
पल-पल पलटति भेष, छनिक छवि छिनछिन धारति।
विहरित विविध विलासमयी, जीवन के मद सनी,
ललकती, किलकति पुलकति, निरखति थिरकति बनि ठनी।“
जम्मू की पहाड़ी वादियों में डेढ़-दो घंटे डूबते-उतरते हुए हम कब कटरा पहुँच गए, इसका भान न हुआ। कटरा पहुँच कर वहाँ दो कमरे किराये पर लेने के बाद सभी नहा-धो और खाने-पीने के बाद शाम 5 बजे वैष्णों देवी दर्शन के लिए चल पड़े।
आते-जाते भक्तों के साथ हमने बड़े उत्साहपूर्वक ‘जय माता दी’ के स्वर में स्वर मिलाया और बाण गंगा होते हुए धीरे-धीरे चरण पादुका और आदिकुमारी की चढ़ाई चढ़नी आरम्भ की। कभी घुमावदार तो कभी सीढ़ीनुमा रास्ते से हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते चले। हम शहर में रच-बस चुके बड़े सदस्य तो थोड़ी चढ़ाई चढ़ते ही थककर बार-बार जहाँ-कहीं आराम करने बैठ जाते, लेकिन बच्चों का उत्साह देखकर मन को बड़ी राहत मिली। वे ‘जय माता दी’ का उद्घोष करते हुए हरदम हमसे चार कदम आगे बढ़ते रहे। उनका जोश बरकरार रखने के लिए उनकी मनपंसद चीजें जैसे- चाकलेट, चिप्स, बिस्कुट आदि खिलाना-पिलाना थोड़ा महंगा जरूर लग रहा था लेकिन कुल जमा यह पिट्ठू, घोड़े-खच्चर, पालकी, हेलिकाॅप्टर के खर्च के आगे नगण्य रहा। हमारे शरीर में एक तरफ चाय-काॅफी पीने से फुर्ती आ रही थी तो दूसरी तरफ अपने परिवार के भरण-पोषण के वास्ते अपने कंधों पर पालकी उठाये बिना विश्राम किए तेजी से कदमताल करते हुए चुपचाप श्रद्धालुओं को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाले मजदूरों, घोड़े-खच्चरों में लदे लोगों को तेजी से हाँककर ले जाने वालों, तेल मालिश करने वालों और एक आध किलोमीटर की दूरी पर ढोल बजाने वालों को सोच-विचारने पर थके-हारे पैरों में जान आ रही थी। इसके साथ मैं समझती हूँ कि पारिवारिक सदस्यों के साथ पैदल मिलजुल कर, एक दूसरे को सहारा देते हुए माँ वैष्णों देवी की यात्रा करने में जो आनंद है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
आते-जाते भक्तों के साथ हमने बड़े उत्साहपूर्वक ‘जय माता दी’ के स्वर में स्वर मिलाया और बाण गंगा होते हुए धीरे-धीरे चरण पादुका और आदिकुमारी की चढ़ाई चढ़नी आरम्भ की। कभी घुमावदार तो कभी सीढ़ीनुमा रास्ते से हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते चले। हम शहर में रच-बस चुके बड़े सदस्य तो थोड़ी चढ़ाई चढ़ते ही थककर बार-बार जहाँ-कहीं आराम करने बैठ जाते, लेकिन बच्चों का उत्साह देखकर मन को बड़ी राहत मिली। वे ‘जय माता दी’ का उद्घोष करते हुए हरदम हमसे चार कदम आगे बढ़ते रहे। उनका जोश बरकरार रखने के लिए उनकी मनपंसद चीजें जैसे- चाकलेट, चिप्स, बिस्कुट आदि खिलाना-पिलाना थोड़ा महंगा जरूर लग रहा था लेकिन कुल जमा यह पिट्ठू, घोड़े-खच्चर, पालकी, हेलिकाॅप्टर के खर्च के आगे नगण्य रहा। हमारे शरीर में एक तरफ चाय-काॅफी पीने से फुर्ती आ रही थी तो दूसरी तरफ अपने परिवार के भरण-पोषण के वास्ते अपने कंधों पर पालकी उठाये बिना विश्राम किए तेजी से कदमताल करते हुए चुपचाप श्रद्धालुओं को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाले मजदूरों, घोड़े-खच्चरों में लदे लोगों को तेजी से हाँककर ले जाने वालों, तेल मालिश करने वालों और एक आध किलोमीटर की दूरी पर ढोल बजाने वालों को सोच-विचारने पर थके-हारे पैरों में जान आ रही थी। इसके साथ मैं समझती हूँ कि पारिवारिक सदस्यों के साथ पैदल मिलजुल कर, एक दूसरे को सहारा देते हुए माँ वैष्णों देवी की यात्रा करने में जो आनंद है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
रात्रि लगभग 9 बजे आदिकुमारी पहुंचकर गुफा मंदिर दर्शन कर होटल में खाने-पीने और थोड़ा सुस्ताने के बाद हमने लगभग 11 बजे 'भवन' की यात्रा आरम्भ की। दुर्गम पहाड़ी रास्ते में अभूतपूर्व जन सुविधाओं जैसे- जगह-जगह यात्रियों की सुविधा के लिए शेड, पीने के लिए स्वच्छ पानी, टायलेट, बिजली की चौबीस घंटे निर्बाध आपूर्ति देखकर 12-13 वर्ष पहले और आज के समय में बहुत बड़ा सुनहरा परिवर्तन देखने को मिला तो यह मन खुशी से खिल उठा। चलते-चलते एक बारगी भी नहीं लगा कि हम जिस समतल राह पर आसानी से चल रहे हैं, वह कोई दुर्गम पहाड़ी है। हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बीच-बीच में जितनी बार विश्राम करतेे, उतनी बार पहाड़ों के झुरमुट से तलहटी स्थित लाखों सितारों जैसे जगमगाते कटरा की खूबसूरती को देखना नहीं भूलते। यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक वह हमारी आँखों से ओझल न हुआ।
माँ के दरबार के करीब पहुंचते ही ‘जय माता दी’ की सुमधुर गूंज कानों में पड़ी तो माँ के दर्शनों की तीव्र उत्कण्ठा के चलते हमारे कदम तेजी से उस ओर बढ़ चले। यहाँ यात्रियों का परस्पर प्रेम देखकर लगा जैसे यही स्वर्ग है। सुगमतापूर्वक माँ के दर्शन हुए तो मन को असीम शांति मिली। धर्मशाला में 3-4 घंटे आराम करने के उपरांत हमने सुबह-सवेरे एक बार फिर भैरवनाथ के दर्शनों के लिए चढ़ाई चढ़कर उस पर फतह पायी। माँ के सुनहरे भवन और प्राकृतिक सौंदर्य में गोते लगाते हुए जब हमने भैरोनाथ के दर्शन किए तो यात्रा पूरी होने पर मन को बड़ा सुकून मिला। थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद हम आदिकुमारी होते हुए कटरा के लिए निकल पड़े। आदिकुमारी पहुंचकर थोड़ा खा-पीकर और सुस्ताने के बाद हमने कटरा की राह पकड़ी।

...कविता रावत