हेमलासत्ता (भाग-2) - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 26 जून 2017

हेमलासत्ता (भाग-2)

नाई की बात सुनकर खेतासर के लोग बोले- हेमला से हम हार गए, वह तो एक के बाद एक को मारे जा रहा है, बड़े गांव में भी हम लोगों को चैन से नहीं रहने दे रहा है। हम कुछ नहीं कर सकते। अब तो बड़े शहर जाकर वहाँ से मियां मौलवी को लाना होगा। सुना है वहां एक खलीफा जी बड़े सिद्धहस्त हैं, उनके आगे हाथ जोड़कर जो बेऔलाद औरतें भेंट चढ़ाती हैं उन्हें वह गंडे-ताबीज देते हैं, जिससे उनकी गोद भर जाती हैं। जिन्न, डाकिनी और देव सब उनसे डरते हैं, भूत, मसान, खबीस सभी उनसे कांपा करते हैं। उनके पास जाकर खेतासर के लोगों ने नगद भेंट निकालकर हाल सुनाया तो वे बोले- “मैं आप लोगों से पहले भेंट हरगिज नहीं लूँगा, पहले चलकर वहाँ उस भूत को दफन करके आऊँगा, उसके बाद ही भेंट स्वीकार करूँंगा।“  यह सुनकर सभी खुश होकर बोले- जैसी आपकी मर्जी, अब हमारी यही अर्जी है कि आप हमारे साथ चलें। विनती कर वे लोग उसे गांव लाये और उसकी खूब खातिरदारी की, जिसे देख खुश होकर खलीफा बोला- ’सुनो सब, सत्ता से डरने की कोई बात नहीं अब समझो वह भसम हो कर रहेगा।’  बड़े सवेरे शीघ्र खलीफा ने नहाकर साफ जगह में चतुष्कोण चौका लगवाया, लोबान सुलगाया, मन्त्र जप, जन्त्र जगाए और सवा पहर दिन चढ़े मियां जी बाहर आकर बोले- ’चलकर साथ मुझे वह जगह बताओ। किसी तरह की जरा न दिल में दहशत खाओ।’ ’डरते-डरते लोग हुए दस-बीस साथ में, पुस्तक लेकर चले खलीफा एक हाथ में।’ आधी दूर पहुंचे, ठिठक कर, रूके सब लोग, कहा खलीफा से- अब हम हम नहीं चलेंगे, सामने जो ताल दिखाई दे रहा वहीं पर खेतासर का विकट हेमला भूत रहता है। ’अच्छा ठहरो यहीं, मैं अकेला ही जाता हूँ और उसे अभी भसम कर लौटता हूँ।’ इतना कहकर मियां पुस्तक खोलकर विलक्षण बोली में पढ़ते-पढ़ते आगे बढ़ते रहे।  आज हेमला ताल के किनारे पर पड़ा हुआ था। जैसे ही मियां के शब्द उसके कानों में पड़े वह चौंककर खड़ा हो गया। मियां ने एकाएक भयंकर भूत सम्मुख देखा तो वह अवाक् खड़ा रह गया। लाखों भूत-पलीत उन्होंने झाड़ दिए थे, हजारों को भसम और सैकड़ों को गाड़ दिए थे, लेकिन प्रत्यक्ष देहधारी भूत देखने का मौका उन्हें पहली बार मिला। आगा-पीछा सोचते हुए खलीफा जोर-जोर से अपने बदन पर फूंक मारने लगा। इतने में दुडू-दुडू कर दौड़ते हुआ अलबेला सत्ता मियां के ऊपर कूद पड़ा। अपने को निपट अकेला समझ मियां का मुंह पीला पड़ गया और उसकी हवाई उड़ने लगी। आज उनकी करामात ने उनसे विदाई मांग ली है यह जानकर वह पीछे पांव लौटकर भागने लगे तो दुडू-दुडू कर सत्ता ने दौड़ लगाई और मियां की कमर में लात जमाई और आगे आकर तड़ातड़ आठ-दस हाथ दे मारे। जब ’हाय! मरा’ कहकर मियां वहीं बेहोश हो गए तब उसकी किताब को फाड़-फाड़कर उसके पन्ने-पन्ने उड़ाता सत्यानाशी सत्ता मरघट की ओर यह बड़बड़ाते हुए चला कि- मूढ़ यह गलबल-गलबल कर यहां क्यों मरने आया था। कुछ लोग आगे बढ़कर पीछे वालों को यह सब आंखों देखा हाल सुना रहे थे- ’क्या वस्तु खलीफा है बेचारा? लो, वह भागा, अरे, हाय! मारा, वह मारा।’ हेमला चला गया लेकिन मियां बहुत देर बाद भी नहीं लौटा तो चिन्ताकुल लोग मन में बहुत घबराये। भयातुर होकर धीरे-धीरे पास पहुंचे तो देखा मियां के प्राण पखेरू उड़ गए थे। लोगों ने बस, झटपट चुपचाप टांगकर उन्हें उठाया और भागकर गांव पहुंचकर हाल सुनाया- “भूत सहज का है क्या सत्ता? कर दी जिसने नष्ट मियां की सभी महत्ता। और साथ ही पटक मार भी उनको डाला;  हाय! पड़ा है दुष्ट दैत्य से अपना पाला। अब क्या शेष उपाय रहा, सब तो कर छोड़े; भूल न लेंगे नाम, हाथ अब हमने जोड़े।।“         
         इस घटना से हेमला का खूब डंका बजा। इधर-उधर के गांव वालों ने भी खेतासर की सीमा में पांव रखना बंद कर दिया। एक दिन एक ठाकुर अपने लाव लश्कर के साथ ऊंटों पर सवार होकर अपने ससुराल को निकले। चलते-चलते जब वे एक गांव पहुंचे तो लोगों ने उनसे कहा कि आगे रास्ता बंद है। आपको खेतासर छोड़कर तीन कोस का फेर लगाना होगा। पूछने पर उन्होंने हेमला का हाल सुनाया तो ठाकुर को बड़ा आश्चर्य हुआ, उन्हें विश्वास नहीं हुआ। वे बोले- ’वे अवश्य ही खेतासर होकर जायेंगे और आज हेमला भूत वहां जाकर देखेंगे।’ यह सुनकर उनके नौकर-चाकर और संगी साथियों ने उन्हें खेतासर से नहीं चलने की विनती की। उन्होंने समझाया कि तीन कोस को फेर ज्यादा नहीं है, ऊंट को चढ़ने में देर नहीं लगती है।सौ-सौ बात हुई लेकिन ठाकुर नहीं माना, उसने जहाँ हेमला है, वहीं चलने की ठान ली। आओ कहकर वह खेतासर की ओर चल पड़ा। खेतासर के सूने घर भायं-भायं कर रहे थे। ठाकुर बोले- यहीं बितायेंगे दोपहरी, यहाँ जल का बड़ा सुबास और गहरी छाया है। अनेक बार अनुनय-विनय के बाद सब हारे। ताल किनारे डेरा डाला गया। नौकर-चाकर सभी हेमला से डरते थे। उनमें से किसी में भी डेरे से दो कदम आगे बढ़ाने का साहस न था। हर कोई सोचता कि अब तो प्राण जाने वाले हैं, सत्ता भूत सदेह अभी आने वाला है। सब मन ही मन बुरी तरह से ठाकुर को कोस रहे थे। सभी आपस में खुसुर-फुसुर सुनी-सुनाई बातों को दोहराते कि भूत विकट है, वह खूब लाते जमाता है। सब डर से कांप रहे थे, अगर कहीं पत्ता भी खड़का तो चौंक पड़ते। सभी लोग आपस में सटकर बैठे हुए थे लेकिन ठाकुर निर्भय होकर अलग दरी बिछाकर उस पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ाते हुए बीच-बीच में ’डरना मत तुम लोग’ कहकर सबको दिलासा दे रहे थे। उसने अपने बगल में बंदूक रखी थी।          
       मटरगस्ती कर ज्यों ही हेमला ताल के किनारे आया एक ऊंट बल-बल बल्लाया। वह मरघट से बाहर आया तो उसने मनुष्यों की आवाज सुनी तो उसे अचम्भा हुआ। उसने देखा कि ताल पर कुछ लोग ठहरे हुए है। अरे, कौन ये मूढ़ आज मरने चले आये हैं। मेरे ताल पर डेरा जमाकर बैठे हैं। अभी हेमला यही सोच रहा था कि कैसे इन्हें यहाँ से भगाऊँ कि इतने में एक आदमी की नजर उस पर पड़ी तो वह चिल्लाया- ’ठाकुर साहब, हाय! वह देखो, हेमला सत्ता आया।’ ठाकुर बोला कहाँ? अरे, किस ओर? किधर है? उधर देखिए उधर, यहीं, यह, उधर, उधर है, सब एक साथ चिल्लाये। “देखा ठाकुर ने कि वेश विकराल बड़ा है, मरघट में से निकल सामने भूत खड़ा है। दुर्बल, दीर्घ शरीर, भील सा काला काला, सिर पर रूखे बाल, घुसी सी आंखों वाला। मुंह पर दाढ़ी-मूंछ बड़ी बेडौल बढ़ी है, नंगे तन पर बिना चढ़ाई भस्म चढ़ी है। दृष्टि रोप कर के देखने वे जैसे ही दुडू-दुडू कर कूद चला सन्मुख वैसे। चिल्लाये सब लोग- अरे आया, वह आया हाय! करें क्या? मरे, आज सत्ता ने खाया। ठाकुर ने ललकार उन्हें तब डांट लगाई भरी धरी थी निकट, विकट बन्दूक उठाई। सीधी कर दी कालरूप भयहरण भवानी, जिसे देख मर गई आज सत्ता की नानी। दुडू-दुडू भूलकर भागना चाहा जैसे- तनी देख बन्दूक डरा-भागूंगा कैसे? मर जाऊंगा, नहीं बचूंगा किसी तरह से, गरजा ठाकुर- अरे, चला आ इसी तरह से। खबरदार, जो उधर-उधर को कहीं हिला है, देखा सत्ता ने कि आज यह गुरू मिला है। हिला जहां बस, देह फोड़ दूंगा मैं तेरी, देख खोपड़ी अभी तोड़ दूंगा“  ऐसी विकट स्थिति देख हेमला दीनता से बोला- ’आदमी हूँ मत मारो; महाराज मैं भूत नहीं हूं, मुझ पर दया विचारो।’ ठाकुर बोला- ’भूत हो कि अवधूत या कि यमदूत बड़ा लेकिन आज तू काजी के सामने है। आज तुझे बचना है तो मेरा कहा मानना होगा, जहां धड़ाका हुआ तो तेरा फड़ाका हो जायेगा। बस, सीधा, चुपचाप चला आ यहां अभी, भगने की भूल न करना। आकर अपना सच्चा हाल सुना दे मुझे, मैं तुझ शैतान को प्राणदान दे दूँगा। कालमुखी को देख हेमला दीन हुआ, सुन ठाकुर के वचन वह बलहीन हुआ। उसने सोचा जो यह कहे आज उसे करना ही होगा नहीं तो बेमौत मारा जाऊंगा। उसने कहा- ’दुहाई अब मुझे गोली मत मारना, अब मैं कभी भूत नहीं बनूँगा, जो हो ली सो हो ली। हुक्म आपका मानकर आपके चरणों में हाजिर होकर अपना दुःखड़ा रोता हूँ, पर नंगा हूं, इसीलिए कुछ शरमाता हूँ, मारो मत मैं हाथ जोड़ता हूँ। तब ठाकुर ने एक दुपट्टा फेंक उधर को कहा- इसे पहन, चला आ शीघ्र इधर। उसे पहन कर पास हेमला उनके आया। कर प्रणाम, कुछ दूर बैठ, सब हाल सुनाया। सुनकर हाल ठाकुर बोला- अरे दुष्ट, पापी, हत्यारे, डरा-डराकर तूने क्यों इतने लोगों को मारा? तो हेमला ने बोला- ’कहां मैंने मारे हैं? वे तो अपने आप सारे डर कर मरे हैं। ’अच्छा तो दुडू-दुडू की बदमाशी क्यों करता था सत्यानाशी? जो डरते थे उन्हें और डरवा देता था, अरे मूर्ख तभी तो उनके प्राण निकल जाते थे।  तब हाथ जोड़कर हेमला ने विनती कि मुझे माफ करें, मेरा चोला बदलवा दीजे हुजूर।’ ठाकुर बोले- अभी चार दिन मेरे लौटने तक इसी ठौर पर जमा रह। जब ससुराल लौटकर आऊंगा तो तुझे बड़े गाँव ले जाऊंगा। यह मेरा कर्तव्य है मैं उससे मुंह नहीं मोडूंगा। तुझे भूत से आदमी बनाकर रहूँंगा।’ हेमला बोला- आपकी कृपा बड़ी है पर अब मेरे लिए एक घड़ी भी बरस के बराबर है। सर्वसुखी जो कभी हेमला जाट रहा था भूत योनि में पड़ा, कठिन दिन काट रहा था। उसका यों उद्धार आपने आज किया है, मरे हुए को जिला कर नया नर जन्म दिया है। मैं आपका कृतज्ञ हूं मैं आपका सेवक हूं और आप हैं मेरे स्वामी। बहुत रह लिया, नहीं यहां अब रह सकता हूं। भूतपने के कष्ट नहीं अब सह सकता हूँं। गांव नहीं तो साथ आपके रहूंगा। अपनी बीती आप कहानी वहां कहूंगा।’  ठाकुर को बात पसंद आई कि “इसका शोर इधर सब ओर बड़ा है, विकट भूत यमदूत हेमला नाम बड़ा है। मारे जिसने पटक खलीफा जी को ऐसे वह सत्ता फिर कहो, मनुज हो सकता कैसे। होगी किसको भला हेमला से यह आशा। होगा निस्संदेह विलक्षण बड़ा तमाशा। आयेंगे वे लोग मुझे मिलने जैसे ही भागेंगे सब देख हेमला को वैसे ही। हुल्लड़ होगा, एक बड़ी दिल्लगी रहेगी, इस प्रकार से वहां हास्य की नदी बहेगी।“  यही सोच ठाकुर ने अपने साथियों से कहा-“हेमला भूत हमारे साथ चलेगा।“ सुनकर हुक्म ठाकुर का हेमला बहुत खुश हुआ। हाथ जोड़कर बोला- कई दिनों से भूखा हूँ सरकार, खाना मिल जाता तो! ठाकुर ने नौकर से खाना देने को कहा तो वह डरकर दूर से उसे खाना देने लगा तो ठाकुर बोला- अरे, इतनी दूर, किसलिए खड़ा है, किस बात का डर है, यह भूत नहीं है। लेकिन नौकर के लिए उसके पास जाना सहज नहीं था उसने दूर से ही खाना फेंका तो ठाकुर ने हंसकर कहा- ’अरे यह भूत नहीं है, देखो यह खाना खा रहा है, जला नही है, मरा नहीं है, क्या तुमने अभी इसकी कथा नहीं सुनी है।“  लेकिन नौकर-चाकर सभी बडे़ भयभीत थे, वे यही सोच रहे थे कि “ठाकुर चकमे में हैं। भला हेमला भूत किसके बस में आया है? छल से आज यह मरघट का बना हुआ है हाऊ और ठाकुर बछिया का ताऊ।“ ठाकुर ने समझाया पर उन्हें पूरा विश्वास नहीं हुआ, किसी को पौंन तो किसी का पूरा अधूरा रहा।          
ठाकुर ने फिर हुक्म दिया- तैयारी हो अब। झट से ऊंट कसे गए और सभी तैयार हो गए। दो-दो कर प्रत्येक ऊंट पर चढ़े। केवल एक अकेला ऊंट पर नाई चढ़ा। उसे ठाकुर ने हुक्म दिया कि वह हेमला को अपने साथ बिठा ले। इस पर नाई बोला- अगर वह मुझे खा ले तो? यह सुनकर ठाकुर हँसने लगा तो उनके साथ सभी नौकर-चाकर हँसने लगे। नाई बोला-’भूत हो या आदमी की खाल चढ़ा भूत, मैं तो पैदल ही चलूंगा।’ यह सुनकर जब ठाकुर ने उसे फटकार लगाई तो उसने हेमला को पीठ पिछाड़ी बिठाया। नाई चलते-चलते सोच-विचार करने लगा- ’यों कि इसी ने गांव उजाड़ा, मारे आदमी मारे, मौलवी पटक पछाडा। सिवा भूत के कौन प्राण यों हर सकता है। क्या ऐसा अन्धेर आदमी कर सकता है। हाय! आज हो गया हमारा ठाकुर उल्लू, और साथ ही बना दिया मुझको भी भुल्लू। मैं बातों में भूल, फंसा हूं भूत-जाल में, अब है बचना कठिन, पड़ा है काल-गाल में।“  तमाम उल्टी-सीधी बातें सोचकर नाई का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, कलेजा कांप रहा था, वह भयभत होकर भूत को भांप रहा था। वह देख रहा था कि जाने कब यह सत्यानाशी अपने पैर बढ़ा देगा या फिर उसके शरीर में दांत गड़ा देगा। वह रह-रह कर इधर-उधर ताक-झांक कर रहा था। उसका ऊंट बोदा था इसलिए सभी से पिछड़कर दस हाथ पिछड़ गया। इतने में हेमला को छींक आई तो नाई ’हाय! मुझे खा लिया’ कहकर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। ठाकुर को जोर की आवाज सुनाई दी तो उन्होंने पीछे मुड़कर देखा कि नाई सिर के बल गिरा हुआ है। ठाकुर चिल्लाया- अरे कैसे गिर पड़ा नाई? हेमला बोला- मुझे जोर की छींक आई थी, जैसे ही छींका, यह चिल्ला कर ऊँट से गिर पड़ा। ठाकुर ऊँट से उतर कर नाई के पास आया तो देखा सब लोग घबराये थे। नाई पत्थर पर गिरा था। उसकी नब्ज छूट गई थी, खोपड़ी फूट गई थी, गर्दन टूट गई थी, वह निष्प्राण पड़ा था। खेतासर से अभी आधा कोस भी नहीं बढ़े कि श्रीगणेश कर दिया हाय! इसी भांति कौन जानता है कि अभी किस-किस के प्राण लेगा? आप मानते ही नहीं? इसे साथ न लो यहीं रहने दो, यों सब साथी ठाकुर से विनती करने लगे। हेमला बोला- हाय! मेरी तकदीर अभागी है, निर्दोष होकर भी पाप का भागीदार बन रहा हूँं। ठाकुर बोले- चलो लौटकर अब खेतासर चलकर इस नाई का ताल किनारे दाह करो। दाह कर सभी ने ताल में नहाया। इतने में शाम हो गई। ठाकुर ने सोचा- यह व्यर्थ ही हँसी-हँसी में अनर्थ हो गया। इसी तरह से और लोग भी डर सकते हैं, बिना मौत ही मूर्ख मर सकते हैं। हेमला को साथ ले जाना उचित नहीं होगा। इसे पहले बड़े गांव पहुंचाना होगा। अब बड़े गांव की तैयारी हुई। हेमला आफतों का परकाला एकदम खाली ऊँट पर सवार होकर चला।       
          संध्या का समय था। जैसे ही ठाकुर अपने लाव-लश्कर के साथ गांव पहुंचा, अरे, हेमला भूत, हेमला भूत चिल्लाते हुए लोग इधर-उधर भागने लगे। यह देखकर ठाकुर ने सबको समझाया- ’मत भागो, मत डरो, हेमला भूत नहीं है, इसे पकड़ कर आज मैं अपने साथ लाया हूँ।’ फिर ठाकुर ने बीच गांव में डेरा डाला और खेतासर के सभी लोगों को बुलवाया। सभी लोग इकट्ठे हुए, सभी अचरज कर रहे थे, कुछ डर के मारे बहुत दूर से ही देख रहे थे। ठाकुर ने बैठकर पहले सबको स्वयं थोड़ा-बहुत हाल सुनाया फिर पूरा-पूरा हाल पुनः हेमला से सुनवाया। हाल सुनने के बाद ठाकुर बोला- ’सुन ली सत्य कहानी? यों लोगों ने भूत बनाकर नादानी की। तब लोग हेमला से बोले- ’हेमला, दादा, चाचा, तू मनुष्य है? फिर क्यों तू भूत बन नंगा नाचा, खूब सताया और गांव से हमें निकाला। तूने दुडू-दुडू कहकर कितनों को मार डाला।’  गांव वालों की बात सुनकर हेमला दुःखी होकर बोला- ’अब मैने दुडू-दुडू छोड़ दिया है। मैंने बड़ा अनर्थ किया, यह बात सही है, मुझे सब लोग क्षमा करो मेरी यही विनती है।’ इतना सुनकर भी गांव को पूरा विश्वास नहीं हुआ कि हेमला भूत नहीं है, इसलिए वे ठाकुर से बोले- ’प्रभुवर, इसे रात भर अपने पास रखिए, जैसी कृपा अब तक की, इतनी कृपा और कर दीजिए। रात बीतने और सवेरा होने दीजिए।’ यह प्रस्ताव जब ठाकुर के संगी-साथियों ने सुना तो वे डरे, मन में सोचने लगे कि यह बात तो बड़ी बेढ़ंगी है। वे चिन्ता करने लगे कि जाने हेमला भूत ठाकुर को जीवित छोड़ता है या मार डालेगा? लेकिन वे विवश थे, किसी को रात भर नींद नहीं आई, जाग कर किसी तरह सबने रात बिताई। इस तरह रात भर ठाकुर के पास हेमला रहा और जब सवेरा हुआ तो सभी लोग वहाँ एक इकट्ठा हुए।  
सभी लोगों ने ठाकुर को जीवित देखा तो ज्यादातर लोगों को विश्वास हो गया कि हेमला भूत नहीं है। तब ठाकुर ने कहा- एक नाई बुलवाओ और हेमला के बाल काटकर उसे नहलाओ। डरते-डरते बड़े गांव वाला नाई हेमला के पास आकर बैठा और उससे बोला- ’अरे हेमला तू भूत नहीं है, मरा नहीं है?’ हेमला बोला- अरे मरा कभी लौटता है क्या?’ ’तो उस दिन क्यों दुडू-दुडू कह मुझे डराया। कब का बदला लिया तूने मुझसे? क्यों तूने नाइन को खाया। मैंने भला कौन सी तेरी चोरी कर दी जो तूने मेरी गृहस्थी चौपट कर दी।’ यह सुनते ही हेमला बोला- ’याद है तुझको नाई, तूने ही तो उस दिन नाइन से मुझे आत्मघात कर विकट भूत बनकर घूमने वाला बताया था। तेरी बात सुनकर ही मुझे भूत बनने की सूझी।“ नाई बोला-“अरे, मैंने समझ-बूझकर थोड़े कहा था, मैंने तो नाइन से दिल्लगी की थी। वह डरती है या नहीं उसकी परीक्षा ली थी। मैं नहीं जानता था कि दैव मेरे साथ छल करेगा।“ यह बात सुनकर ठाकुर बोला- “झूठ हंसी में भी खलता है।“ सुनकर ठाकुर की बात नाई बहुत पछताया। हेमला की हजामत बनी और उसने खूब नहाया। कपड़े पहनकर ठाकुर से हाथ जोड़कर बोला- “आज भूत का चोला छोड़ मैं फिर से मनुष्य हुआ हूँ। इसके लिए मैं आपका ऋणी रहूंगा। सदा आपके गुण गाता रहूंगा। आप न मिलते तो मैं भूत बनकर ही किसी दिन मरकर पड़ा रहता।“  हेमला को कृपा दृष्टि से देख कर ठाकुर ने सबसे कहा- “सुनो, अब से भूलकर भी भूत से नहीं डरना। भूत-भाव के भय से देखो कैसे सबने हेमला को मनुष्य से भूत समझ लिया, यह प्रत्यक्ष उदाहरण तुम्हारे सामने है।“
(मुंशी अजमेरी ’प्रेम’ कृत हेमलासत्ता से अनूदित)

16 टिप्‍पणियां:

Rishabh Shukla ने कहा…

sundar rachna .........badhai

http://hindikavitamanch.blogspot.in/

yashoda Agrawal ने कहा…

काफी दिन से राह देख रही थी दूसरे भाग के लिए
सुखान्त कहानी
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर...
सुखान्त...
आखिर हेमला ने भूत का चोला छोड़ दिया,
वह मनुष्य हुआ.....

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया दूसरा भाग ।

kuldeep thakur ने कहा…

दिनांक 27/06/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...

Sweta sinha ने कहा…

लंबें इंतज़ार के बाद कहानी का दूसरा भाग सुखद अंत लेकर आया। रोचक कहानी कविता जी।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कहानी का सुखान्त अच्छा लगा ... दरअसल किसी न किसी को तो हिम्मत दिखानी होती है और अगर सब साथ मिल जाएँ तो ऐसी मान्यताओं से जल्दी पर्दा उठ जाता है ... रोचक थी पूरी कहानी ... शिक्षाप्रद भी ...

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

प्रेरक काव्यात्मक​ कहानी।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

Atoot bandhan ने कहा…

बहुत सुन्दर

अन्तर सोहिल ने कहा…

मजेदार कहानी है
दूसरा पार्ट कई दिनों बाद आया
प्रणाम

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रोचक कहानी ... दोनों भाग एक साथ पढ़े . अंधविश्वास कितना अनर्थ कर देता है .

Udan Tashtari ने कहा…

रोचक कहानी....अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Satish Saxena ने कहा…

सोंचने को मजबूर करती रचना ...

जाने कितने ही बार हमें, मौके पर शब्द नहीं मिलते !
बरसों के बाद मिले यारो,इतने निशब्द,नहीं मिलते ! -सतीश सक्सेना
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक और शिक्षाप्रद कथा...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

भय ही भूत बन जाता है ।
कहानी अंत पाठक को तक बांधे रखती है ।
रोचक और शिक्षाप्रद भी ।