शनिवार, 7 नवंबर 2015
अपना अपना दीपावली उपहार
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About कविता रावत
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"शब्दों में जीवन, भावों में समाज — कविता, कथा और प्रकृति के स्पंदन से जागृत होती है संवेदना की सेवा।"।



18 टिप्पणियां:
वो उसी में ख़ुशी ढूँढ लेते हैं
सत्य कहा है आपने...
बस संतुष्टि की बात है ..ख़ुशी एक पल में मिल जाती है
हमारे सालभर के जमा कबाड़ से उपहार ढूंढ़ लेना ही जिनका नसीब है उनके लिए हम अपने और से थोड़ा बहुत भी कुछ कर लेंगे तो उनकी भी दीपावली हो जाएगी ख़ुशी से ......
सुखद अहसास |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-11-2015) को "एक समय का कीजिए, दिन में अब उपवास" (चर्चा अंक 2153) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्योंकि वे जान गए हैं
हर वर्ष उनके भाग्य का
सुनिश्चित है
अपना अपना दीपावली उपहार!
......
त्यौहार में खुश होने का कोई तो बहाना मिल ही जाता है सबको .....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज बातें कम, लिंक्स ज्यादा - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत खूब। बहुत ही शानदार।
उत्सव के नये नये रंग।
उत्सव तो उत्सव है.
kya khoob...jo jis parivesh me rahta hai usi me khushi dundh leta hai..
कड़वा सच....सुंदर लिखा
हकीकत को बयां किया है,आपने.
एक ऐसा सच जिसे मानने का दिल न करे. काश सभी को सम्मानजनक जीने का मौका मिले.
बहुत खूब ,ख़ुशी स्थान और परिवेश की शायद मोहताज़ नहीं होती .वाह .
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