पेट की खातिर - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 1 मई 2016

पेट की खातिर


कुछ लोग भले ही शौक के लिए गाते हों, लेकिन बहुत से लोग पेट की खातिर दुनिया भर में गाते फिरते हैं।   ऐसे ही एक दिन दुर्गेलाल और उसका भाई गाते - भटकते हुए घर के द्वार पर आये तो, उनका गाना अच्छा लगा तो घर पर बिठाकर मैंने रिकॉर्डिंग की, जो आज मई दिवस पर प्रस्तुत है।     ..




12 टिप्‍पणियां:

  1. मजदूर दिवस पर अच्छी सम-सामयिक प्रस्तुति है

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  2. बहुत बढिया कविता है... बधाई कविता जी.

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  3. बहुत अच्छी रचना है।मैं आपकी पोस्ट पढ़ता हूँ। अपने विचारों को आप सुन्दरता से अभिव्यक्त करती हैं।

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  4. बहुत अच्छी रचना है।मैं आपकी पोस्ट पढ़ता हूँ। अपने विचारों को आप सुन्दरता से अभिव्यक्त करती हैं।

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण लिखा है ... मज़दूर दिवस को सार्थक किया है ... और दुर्गेलाल की रिकार्डिंग तो बहुत ही
    मस्त है ... बहुत शुभकामनाएँ ....

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  6. भावपूर्ण ...मर्मस्पशी रचना

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  7. कविता जी, मजदुरों की व्यथा दर्शाती बहुत ही सुंदर रचना!

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  8. Behtreen Recording ki hai appne... Sun ke achha laga...

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  9. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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