पहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है
पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है
अंगारों को झेलना चिलम खूब जानती है
समझ तब आती है जब सर पर पड़ती है
पराई दावत पर सबकी भूख बढ़ जाती है
अक्सर पड़ोसी मुर्गी ज्यादा अण्डे देती है
अपने कन्धों का बोझ सबको भारी लगता है
सीधा आदमी पराए बोझ से दबा रहता है
पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है
पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है
अंगारों को झेलना चिलम खूब जानती है
समझ तब आती है जब सर पर पड़ती है
पराई दावत पर सबकी भूख बढ़ जाती है
अक्सर पड़ोसी मुर्गी ज्यादा अण्डे देती है
अपने कन्धों का बोझ सबको भारी लगता है
सीधा आदमी पराए बोझ से दबा रहता है
पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है
...कविता रावत
22 comments:
जी बहुत सुंदर! जीवन में यही विसंगतियां है अपना दर्द सभी को ज्यादा लगता है और दुसरे की थाली में घई ज्यादा लगता है। सुंदर यथार्थ मुहावरों सी रचना।
बहुत सुंदर रचना 👌
I just read you blog, It’s very knowledgeable & helpful.
i am also blogger
click here to visit my blog आयुर्वेदिक इलाज
पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है .........जिसपर बीतती है वही जानता है
सीधा आदमी पराए बोझ से दबा रहता है
जीवन दर्शन की एक झलक और संग में सदुपदेश भी
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 02 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर रचना
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-09-2018) को "महापुरुष अवतार" (चर्चा अंक-3082) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"जाके पैर न फटी बिबाई वो का जाने पीर पराई"
बेहद उम्दा विचारणीय भाव और बेहतरीन शद-शिल्प.से गूँथी रचना...वाह्ह्ह👌👌👌
बहुत सुन्दर सृजन कविता जी
बहुत सुन्दर
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् । यथार्थ का समग्र एवं सुन्दर परिचय।
बहुत सुन्दर।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं आपको।
भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता।
दर्द को समझना तो ऊंचे लेवल की बात है।
सटीक रचना
बहुत ख़ूब ...
खरी बात अपने अपने ही अन्दाज़ में ... और हर छन्द सटीक कड़क सामयिक उमदा और लाजवाब ... पेट भरा हो तो भूख कौन समझ पाता है ...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन प्रेम-संगीत मिल के सजाएँ प्रिये - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
kavita Rawaji ji aap ne bahut sundar kavita likhi h........... www.nokariadda.co.in
good job...
निमंत्रण विशेष :
हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।
यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !
'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
अच्छा है
बहुत ही बेहतरीन प्रकाशित की है। मुझे बहुत अच्छी लगी। इसके लिये धन्यवाद।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
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