya
rachana

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

अभी लखनऊ में हमारे घर शाम को फाख्ता का एक बच्चा जाल से अंदर आ गया, फिर निकल नहीं पाया, सुबह मैने उसे पकड़ा, वो भी मेरी हथेलियों में सुरक्षित महसूस कर बैठा रहा और पांच मिनट तक मैं उसे लिए लॉन में खड़ी रही और फिर वो उड़कर तार पर बैठ गया....पर बहुत प्यारा एहसास था....

Vijay ने कहा…

very lovely post!!!

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

शहरों से विलुप्त हो गई है फाख्ता | कभी बचपन में देखा करता था इसको अपने घर की मुंडेरों पर | पर अब नहीं | बढ़िया, भावपूर्ण पोस्ट कविता |

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Arvind Mishra ने कहा…

पेंडुकी ब्लॉग जगत की प्रिय पक्षी बन गयी है

prritiy----sneh ने कहा…

ghughuti na basa aam ki dali ma ghughuti na basa....

sunder vivran diya hai, aapke prakriti prem ke liye aapko naman.

shubhkamnayen

Rahul Singh ने कहा…

मन मोह लेने वाली फाख्‍ता, हमारी भी पड़ोसी रही.

Randhir Singh Suman ने कहा…

फाख्ता-thanks-nice

Harish Harry ने कहा…

बहुत ही सुन्दर...लिखते रहें.

Unknown ने कहा…

मेरे घर के टावर में भी एक साल में दूसरी बार अंड़े दिए है, पहली बार उन्होंने एक कागज के लैम्प में अंडे दिए थे जो गिर से टूट गए थे|

इस अलमारी पर दिए हैं, एक सप्ताह से देख रहा हूँ कि वह वही बैठी हुई है पता नही भूखी प्यासी रह कर अंड़ो को सह रही है|

chayan tutorials ने कहा…

this is very nice website www.chayantutorials.com