गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015
रावण वध देखने के उत्साह में उड़ जाती थी नींद
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About कविता रावत
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मैं शैल-शिला, नदिका, पुण्यस्थल, देवभूमि उत्तराखंड की संतति, प्रकृति की धरोहर ताल-तलैयों, शैल-शिखरों की सुरम्य नगरी भोपाल मध्यप्रदेश में निवासरत हूँ। मैंने बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है। वर्तमान में स्कूल शिक्षा विभाग, भोपाल में कर्मरत हूँ। भोपाल गैस त्रासदी की मार झेलने वाले हजारों में से एक हूँ। ऐसी विषम परिस्थितियों में मेरे अंदर उमड़ी संवेदना से लेखन की शुरुआत हुई, शायद इसीलिए मैं आज आम आदमी के दुःख-दर्द, ख़ुशी-गम को अपने करीब ही पाती हूँ, जैसे वे मेरे अपने ही हैं। ब्लॉग मेरे लिए एक ऐसा सामाजिक मंच है जहाँ मैं अपने आपको एक विश्वव्यापी परिवार के सदस्य के रूप में देख पा रही हूँ, जिस पर अपने मन/दिल में उमड़ते-घुमड़ते खट्टे-मीठे, अनुभवों व विचारों को बांट पाने में समर्थ हो पा रही हूँ।
28 टिप्पणियां:
कविता जी बधाई । किसी भी लेख/फीचर के प्रकाशित होने का अपना ही आनंद है । इससे यह अधिक पाठकों तक पहुंचता है । दशहरे की उन यादों पर अच्छा लिखा है आपने ।
bahut badhiya likhti hain aap !! bachpan ki yaaden taza ho gayin ji !
गांव की रामलीला जिसने एक बार देखी हो वह कभी नहीं भूल सकता.........पढ़ते पढ़ते यादों में खो गए हम और पहुँच गयी उस दौर में ................
दशहरा की शुभकामना ...
बचपन में जब भी रामलीला होती हम बच्चे में आपस में खूब चर्चे करते स्कूल में, घर में ...यहाँ तक की रात को सपने में वही सीन दिखाई देते ......
रामलीला के बारे में पढ़कर मजा आ गया ..........................
हर साल रावण को जलाकर हम ख़ुशी मानते हैं और समझ बैठते हैं की हमने बुराई का अंत किया है, परन्तु रावण के अवगुणों पर ईमानदारी से गौर करते हुए आत्ममंथन किया जाय तो हम पाते हैं ये सभी बुराईयां तो हमारे अंदर भी हैं। जीवन में कितने ही अवसर पर हमारे अंदर छिपा रावण चुपके से अपना कमाल दिखा जाता है।
कविता जी, लेख प्रकाशित होने पर बहुत बहुत बधाई।
कविता जी, लेख प्रकाशित होने पर बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुंदर .विजयादशमी की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट : बीते न रैन
सही कहा। सभी को दशहरे के मेले में जाने का इंतजार रहता है। खासकर बच्चों के लिए रावण वध कौतूहल का विषय होता है।
रावण के बिना रामलीला अधूरी है
जोरदार पोस्ट ...
दशहरा की बधाई हो
बहुत बढ़िया लिखा है आपने, प्रकाशन की बधाई। दशहरे की शुभकामनाएँ।
मैंने कभी गाँव का दशहरा तो नहीं देखा। मगर आपने अपने बचपन की इस खूबसूरत याद को जिस तरह से यहाँ बखूबी उकेरा है उसके के लिए आपको धन्यवाद एवं बधाई।
हम भी डूब गए अपनी गांव की रामलीला में...................
जय जय सियाराम!
जय हनुमान!
बधाई कविता जी ! आपकी लेखनी यूँ ही अखबारो की शोभा बढाती रहे ! शुभकामनाये :-)
बहुत सुन्दर रचना ।Seetamni. blogspot. in
बचपन के दशहरे की यादें ताज़ा कर दीं. बहुत सुन्दर और रोचक आलेख...शुभकामनाएं!
बेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।
अब तो रामलीलाऔ मे भी वह आनन्द नही, जिसकी ऐसी प्रतीक्षा की जाय।
दशहरे के मेले का तो आज भी बेसब्री से इंतजार रहता है..क्योंकि मेलों में आज भी दीखते हैं...वाही प्यारे खिलौने...गर्म जलेबियाँ....खट्टी चाट की दुकानें और उत्साही लोग...मेले अ का तो अपना अलग ही आनंद है।
आपने यह पोस्ट लिखकर मुझे उत्तराखंड की याद दिला दी जहाँ मैं रामलीलाओं का खुद बचपन में इतंजार करता रहता था | रामलीला देखने के लिए मैंने कई बार घर वालों के सामने बीमारी का बहाना बनाना पड़ता था तब कहीं दिन भर सो पाता था और पूरी रामलीला का लुफ्त उठाता था
दिल्ली में रामलीला और दशहरा का वो मज़ा ही नहीं.
बधाई एवं शुभकामनाएं ।
हमने संस्कृति के जिस रूप को अपने बचपन में देखा है, हमारी परवर्ती पीढ़ी अब उसे कभी नहीं देख पाएगी ।
प्रभावी विवेचन
सार्थक प्रस्तुति
सादर
आपके कमेंट को हम अपने आगामी पोस्ट की हेडिंग बनाएगे Seetamni. blogspot. in
लेख प्रकाशित होने पर डबल बहुत बहुत बधाई।
बहुत बहुत बधाई..पर लेख पढ़ बी सकें सही से इसका भी इंतजाम करिए न
बहुत बहुत बधाई दीदी।
आपका ब्लॉग पढ़ कर हमें अच्छा लगा। विजयादशमी और दशहरा क्यों मनाया जाता है इसकी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पे विजिट करें ।
http://www.dishanirdesh.in/vijayadashmi-11-october-2016/
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