रावण वध देखने के उत्साह में उड़ जाती थी नींद - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

रावण वध देखने के उत्साह में उड़ जाती थी नींद

सभी पाठकों को विजयादशमी की हार्दिक मंगलकामनाएं




28 टिप्‍पणियां:

L.S. Bisht ने कहा…

कविता जी बधाई । किसी भी लेख/फीचर के प्रकाशित होने का अपना ही आनंद है । इससे यह अधिक पाठकों तक पहुंचता है । दशहरे की उन यादों पर अच्छा लिखा है आपने ।

5th pillar corruption killer ने कहा…

bahut badhiya likhti hain aap !! bachpan ki yaaden taza ho gayin ji !

RAJ ने कहा…

गांव की रामलीला जिसने एक बार देखी हो वह कभी नहीं भूल सकता.........पढ़ते पढ़ते यादों में खो गए हम और पहुँच गयी उस दौर में ................
दशहरा की शुभकामना ...

Unknown ने कहा…

बचपन में जब भी रामलीला होती हम बच्चे में आपस में खूब चर्चे करते स्कूल में, घर में ...यहाँ तक की रात को सपने में वही सीन दिखाई देते ......

vijay ने कहा…

रामलीला के बारे में पढ़कर मजा आ गया ..........................

हर साल रावण को जलाकर हम ख़ुशी मानते हैं और समझ बैठते हैं की हमने बुराई का अंत किया है, परन्तु रावण के अवगुणों पर ईमानदारी से गौर करते हुए आत्ममंथन किया जाय तो हम पाते हैं ये सभी बुराईयां तो हमारे अंदर भी हैं। जीवन में कितने ही अवसर पर हमारे अंदर छिपा रावण चुपके से अपना कमाल दिखा जाता है।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता जी, लेख प्रकाशित होने पर बहुत बहुत बधाई।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

कविता जी, लेख प्रकाशित होने पर बहुत बहुत बधाई।

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर .विजयादशमी की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट : बीते न रैन

जमशेद आज़मी ने कहा…

सही कहा। सभी को दशहरे के मेले में जाने का इंतजार रहता है। खासकर बच्‍चों के लिए रावण वध कौतूहल का विषय होता है।

Mamta ने कहा…

रावण के बिना रामलीला अधूरी है
जोरदार पोस्ट ...
दशहरा की बधाई हो

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने, प्रकाशन की बधाई। दशहरे की शुभकामनाएँ।

Pallavi saxena ने कहा…

मैंने कभी गाँव का दशहरा तो नहीं देखा। मगर आपने अपने बचपन की इस खूबसूरत याद को जिस तरह से यहाँ बखूबी उकेरा है उसके के लिए आपको धन्यवाद एवं बधाई।

Surya ने कहा…

हम भी डूब गए अपनी गांव की रामलीला में...................
जय जय सियाराम!
जय हनुमान!

DP ने कहा…

बधाई कविता जी ! आपकी लेखनी यूँ ही अखबारो की शोभा बढाती रहे ! शुभकामनाये :-)

जसवंत लोधी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ।Seetamni. blogspot. in

Kailash Sharma ने कहा…

बचपन के दशहरे की यादें ताज़ा कर दीं. बहुत सुन्दर और रोचक आलेख...शुभकामनाएं!

Rajendra kumar ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

अब तो रामलीलाऔ मे भी वह आनन्द नही, जिसकी ऐसी प्रतीक्षा की जाय।

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

दशहरे के मेले का तो आज भी बेसब्री से इंतजार रहता है..क्योंकि मेलों में आज भी दीखते हैं...वाही प्यारे खिलौने...गर्म जलेबियाँ....खट्टी चाट की दुकानें और उत्साही लोग...मेले अ का तो अपना अलग ही आनंद है।

Harshvardhan ने कहा…

आपने यह पोस्ट लिखकर मुझे उत्तराखंड की याद दिला दी जहाँ मैं रामलीलाओं का खुद बचपन में इतंजार करता रहता था | रामलीला देखने के लिए मैंने कई बार घर वालों के सामने बीमारी का बहाना बनाना पड़ता था तब कहीं दिन भर सो पाता था और पूरी रामलीला का लुफ्त उठाता था

रचना दीक्षित ने कहा…

दिल्ली में रामलीला और दशहरा का वो मज़ा ही नहीं.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

बधाई एवं शुभकामनाएं ।
हमने संस्कृति के जिस रूप को अपने बचपन में देखा है, हमारी परवर्ती पीढ़ी अब उसे कभी नहीं देख पाएगी ।

Jyoti khare ने कहा…

प्रभावी विवेचन
सार्थक प्रस्तुति
सादर

जसवंत लोधी ने कहा…

आपके कमेंट को हम अपने आगामी पोस्ट की हेडिंग बनाएगे Seetamni. blogspot. in

संजय भास्‍कर ने कहा…

लेख प्रकाशित होने पर डबल बहुत बहुत बधाई।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

बहुत बहुत बधाई..पर लेख पढ़ बी सकें सही से इसका भी इंतजाम करिए न

Anurag Choudhary ने कहा…

बहुत बहुत बधाई दीदी।

Unknown ने कहा…

आपका ब्लॉग पढ़ कर हमें अच्छा लगा। विजयादशमी और दशहरा क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पे विजिट करें ।
http://www.dishanirdesh.in/vijayadashmi-11-october-2016/