परीक्षा के दिन - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

परीक्षा के दिन

इन दिनों बच्चों की परीक्षा से ज्यादा अपनी परीक्षा चल रही है। घर पर परीक्षा का भूत सवार हो रखा है, जिसने पूरे परिवार की रातों की नींद, दिन की भूख गायब कर दी है। न टीवी सीरियल, कार्टून फिल्मों का हो-हल्ला न कम्प्यूटर में बच्चों के गेम्स की धूड़-धाड़ सुनाई दे रही है। शादी-ब्याह, पार्टियाँ, खेल-तमाशे सब बन्द हैं। बच्चे जब छोटी कक्षाओं में होते हैं तो उनकी परीक्षा की तैयारियाँ कराने में नानी याद आने लगती है। अब पहले जैसा समय तो रहा नहीं कि माँ-बाप और परीक्षा के डर से बच्चे चुपचाप हनुमान चालीसा की तरह "सभय हृदयं बिनवति जेहि तेही" की तर्ज पर घोटा लगाने बैठ गए। आजकल के बच्चों को न माँ-बाप न परीक्षा का भय लगता है, वे नहीं जानते कि परीक्षा और भय में चोली-दामन का साथ है। बिना भय के परीक्षा का अस्तित्व नहीं और बिना परीक्षा भय का निदान नहीं होता। इस प्रसंग में रामचन्द्र शुक्ल जी कहना है- "किसी आती हुई आपदा की भावना या दुःख के कारण के साक्षात्कार से जो एक प्रकार का आवेगपूर्ण अथवा स्तम्भकारक मनोविकार होता है, उसी को भय कहते हैं।"
        परीक्षा देते समय आत्मविश्वास बनाए रखना, जो कुछ पढ़ा, रट्टा, समझा है, उस पर भरोसा रखना, परीक्षा में बैठने से पहले मन को शांत रखना, प्रश्न पत्र को ध्यान से पढ़ना और जो प्रश्न अच्छे से आता हो, उसका उत्तर पहले लिखना और बाद में कठिन प्रश्नों पर विचार कर सोच समझकर लिखना आदि कई बातें  बच्चों को हर दिन समझाते-बुझाते मन में अजीब से उकताहट होने लगती है। यह जानते हुए भी कि परीक्षा मात्र संयोग है, प्रश्न-पत्र अनिश्चित और अविश्वसनीय लाटरी है। परीक्षक प्रश्न पत्र के माध्यम से उनके भाग्य के साथ कैसा क्रूर परिहास करेगा, कितना पढ़ा हुआ कंठस्थ किया हुआ परीक्षा में आयेगा, यह अनिश्चित है, फिर भी संभावित प्रश्नों के उत्तर बच्चों को मुगली घुट्टी की तरह पिलाने में जुटी हुई हूँ। 
       "हेम्नः संलक्ष्यते ह्यगनौ विशुद्धिः श्यामिकापि वा" अर्थात सोने की शुद्धि अग्नि में ही देखी जाती है। संभवजातक में कहा गया है- "जवेन वाजिं जानन्ति बलिवद्दं च वाहिए। दोहेन धेनुं जानन्ति भासमानं च पंडितम्।।" अर्थात वेग से अच्छे घोडे़ का, भार ढ़ोने के सामथ्र्य से अच्छे बैल का, दुहने से अच्छी गाय का और भाषण से पंडित के ज्ञान का पता लगता है।
       शिक्षक सबको एक समान पढ़ाता है लेकिन योग्यता क्रम निर्धारण करने के लिए परीक्षा माध्यम अपनाना पड़ता है। इसी आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि स्थानों के निर्णय का निर्धारण होता है। जिन्दगी में मनुष्य को भी विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं के दौर से गुजरना पड़ता है। जिस प्रकार हमारे शरीर की पांचों उंगलियां समान नहीं होती, उसी प्रकार गुण, योग्यता और सामर्थ्य की दृष्टि से हर मनुष्य में अंतर है। उसके ज्ञान, विवेक और कर्मठता में अंतर है। व्यक्ति विशेष में कार्य विशेष के गुण हैं या नहीं, पद की प्रामाणिकता और व्यवस्था का सामर्थ्य है या नहीं, इसकी जानकारी के लिए परीक्षा ही एक मात्र साधन है। परीक्षा से पद के अनुकूल उनकी योग्यता, विशेषता, शालीनता, शिष्टता की जांच करके क्रम निर्धारित होता है। कालिदास जी कहते हैं-
        "अनिर्वेदं च दाक्ष्यं च मनसश्चापराजयम्"  अर्थात् अभीष्ट सफलता के लिए उत्साह, सामर्थ्य और मन में हिम्मत जरूरी है। इसी सबक को याद कर आॅफिस-घर के बीच तालमेल बिठाते हुए घर से परीक्षा का भूत निकाल बाहर करने की जुगत में दिन-रात कैसे बीत रहे हैं, कुछ पता नहीं है।
       ...कविता रावत