माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद गहलौर पहाड़ काटकर 15 किलोमीटर की दूरी में बदलकर ही दम लिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि जब वे गहलौर पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे थे तब उनकी पत्नी उनके लिए खाना ले जा रही थी और उसी दौरान वह पहाड़ के दर्रे में गिर गई, जिससे चिकित्सा के अभाव में उसकी मृत्यु हो गई, क्योंकि वहां से बाजार की दूरी बहुत थी। उनके मन में यह बात घर कर गई कि यदि समय पर उनकी पत्नी का उपचार हो गया होता तो वह जिन्दा होती। इसलिए उन्होंने उसी समय ठान लिया कि वे अकेले दम पर पहाड़ के बीचों-बीच से रास्ता निकालकर ही दम लेगें, जो उन्होंने तमाम तरह की कठिनाईयों के बावजूद कर दिखाया। यहां एक बात साफ है कि यदि गांव में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होती तो शायद उनकी पत्नी की जान बच गई होती। कमोवेश आज भी अधिकतर गांवों की स्थिति चिकित्सा के मामले में बड़ी सोचनीय व दयनीय है। गांव में एक ओर जहां चिकित्सा के अलावा गरीबी का आलम पसरा मिलता है वहीं दूसरी ओर गरीब बच्चों के लिए उच्च स्तर पर शिक्षा की निःशुल्क व्यवस्था न होने से गरीबी के चलते उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है। नगरीय क्षेत्रों की अपेक्षा देहातों में अशिक्षा का अभाव व्यापक स्तर पर देखने को मिलता है, जिसका दुःखद पहलू यह भी है कि कई समझदार और पढ़े-लिखे लोग इनका फायदा उठाने से पीछे नहीं हटते। बेचारे गरीब आदमी अपने गुजर-बसर के बाद यदि अपना जीवन स्तर कुछ ऊपर उठने के लिए सोचते भी हैं तो उसके लिए जब वे इधर-उधर से कर्जा लेते हैं तो उसी में डूब जाते हैं और फिर वे कभी कुछ सोचने-समझने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते हैं। उनकी ऐसी ही दशा के बारे में किसी कवि ने बड़ा ही सटीक कहा है कि-
है जिसका सर पर कर्जे का बोझ
न मिलती जिसको रोटी रोज
करेगा वह क्या जीवन खोज-
लायेगा कहां से बोलो ओज?
मैंने यहां माउंटेन मैन ‘दशरथ मांझी’ का उल्लेख इसलिए किया क्योंकि उनकी तरह जाने कितने ही गरीब लोग अपनी दयनीय स्थिति के कारण अपनी मंजिल की ओर दृढ़ निश्चय होकर कदम तो बढ़ा लेते हैं लेकिन उन्हें गरीबी की मार के चलते अपनी मंजिल बीच में ही अधूरी छोड़नी पड़ती है। दशरथ मांझी की तरह धर्मेन्द्र मांझी जो कि सोहागपुर, जिला होशंगाबाद का निवासी है, जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से विगत 9 वर्ष से जानती हूँ, जिसने औसत दर्जे के छात्र होने के बावजूद एक पिछड़े इलाके से आकर भोपाल में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए 8 वर्ष की कठोर साधना की और वर्ष 2016 में एम.बी.बी.एस. की प्रवेश परीक्षा पास करके भोपाल स्थित चिरायु मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला लेकर ही दम लिया। मैं यहाँ यह बात बताना जरुरी समझती हूँ कि जहां बहुत से छात्र दो-तीन बार असफल होने पर आगे तैयारी करना छोड़ देते हैं वहीं मांझी की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम ही है कि विकट परिस्थितियों के बाद भी कई बार असफल रहने के बाद उसने मैदान नहीं छोड़ा, डटा रहा और कभी निराश नहीं हुआ। वह निरन्तर मेरिट में आने के लिए सरकारी काॅलेज मिलने की आस लगाये कठोर परिश्रम करता रहा, ताकि वह सरकारी काॅलेज में दाखिला लेकर सरकारी अनुदान से अपनी एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण कर सके। लेकिन इस दौरान मेडिकल प्रवेश परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया गया तो नए नियमों के तहत जब उसने देखा कि अब वह आगे प्रवेश परीक्षा के लिए पात्र नहीं होगा तो फिर अन्य कोई विकल्प न होने से उसे प्रायवेट काॅलेज में प्रवेश लेना पड़ा। जहाँ उसे इस बात का मलाल जरूर है कि यदि वह आरक्षित श्रेणी का होता तो निश्चित ही अब तक वह अपनी एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण कर चुका होता और उसे आज फीस की जुगत में मारा-मारा नहीं भटकना पड़ता।
मांझी के पिताजी फलों का हाथ ठेला लगाकर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं, इसके बाद भी बेहद तंगहाली में उन्होंने धुन के पक्के अपने बेटे की दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोर परिश्रम को पढ़ लिया तभी तो उन्होंने अपना जो कुछ थोड़ा बहुत था, उसे बेचकर और रिश्तेदारों की मदद से प्रायवेट मेडिकल काॅलेज में प्रवेश दिलाने की हिम्मत दिखाई। वे पढ़े-लिखे भले ही नहीं है, लेकिन इस बात को अच्छे से समझ गए हैं कि जब उनके बेटे ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास की है तो निश्चित ही वह आगे भी कठोर परिश्रम कर अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब रहेगा। वे अपने बेटे की लगन देखकर समझ गए हैं कि कठिन परिश्रम के लिए आदमी में जो सहनशीलता, साहस, निर्भीकता आदि गुण होने आवश्यक है, वे उसमें विद्यमान हैं। कठोर परिश्रम करने की प्रवृत्ति प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होती, लेकिन अपनी धुन के पक्के व्यक्ति कठिन परिश्रम करके ही सौभाग्यशाली कहलाते हैं।
धर्मेन्द्र कुमार मांझी की एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण हों और उसका डॉक्टर बनने का सपना साकार हो, इस हेतु मैं आप सभी पाठकों एवं सुधिजनों से यथासंभव आर्थिक सहायता की अपील करती हूँ।
धर्मेन्द्र कुमार मांझी की एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण हों और उसका डॉक्टर बनने का सपना साकार हो, इस हेतु मैं आप सभी पाठकों एवं सुधिजनों से यथासंभव आर्थिक सहायता की अपील करती हूँ।
मैं धर्मेन्द्र कुमार मांझी आत्मज श्री बेनीप्रसाद, निवासी-सोहागपुर, जिला होशंगाबाद मध्यप्रदेश आप सभी सम्मानीय पाठकों एवं सुधिजनों से करबद्ध निवेदन करता हूँ-
मैंने डाॅक्टर बनकर समाज सेवा का एक सुनहरा सपना देखा है। इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए 8 साल सर्वथा प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वर्ष 2016 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर मैं चिरायु मेडिकल काॅलेज एण्ड हाॅस्पिटल, भोपाल में एम.बी.बी.एस. में दाखिला ले पाया हूँ। मैं पिछले एक वर्ष से लगातार काॅलेज में मेडिकल की पढ़ाई कर रहा हूँ। मैंने प्रथम वर्ष की पढ़ाई करते हुए 62 प्रतिशत अंकों के साथ पास किया है और वर्तमान में द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत हूँ। मेरी आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय है, फिर भी पहले साल की फीस मेरे घर वालों ने अपना जो कुछ भी था वह सब बेचकर एवं रिश्तेदारों की मदद् से भर दी थी। मेरे पास कोई प्रोपर्टी भी नहीं है, इसलिए मुझे पढ़ाई के लिए कोई भी बैंक लोन नहीं दे पा रहा है उनका कहना है कि प्रोपर्टी के मूल्यांकन के आधार पर ही लोन पास होता है। पिछले 2 माह से मैं स्वयं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित बहुत से जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के अलावा कलेक्टर कार्यालय एवं कई प्राइवेट संस्थानों के चक्कर काट चुका हूँ, लेकिन सभी का रवैया टालमटाल रहा है। एक गरीब की मदद् केवल इतनी ही हो पाई है कि सब जगह से औपचारिक रूप से बैंक को फोन लगाया गया, जिसके जवाब में बैंक यही कहता आ रहा है कि वे केवल अंतिम वर्ष की बची फीस ही लोन के रूप में दे सकते हैं।
मेरे घर की आय का एकमात्र जरिया मेरे पिताजी द्वारा फलों का हाथ ठेला लगाकर गुजारा भर है, फिर में मेरी डाॅक्टर बनने और समाज सेवा की धुन को देखते हुए उन्होंने अपनी सामर्थ्य से बढ़कर पहले साल की फीस अपना सबकुछ बेचकर और बाकी निकट रिश्तेदारों की मदद् से भर ली। यह मेरा सौभाग्य रहा है कि द्वितीय वर्ष की फीस मेरी अत्यन्त कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए मेरे सीनियर और सुपर सीनियर और डिपार्टमेंट के सभी लोगों ने मिलकर भर दी। अब चूंकि मुझे तृतीय वर्ष की फीस भरनी है, जिसके लिए मैं शहर में मारा-मारा फिरने के लिए मजबूर होकर अपने आप को असहाय महसूस कर रहा हूँ। मुझे इसकी दिन-रात भारी चिन्ता सता रही है, इस कारण मेरी पढ़ाई भी बाधित हो रही है। मुझे इसी साल की फीस की चिन्ता है, जो 5 लाख 72 हजार है, जिसे मुझे 12 जून, 2018 तक भरना है। अगले साल की ज्यादा चिंता नहीं है क्योंकि तब मुझे बैंक से लोन मिल जायेगा।
मैं एक औसत दर्जे का छात्र रहा हूँ, फिर भी मैंने अपनी पूरी मेहनत और लगन से पढ़ाई करते हुए मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास करते हुए यह मुकाम हासिल किया है, जिसे आगे भी हर हाल में मुझे आगे बढ़ाना है और डाॅक्टर बनकर समाज सेवा का मैंने जो लक्ष्य निर्धारित किया हैै, उसे पूरा करना है, जिस हेतु आपके आशीर्वाद स्वरूप आप सभी से यथासंभव आर्थिक सहायता की उम्मीद कर रहा हूँ।
मैं मेधावी छात्र योजना के अंतर्गत भी नहीं आता हूँ क्योंकि मेरा प्रवेश वर्ष 2016 में हुआ जबकि यह योजना 2017 शुरू हुई है। मेरी घर की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। घर में पिताजी फलों का हाथ ठेला कर जैसे-तैसे घर चला रहे हैं और मैं अपना थोड़ा-बहुत खर्च अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर बड़े ही संघर्षपूर्ण ढंग से निकाल पा रहा हूँ।
मैंने होश संभालते ही एक ही सपना देखता आया हूँ डाॅक्टर बनने का, क्योंकि मैंने अपने गांव और अपने निकट सम्बन्धियों में से किसी को डाॅक्टर बनते नहीं देखा है। मैं भलीभांति परिचित हूँ कि कहीं पास डाॅक्टर न होने की दशा में हम जैसे गरीब गांव वालों को कितनी शारीरिक व्याधियों से जूझते हुए मर-खपना पड़ता है। मेरा डाॅक्टर बनकर समाज सेवा का लक्ष्य न छूटे इसके लिए मुझे आपके आर्थिक सहयोग की अपेक्षा है। मेरे पास आपको देने के लिए कुछ नहीं है लेकिन इसके लिए मेरी और मेरे परिवार वालों की हृदय से नेक दुआएं आपको मिलेगी क्योंकि कहते हैं कि जो लोग जरूरतमंद लोगों की समय पर मदद करते हैं, ईश्वर उनके भण्डार को हमेशा भरा रखता है।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि मानवीय संवेदना और मेरी उपरोक्त दयनीय स्थिति पर आप सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए यथा आर्थिक सहयोग करते हुए मेरे डाॅक्टर बनने के सपने को साकार करते हुए सहभागी बनेगें, इसके लिए मैं और मेरा परिवार आप सभी लोगों का जीवनपर्यन्त आभारी रहूँगा।
कृपया अपना आर्थिक योगदान मुझे मेरे निम्न बैंक खाते, Paytm अथवा वर्तमान निवास के माध्यम से प्रदान करने की कृपा करें:-
नाम- धर्मेन्द्र कुमार मांझी
Mobile Number :
9340359567
बैंक का नाम - बैंक आॅफ बड़ौदा, शाखा हबीबगंज भोपाल
IFSC Code : BARB0HABIBG (Fifth character is Zero)
MICR
Code : 462012005
Paytm No. 9340359567
वर्तमान निवास का पता -
हनुमान मंदिर स्वर्गाश्रम,
बद्रीनारायण मंदिर के पास,
साउथ टी.टी. नगर, भोपाल
19 टिप्पणियां:
मार्मिक अपील
फिर भी बूँद-बूंद कर सागर भर जाता है
शुभकामनाए भावी चिकित्सक को
सादर
ऐसे होनहार जीवटता के धनी गरीब बच्चों के लिए सरकार को पढ़ाने के लिए निःशुल्क व्यवस्था होनी ही चाहिए
उन बच्चों के लिए प्रेरणा है धर्मेंद्र मांझी जो बीच रास्ते से वापस हो लेते हैं, मेरी हृदय से शुभकामनाएं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-05-2018) को "अक्षर बड़े अनूप" (चर्चा अंक-2981) (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कविता ज8,बहुत ही सार्थक पहल। मांझी को हार्दिक शुभकामनाएं।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
कोशिश करें www.ffe.org पर आवेदन करके।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एवरेस्ट को नापने वाली पहली भारतीय महिला को शुभकामनायें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
सराहनीय कोशिश की है आपने कविता जी..।
माँझी को शुभकामनाएं... कोई न कोई रास्ता अवश्य सूझेगा ।
सराहनीय कदम ..मांझी को शुभकामनायें
आप इजाजत के बिना लिंक tWITTER पर भी डाल दिया है, सम्भवतः कुछ सहायता मिल सके।
धन्यवाद आपका! जरुरी है,. बूँद-बूँद से घड़ा भरता है जैसे ठीक वैसे ही थोड़ा-थोड़ा भी अगर मेरी अपील को पढ़कर ब्लॉग पर आने वाले लोग मदद करें तो उसे समय पर निश्चित ही एक बहुत बड़ी राहत मिल जायेगी।
हिम्मत कर के जो आगे आते हैं इश्वर भी उकना साथ देता है ... धर्मेन्द्र की महनत कामयाब हुयी और आगे भी उसे सफलता मिलेगी ... मेरा ऐसा विश्वास है ...
आपने भी जिस लगन से इस बात को सबके सामने लाया है उसकी भूरी भूरी प्रशंसा करता हूँ मैं ... आपका प्रयास सफल रहेगा ...
"अपनी मदद की गुहार लगाते या दूसरों के मदद में अपनी रोटी सेंकते आपने बहुत लोगों को देखा होगा। पढ़ाई के लिए आर्थिक सहायता करना एक उत्तम विचार है। इस प्लेटफार्म से मैं सुधि पाठकों एवं रचनाकारों से विशेष अनुरोध करता हूँ कि आप 5 लाख 72 हजार रु. शायद न दें पाएं परन्तु आप के द्वारा दिया गया एक छोटी सी राशि भी 5 लाख 72 हजार रु. को पूरा करने में एक अहम् योगदान दे सकता है आप ये ना सोचे कि आपके द्वारा दिया गया सौ या हज़ार से क्या होगा। बूंद-बूंद से ही सागर भरता है। "
... राकेश कुमार श्रीवास्तव राही ...
I SEND 1000 Rs IN SRI DHARMENDRA KUMAR MANJHI'S A/C PLEASE CONFIRM. THAKING YOU AND BEST WISHES FOR SRI DHARMENDRA KUMAR MANJHI.
success
Please note this transaction number for further reference: IRG6233402
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बहुत-बहुत धन्यवाद आपका! इसी तरह ब्लॉग पर आने वाले थोड़ा-थोड़ा कर सहयोग करें तो एक बहुत बड़ी मदद मिलेगी मांझी को और वह उत्साह से अपनी मंजिल तक पहुँचने में सफल होगा। अभी मेरे कुछ परिचितों, उसके दोस्तों और कॉलेज के सहपाठियों ने भी मिलकर लगभग ३ लाख राशि इकट्ठा कर ली है, मेरे पति भी उसके साथ स्वयं जाकर समाजसेवी संस्थानों, जनप्रतिनिधियों से और व्यक्तिगत रूप से नामी-गिरामी व्यक्तियों से संपर्क कर पैसे की जुगाड़ बिठाने में लगे हैं, लेकिन दु:खद बात है कि अधिकांश जगह से सिर्फ आश्वासन और कई जगह से नाउम्मीद ही मिलती है, इस बारे में कटु अनुभव जरूर लिखूंगी बाद में, फिलहाल यह मिशन पूरा हो, इसी में जुटे हैं। यहाँ मुझे यह लिखते बड़ी ख़ुशी है कि बहुत लोग धीरे-धीरे ही सही मेरी अपील पढ़कर उसके खाते में अपना योगदान दे रहे हैं। मैं सभी को हृदय से धन्यवाद करती हूँ और मैं उम्मीद करती हूँ कि मेरे ब्लॉग पर आने वाले सभी लोग अपनी सामर्थ्य अनुसार थोड़ा-बहुत सहयोग कर अपना योगदान देंगे और बूँद-बूँद से घड़ा भरने वाली कहावत को मूर्त रूप प्रदान करेंगे।
सादर
कविता जी! मैंने भी ज्यादा तो नहीं लेकिन ५०० रु. मांझी के अकाउंट में डाल दिए हैं. मैं आपकी हर ब्लॉग पोस्ट पढता हूँ। मैं जानता हूँ आप पूरी ईमानदारी से ब्लॉग लिखती हैं। आपके ब्लॉग पर निश्चित तौर पर एक दिन में हज़ारों की संख्या में लोग आते होंगे, यदि सभी लोग ज्यादा नहीं तो १००-१०० रु. भी एक गरीब बच्चें को दान के रूप में उसके अकाउंट में डालते हैं तो फीस की रकम जो बहुत अधिक दिखती हैं वह कुछ ही दिन में न के बराबर हो जायेगी और उससे कहीं अधिक पैसा उसके कहते में जमा हो जाएगा, बस इसके लिए इंसान या तो संवेदनशील हो या जिसने गरीबी करीब से देखि होगी, बड़े-बड़े पैसे वालों के जेब से पैसा निकलना बड़ी टेढ़ी खीर होती है,,, फिर भी वक्त पर उम्मीद तो सबसे रहती ही है ..............
है नश्वर संसार अंत में कुछ नहीं हाथ आता
पर किया हुआ उपकार व्यर्थ कभी न जाता
चाहे कितना भी छोटा प्राणी हो जग में
कर सकता है वह उपकार बड़ों के संग का
दशरथ मांझी और धर्मेन्द्र मांझी की कहानी जानकर यह बात तो साफ हैं की जीवन में अगर दृढ़ निश्चय के कुछ किया जाये तो सफलता अपने आप आपके पीछे आती हैं. आपको सिर्फ मेहनत करनी पड़ती हैं.
आपने सही कहा बूँद -बूँद से घट भरता है | ऐसे कितने बच्चे होंगे जो कुछ करना चाहते हैं पर धनभाव में कर नहीं पाते | सरकार की तरफ से कुछ योजनायें होनी चाहिए | आपके प्रयास की सफलता के लिए शुभकामनाएं
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