





'मेष के सूर्य और सिंह के गुरू के समावेश का ये पर्व महापर्व का रूप लिए उज्जयिनी में आता है। सिंह का गुरू के साथ ये बारह संयोग 'सिंहस्थ' महापर्व कहलाता है, इसलिए इस कुंभ का विशेष महत्व है। इसी समय सूर्य भी मेष राशि पर होता है। बारह वर्षों के इस चक्र को हम पूरी भावना से बांध देते है। उज्जयिनी के लिए अनेक प्रकार की संभावनाओं और उपलब्धियों का अमृत कलश लेकर ये पर्व शनैः-शनैः द्वार पर दस्तक देने आ पहुंचा है।
मालवा की गंगा शिप्रा नदी के इर्द-गिर्द चार क्षेत्रों में विभाजित यह 'सिंहस्थ' मेला देश-विदेश से समागत जनता, गृहस्थ और विरक्त का आकर्षण केन्द्र बन जाता है। इन चारों क्षेत्रों में से अंकपात वैष्णव महात्माओं रामनंदी के लिए, दत्त अखाड़ा दशनामियों के लिए, रूद्रसागर वैदिक मतावलंबियों व सनातन धर्मी शंकर दंडी सन्यासियों के लिए तथा नृसिंह घाट में रामानुज संप्रदाय के संत महात्मा एवं आचार्यों के पड़ाव रहते हैं। इसी प्रकार लालपुल के समीप परमहंस साधुगण कल्पवास करते हैं तथा विरक्त साधु संत भी इसी स्थान पर रहते हैं। इसी प्रकार नाथ संप्रदाय के साधुओं का पड़ाव ऋणमुक्तेश्वरी, भर्तृहरि की गुफा और पीर मछन्दरनाथ की समाधि पर होता है। लेकिन शासन तंत्र, आध्यात्म एवं जनता का जब समन्वय होता है तो शासन तंत्र अपने से जुड़े हुए शब्द-तंत्र की विद्या से जनता एवं आध्यात्म के किसी भी रूप को अपने अनुरूप बना लेता है।

इनके विभिन्न स्वरूपों के बावजूद भारतीय आध्यात्मिक जीवन में जल और स्नान ध्यान आदि का बड़ा महत्व है। पर्व के समय समीपवर्ती सरोवर, कुण्ड नदी या समुद्र में स्नान करना अधिक पुण्यदायी माना जाता है। गृहों की विशेष स्थिति पर कुंभ और सिंहस्थ के स्नान की प्रथा इसी परंपरा की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। पौराणिक गाथा के अनुसार वैशाख मास में जो श्रेष्ठ मनुष्य पावन सलिला शिप्रा नदी में स्नान करते है, उन्हें किसी भी प्रकार के नर्क का भय नहीं रहता है। इसी अवधि में पंचक्रोशी यात्रा में लाखों यात्री नागेश्वर सहित चारों दिशाओं में स्थित शिवालय के दर्शन करते हुए संपूर्ण नगर की 118 कि.मी. लंबाई की प्रदक्षिणा पूरी करते नागेश्वर हैं। अंत में शिप्रा तट के 28 तीर्थों की यात्रा अष्टारट विशांति यात्रा, जो अब 'अष्टतीर्थी' यात्रा करते हुए मंगलनाथ पर पांच दिवसीय यात्रा पूर्ण करते हैं। सिंह राशि के गुरू के साथ मेष के सूर्य का संयोग विशेष महत्वपूर्ण होने से संक्रमण स्नान पर्व वैशाखी अमावस्या, पितरों का पर्व है। पिण्डदान, तर्पण, जलांजलि, श्रद्धांजलि के रूप में अर्पित करते हैं। इसी श्रृंखला में अक्षय तृतीया पुण्य को क्षय से बचाती है। वैशाखी शुक्ल पंचमी शंकराचार्य के प्रति श्रद्धांजलि अर्पण पर्व है।
वैशाख मास के अंतिम पांच दिन अथवा एक दिन के तीर्थ वास और स्नान का विशेष पुण्य काशी के लंबे निवासी की अपेक्षा वैशाख मास के पांच दिन उज्जयिनी वास करने से प्राप्त है। क्षिप्रा में वैशाखी पूर्णिमा के स्नान का महत्व विशेष तौर से इसलिए भी है क्योंकि इसमें सिंहस्थ और कुंभ दोनों पर्व मिलते हैं। उज्जैन के कुंभ में ये योग मुख्य है-वैशाख मास, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, मेष राशि का सूर्य, सिंह राशि का बृहस्पति, चंद्र का तुला राशि पर होना, स्वाति नक्षत्र व्यतिपात, स्कंद पुराण के अनुसार अत्रि नामक एक ऋषि ने अपने एक हाथ को उठा कर तीन हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। तत्पश्चात् उनके शरीर से दो स्त्रोतों का प्रवाह हुआ। एक आकाश की ओर चला गया, जो बाद में चंद्र बन गया और दूसरा धरती की ओर जिसने बाद में क्षिप्रा नदी का रूप धारण किया। क्षिप्रा के शाही स्नान का अपना एक विशेष महत्व है। जब इस शाही स्नान में साधु संतों के सभी अखाड़े पावन क्षिप्रा के दत्त अखाड़ा एवं रामघाट पर स्नान करते हैं। सभी अखाड़े अपने पवित्र ध्वज (अणी) की पूजा करते हैं और बाद में स्नान के पूर्व अणी को पवित्र जल से स्पर्श करते हैं। सन्यासियों के भस्म की छाल को शिप्रा अपने में समा लेती है और उस समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे क्षिप्रा में भस्म का रंग घुल गया हो। इस अवसर पर सभी को मालवा की ये गंगा अपने सीने से लगा लेती है।
शास्त्रों के अनुसार देवराज इंद्र का पुत्र जयंत जब अमृत कलश लेकर भागा तो उसके साथ चंद्रमा ने अमृत छलकाने, सूर्य देव ने कलश फटने से और बृहस्पति ने कलश को दैत्यों के हाथों से जाने से रोकने में काफी योगदान किया था। इसलिए इन्हीं गृहों के संयोग से सिंहस्थ (कुंभ पर्व) की तिथि निश्चित की जाती है। बताया जाता है कि जिस दिन सुध कुंभ गिरने की राशि पर सूर्य, चंद्रमा व बृहस्पति का संयोग हो, उसी समय पृथ्वी पर कुंभ का योग पड़ता है। उज्जयिनी का सिंहस्थ पर्व योगियों एवं जोगियों दोनों का ही अद्भुत समागम सम्मेलन है। इस शुभ अवसर पर योगी योनि की संत महापुरूष एवं जोगी यानि जिज्ञासु गृहस्थ गण को सूक्ष्म रूप से ज्ञान प्रदान करके उनकी जिज्ञासा शांत करते हैं। साथ ही उनके सामने अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करके उन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर आकृष्ट करते हैं। ऐसी प्रेरणा लेकर यहां पहुंचने वाला प्रत्येक भक्त भविष्य के लिए नई प्रेरणा लेकर लौटता है।