बचाना होगा हिमालय को - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 4 जून 2016

बचाना होगा हिमालय को

हिमालय एक पूरी पर्वत श्रंखला है। यह श्रृंखला पूर्व से पश्चिम तक 2500 किमी क्षेत्र में फैली हुई है, जिसका आच्छादन लगभग 5 लाख 95 हजार कि.मी. क्षेत्र है। हिमालय भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में विस्तार लिये हुए है। यह पर्वत श्रृंखला भारतीय उपमहाद्वीप और तिब्बत को अलग करती है। हिमालय पांच देशों भारत, भूटान, नेपाल, चीन और पाकिस्तान से सटा हुआ है। यद्यपि हिमालय के अधिकांश हिस्सों पर भारत भूटान और नेपाल का प्रभुत्व है, तथापि चीन और पाकिस्तान इसके कुछ हिस्सों पर शासन करते है।
           हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण आज से लगभग सात करोड़ साल पहले इण्डियन टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन टेक्टोनिक के टकराने से हुआ था। वैज्ञानिकों के अनुसार यह दोनों प्लेट्स अभी भी घूम कर रहीं है। यही कारण है कि हिमालय क्षेत्र के पहाडों की ऊंचाई बढ़ रही है। दिलचस्प बांत यह है कि हिमालय इतना पुराना होने के बाद भी अन्य पर्वत श्रंखलाओं की तुलना में युवा है। 
वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमालय पर्वत जियोलाॅजिकली लिविंग है। इसका दक्षिणी भाग हर साल लगभग 20 मिलीमीटर आगे बढ जाता है। एक अनुमान लगाया गया है कि एक करोड़ साल में हिमालय एशिया में 1500 किमी तक आगे खिसक आयेगा। 
सोचो अगर हिमालय नहीं होता
         हिमालय भारत के लिये यह कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि अगर यह नहीं होता तो आज पूरा क्षेत्र मौसमी कहर से नहीं बच पाता। यह मध्य एशिया से आने वाली ठण्डी हवाओं को रोक देता है, जिससे भारत कड़ाके की ठण्ड से बचा रहता है। हिमालय मानसूनी हवाओं को भी रोकता है, जिसके कारण पूरे क्षेत्र में तमाम हिस्सों में बारिश होती है। इसकी ऊंचाई और मानसूनी हवाओं के रास्ते में स्थित होने के कारण ऐसा होता है। 
         हिमालय भारत के लिये लम्बे समय से उत्तर का प्रहरी रहा है। यह हमारे देश के लिये एक प्रकार की नैचुरल बाउन्ड्री है। हिमालय के दर्रे काफी ऊंचे हैं और ठण्ड के मौसम में तो पूरी तरह बर्फ से ढके रहते हैं। इतिहास में कभी कोई आर्मी इसे पार नहीं कर सकी है। यह ट्रान्सपोर्ट और कम्यूनिकेशन के लिये भी एक अच्छा बैरियर है।        
गंगा, यमूना, ब्रह्मपुत्र समेत कई विशालकाय नदियों के लिये हिमालय पानी के विशाल भण्डार के रूप में कार्य करता है। देश की लगभग सभी बड़ी और बारहमासी नदियां हिमालय के पहाड़ों या ग्लेशियर से उत्पन्न होती है। हिमालय की नदियां उत्तर भारत के लिये जीवन रेखा जैसी है। यह भारी बारिश, बर्फ और ग्लेशियर के कारण गर्मियों में भी नदियां सदाबहार बनीं रहती है। 
        हिमालय से उत्पन्न होने वाली नदियां अपने साथ पहाड़ों पर से उपजाऊ मिट्टी मैदानों तक लाती है। एक अनुमान के अनुसार गंगा प्रतिदिन अपने साथ 19 लाख टन गाद और सिंधु नदी अपने साथ 10 लाख टन गाद लाती है। यही कारण है कि उत्तर भारत के मैदान हिमालयांे का तोहफा कहा जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में कई प्रकार के बहुमूल्य खनिज भी पाये जाते है। 
        हिमालय की गहरी घाटी बांधों के निर्माण के लिये सबसे बढि़या जगह है। यहां पर कई जगह ऐसे प्राकृतिक झरने है जिसके कारण हाइड्रोइलेक्ट्रीसिटी जनरेशन में और आसानी होती है। यद्यपि बांधों को लेकर हाल के वर्षाें में विवाद भी हुआ है। इतना ही नहीं यहां पर कई तरह की मूल्यवान जड़ी बूटियां और काष्ठ सम्पदा पाई जाती है। यहां वनस्पतियों की ऐसी कई प्रजातियां पाई जाती हैं, जो दुनियां के किसी कोने में नहीं पाई जाती है। 
क्या-क्या समाया है हिमालय में 
नदियाँ -हिमालय में 19 मुख्य नदियां है। इनमें सिंधु और ब्रह्मपुत्र सबसे बड़ी है। इन दोनों ही नदियांे का कैचमैंट बैसिन 2,60,000 वर्ग किमी का है। अन्य नदियों में पांच नदी झेलम, चेनाब, रावी, व्यास और सतलज सिंधु सिस्टम की हैं। गंगा सिस्टम की नदियों में गंगा यमुना, रामगंगा, काली, करनाली, राप्ती, बाघमती और कोसी है। 
पहाड़ -  हिमालय में 100 से भी ज्यादा पहाड़ 7200 मीटर से भी उंचे है। इसमें माउंट एवरेस्ट भी शामिल है। जो दुनिया का सबसे उंचा पहाड़ हैं। इतना ही नहीं हिमालय आज लाखों लोगों का घर है और जीव जन्तुओं की सैकडों युनिक प्रजातियां यहां रहती हैं। पूर्वी हिमालय में अकेले 10 हजार किस्म के पौधंे, 750 प्रकार की चिडियां और 300 प्रजातियों के प्राणी रहते हंै। 
ग्लेशियर्स - अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद हिमालय दुनिया का तीसरा सबसे अधिक बर्फ वाला स्थान है। पूरे हिमालय में लगभग 15 हजार ग्लेशियर्स हैं। इन ग्लेशियर्स में सियाचिन ग्लेशियर्स सबसे प्रमुख है। करीब 70 किमी लंबा यह ग्लेशियर नाॅन पोलर एशिया का सबसे लंबा ग्लेशियर है। इसके अलावा बाल्टारोे, बिआफों, नुब्रा और हिसपुर अन्य मुख्य ग्लेशियर है। 
मिट्टी - हिमालय के नाॅर्थ फेसिंग स्लोप्स (उत्तर मुखी ढलानों) पर मिट्टी की मोटी परत है। यह मिट्टी कम ऊंचाईयों पर घने जंगलों तथा अधिक ऊंचाईयों पर घास का पोषण करती है। जंगल की मिट्टी गहरे भूरे रंग की तथा इसकी बनावट चिकनी दोमट है। 

        हम कई दशकों से हिमालय का लगातार दोहन करते आ रहे हैं। हमने नदियों से बिजली बनाने, वनों से लकड़ी लेने और पहाडों से खनन करने की होड़ में इसका प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ना शुरू कर दिया है। हिमालय के एक हिस्सेे से छेड़छाड़ का असर दूसरे हिस्से पर भी पड़ता है। जुलाई 2012 में नेचर क्लाइमेंट चंेज में छपी स्टडी में कहा था कि हिमालय के ग्लेशियर तेजी से कम हो रहे हैैं। इसी तरह हाल ही में आई अन्य स्टडी में दावा किया गया है कि हिमालय में बढ़ती गर्मी के कारण यहां सैकडों की तादाद में झीलें बन गई है, जो कभी भी घातक हो सकती हैं।