स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 16 जुलाई 2018

स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली

स्वामिनारायण अक्षरधाम! भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के ज्योतिर्धर के रूप में अवतरित भगवान स्वामिनारायण का शाश्वत निवास-धाम है। दिल्ली के पावन यमुना-तट पर जहाँ ऊबड़-खाबड़ झाडि़यों से युक्त विशाल बंजर भूमि थी, वहां मात्र पांच वर्ष में पलक झपकते सम्पन्न हुआ कल्पनातीत स्वामिनारायण अक्षरधाम का सृजन, जो विश्व का महान आश्चर्य है।
गुरुदेव ब्रह्मस्वरूप योगीजी महाराज के संकल्प को साकार करने हेतु, प्रमुखस्वामी महाराज की प्रेरणा से इस अद्भुत स्मारक का सृजन हुआ है। वैसे तो मंदिर के लिए पिछले 32 वर्षों से गतिविधियां चल रही थीं, किन्तु आवश्यक 100 एकड़ का विशाल भू-खंड प्राप्त होते ही 8 नवम्बर 2000 को इस भव्य सांस्कृतिक संकुल का शिलान्यास मुहुर्त संपन्न हुआ और ठीक 5 वर्ष की अल्पावधि में निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। 6 नवम्बर 2005 को प्रमुखस्वामी महाराज, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. ए.पी.जे.कलाम, प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह तथा विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी की संयुक्त उपस्थिति में इस अक्षरधाम संकुल का भव्य उद्घाटन समारोह संम्पन्न किया गया।
इस सांस्कृतिक संकुल के विशाल परिसर के मध्य मे गुलाबी पत्थरों में पद्म पुष्प की भाँति प्रस्फुटित स्वामिनारायण अक्षरधाम एक दिव्य महालय जैसा विभूषित है। इसके सर्जन में जुटे 11000 से भी अधिक स्वयंसेवकों-संतो-शिल्पियों के 30 करोड़ मानव घंटों की भक्तिपूर्ण कार-सेवा का योगदान सदा अविस्मरणीय रहेगा।
भारत के प्रसिद्ध चित्रकार एवं आर्किटैक्ट सतीश गुजराज आस्थाशून्य हृदय से अक्षरधाम दर्शन के लिए उपस्थित हुए थे। बाहर निकलने पर अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “नास्तिक को भी आस्तिक बना दे, ऐसा दिव्य आयोजन है, यहाँ! इसकी भव्यता और शिल्प-कला शब्दातीत है! यहां आकर मैं दिग्मूढ़-सा हो गया हूँ। मेरा दृढ़ मत है कि इस प्रकार का निर्माण करने में कम से कम 50 वर्ष अवश्य लग जाते!“
इस अद्भुत चमत्कार का निर्माण मात्र 5 वर्ष में कैसे संभव हुआ? क्या इसके सृजन के लिए देव-शिल्पी भगवान विश्वकर्मा का अवतरण तो नहीं हुआ? इसका एकमात्र उत्तर है-श्रेष्ठतम आयोजन, उत्कृष्ट प्रबंधन और समर्पणपूर्ण प्रतिबद्धता।
दिल्ली से 400 कि.मी. दूर राजस्थान के बंसीपहाड़पुर की खानों से पत्थर लाकर, दिल्ली से 700 कि.मी. दूर पिंडवाड़ा, सिंकदरा तथा राजस्थान के दो दर्जन से अधिक कारखानों में विशाल पत्थरखंडों को पहुंचाना साधारण कार्य न था। 8 लाख घनफीट लाल-गुलाबी सेन्ड स्टोन और सफेद संगमरमर के पत्थरों को गढ़-तराश कर उन्हें अद्भुत शिल्पकला में संवारना और फिर ट्रांसपोर्ट द्वारा दिल्ली भेजना मनुष्य के लिए एक असंभव सी चुनौती थी। दिल्ली में इन कलात्मक शिल्पों को संयोजित करके निर्माणाधीन स्मारक में उचित स्थान पर जोड़ दिया जाता था। इस प्रकार 11000 स्वयंसेवकों और शिल्पियों के रात-दिन होते रहे अथक परिश्रम से विश्व का यह महान आश्चर्य भारत की राजधानी में साकार हुआ।
मुख्य स्मारक लाल-गुलाबी बलुई पत्थर तथा सफेद संगमरमर से निर्मित हुआ है, जो 141 फुट ऊंचा, 316 फुट चौड़ा तथा 356 फुट लम्बा है। अक्षरधाम में नक़्कासीदार 234 स्तंभ, 9 विशाल गुम्बद, 20 शिखर तथा 20,000 से भी अधिक तराशी हुई अत्यंत मनोहर कलाकृतियां हैं। स्मारक के मध्य में 11 फुट ऊंची भगवान स्वामिनारायण की स्वर्णिम प्रतिमा प्रतिष्ठित है तथा चारों ओर अवतार प्रतिमाएं दर्शनीय हैं। स्मारक तीन दिशाओं में पवित्र नारायण सरोवर से घिरा हुआ है, जिसमें भारत सहित विश्व के 151 पवित्र तीर्थो-नदियों-झीलों का जल भरा हुआ है। डेढ़ कि.मी. लम्बा दो मंजिला परिक्रमा पथ, स्मारक के चारों ओर रत्न-हार के समान सुशोभित है।
अक्षरधाम परिसर में दो विशाल प्रदर्शनकक्ष, भव्य आईमेक्स थिएटर, अद्भुत संगीतमय रंगीन फ़व्वारा, विशाल भारत उद्यान, अलंकारिक स्वागत द्वार तथा उच्च स्तरीय प्रेमवती आहार गृह आदि भारत के गौरवपूर्ण सांस्कृतिक विरासत की रोमांचक अनुभूति कराते हैं। सहजानंद दर्शन कक्ष में भगवान स्वामिनारायण के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं को आधुनिक तकनीकी के माध्यम से जीवंत स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रस्तुति में फिल्म, ध्वनि, प्रकाश, रोबोटिक सिस्टम तथा अत्याधुनिक कम्प्यूटराइल्ड तकनीकी के संयुक्त संयोजन से रोबोटिक पुतलों और प्राकृतिक दृश्यों को देखकर सजीव वातावरण का आभास होता है।
प्रदर्शन का दूसरा महत्वपूर्ण भाग है- संस्कृति-विहार, जो अक्षरधाम की भूमि पर बना एक अजूबा संसार है। मात्र 14 मिनट में रोमांचक नौका-यात्रा करता हुआ यात्री, 10 हजार वर्ष पूर्व भारत की गौरवशाली संस्कृति को सरस्वती नदी के तट पर हूबहू सजीव-सा देखकर रोमांच की पराकाष्ठा का अनुभव करता है। 800 प्रतिमाएं सजीव-सी होकर भारत के प्राचीन इतिहास की अमरगाथा प्रस्तुत करती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। वेदकालीन बाजार, अर्थव्यवस्था, तक्षशिला विश्वविद्यालय, महर्षि चरक की औषधशाला तथा ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों को देखते समय नौका-यात्री अपने वर्तमान को भूलकर स्वयं को वैदिक युग में खड़ा हुआ पाता है।
प्रदर्शनी का तीसरा भाग आई-मेक्स थिएटर है, जिसके 85 फुट × 65 फुट के महाकाय पर्दे पर 40 मिनट तक “नीलकंठ-दर्शन“ फिल्म देखकर दर्शक अभिभूत हो जाता है। भगवान स्वामिनारायण मात्र 11 वर्ष की बाल्यावस्था में गृह त्यागकर खुले शरीर, नंगे पांव भारत के तीर्थों की यात्रा पर निकल पड़ते हैं। हिमालय की ऊंची-ब़र्फीली चोटियों पर चढ़ते, फिसलते, गिरते और पुनः उठकर आगे बढ़ते नीलकंठ को देखकर दर्शक रोमांचित हो उठता है। नीलकंठ के जीवन पर आधारित विश्व की इस प्रथम कथात्मक आई-मेक्स फिल्म का निर्माण बी.ए.पी.एस. स्वामिनारायण संस्था द्वारा किया गया है, जिसमें 45,000 कलाकारों ने भिन्न-भिन्न लोकेशन्स पर इस फिल्म की शूटिंग की गई है। हाॅलीवुड के विख्यात संगीतकार सेम कार्डन के प्रभावशाली संगीत के साथ इस फिल्म को देखकर दर्शक भाव-विह्वल हो उठता है।
22 एकड़ में फैले हुए विशाल “भारत उद्यान“ में 9 लाख से भी अधिक पेड़-पौधों-फूलों और लताओं की दुनिया ही अनूठी है। पर्यावरण की दृष्टि से दिल्लीवासियों के लिए यह एक महान् उपलब्धि है।
इस परिसर के उद्घाटन के अवसर पर इसके सर्जक-प्रेरक प्रमुखस्वामी महाराज ने कहा था, “अक्षरधाम भगवत् श्रद्धा और शान्ति का तीर्थधाम है, जो समूची मानवजाति को आत्मिक आनंद की ओर अग्रसर करके, उसे संस्कार-समृद्ध और दिव्य चेतना से परिपूर्ण करता रहेगा।“
अक्षरधाम परिसर भारत की गौरवमयी सांस्कृतिक विरासत का एक अभूतपूर्व संग्रहालय है, जो भारत के स्वर्णिम अतीत का अभिनंदन करता है, वर्तमान की व्याख्या करता है और भविष्य के लिए शुभाशीष प्रस्तुत करता है।
दस स्वागत द्वार
         विभिन्नता में एकता, विचारों की स्वतंत्रता और अनंत आविष्कार भारतीय संस्कृति की अनुपम विरात है। यह अमूल्य विरासत दस स्वागत द्वारों पर प्रतीकात्मक रूप से अभिव्यक्त हो रही है। अक्षरधाम के सुदीर्घ स्वागत-मार्ग में जलधाराओं के अभिवर्षण के साथ सुशोभित दस द्वार, दसों दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। ये स्वागत द्वारा ऋग्वेद की विभावना ’प्रत्येक दिशाओं से हमें शुभ विचार प्राप्त हों’ इस परम सत्य का अभिनव दर्शन कराते हैं।
द्वारों से प्रवाहित जलधाराएं हमारे मानसिक संताप को मिटाती हैं और सांसारिक उत्तेजनाओं को शांत करती हैं। यह एक आध्यात्मिक आनंद की अवर्णनीय अनुभूति है।
दस प्रवेश द्वारों से होकर गुजरने वाला यात्री भारत की प्राचीन, किन्तु आधुनिक सांस्कृतिक उपलब्धियों का अवलोकन कर मंगलमय अनुभूति के साथ उद्यान की आनंदमयी हरीतिमा में निमग्न हो जाता है।  
भक्ति द्वार
भक्तिद्वार प्रस्तुत करता है भक्ति के उस पारंपरिक मार्ग को, जिसमें भगवान और उनके समर्पित भक्तों के 208 युगल रूवरूपों को अद्भुत शिल्पकला में तराशा गया है।
मयूर द्वार
दो मयूर द्वार कला और सौंदर्य से विभूषित हैं, जो यात्रियों को आनंद की सौगात लुटाते हैं। विविध आकार एवं मुद्राओं में शिल्पांकित 869 आकर्षक मयूर, द्वारों की सौंदर्य वृद्धि करते ऐसे सुशोभित हैं, मानो कि प्रकृति को चुनौती देते हों। 
जहां पत्थर भी भव्यता के गीत गाते हैं और जहां दिव्य चेतना के संस्पर्श से समय भी रूक जाता है। दिव्य तत्व का आशीर्वाद तथा स्वयंसेवकों की कल्पनातीत सेवा ही अक्षरधाम के सर्जन का रहस्य है, जो दर्शक को शान्ति  और भव्यता की अनुभूति में डुबो देता है। 
सहस्त्रों वर्ष पुरातनी गौरवशाली भारतीय संस्कृति का जीवंत प्रतीक है-अक्षरधाम स्मारक! जो विभिन्न मुद्राओं में पूर्ण कद के गजराजों की गजेन्द्रपीठ पर निर्मित है। यह पीठ शास्त्र-कथाओं के आधार पर मूल्यों का संदेश सुनाती है। मंडोवर की बाहरी दीवाल पर प्राचीन भारत के आचार्यों, ऋषियों और अवतारों के मनोहर शिल्प दृश्यमान होते हैं। मंडोवर के शीर्ष पर वितान की भांति फैले सामरण के ऊपर पारंपरिक शिखर और गुम्बद पर स्वर्णिम कलश पर लहराते ध्वज, दर्शकों को मानो किसी नये ब्रह्मांड की यात्रा की अनुभूति करा रहे हैं। मुख्य स्मारक की बाह्य दीवार को मंडोवर के रूप में जाना जाता है। मंडोवर की लम्बाई 610 फुट और ऊंचाई 25 फुट है। यह मंडोवर भारत में अब तक निर्मित मंडोवरों में सबसे लम्बा और ऊंचा है। इसमेमं भारत के महान ऋषियों, अवतारों, भक्तों आदि की 200 जीवंत कद की प्रतिमाएं, भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की गौरव गाथा का बयान करती हैं। 
स्मारक के मध्य खण्ड में भव्य काष्ठ सिंहान पर विराजमान 11 फुट ऊंची भगवान स्वामिनारायण की स्वर्णिम मूर्ति। श्रीचरणों में हाथ जोड़े हुए अक्षरब्रह्म गुणातीतानंद स्वामी, वचनामृत ग्रंथ लिए भगतजी महाराज, शास्त्रीजी महाराज, दिल्ली में “अक्षरधाम“ के स्वप्नद्रष्टा योगीराज महाराज और सर्जक प्रमुखस्वामी महाराज! यहां पर यात्री दिव्य शांति, आनंद और श्रद्धा के सागर में डूब जाता है।
भारतवर्ष की भूमि पर निवास करने वाला विशाल जन समुदाय, सांस्कृतिक, शारीरिक, भाषागत तथा अपनी मान्यताओं की भिन्नता के बावजूद पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक आध्यात्मिक रूप् से जुड़ा हुआ है। सनातन धर्म के अवतारों श्रीराम-सीता, श्रीराधा-कृष्ण, श्रीलक्ष्मी-नारायण तथा श्रीशिव-पार्वती की प्रतिमाएं भी भगवान श्री स्वामिनारायण के साथ अक्षरधाम में प्रतिष्ठित की गई हैं। इन प्रतिमाओं की दिव्य उपस्थिति श्रद्धालुजन दर्शकों को निष्ठा, समर्पण तथा नैतिक मूल्यों की प्रेरणा प्रदान करती है।
अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली से प्राप्त पुस्तिका से संकलित