भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है - KAVITA RAWAT
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शनिवार, 1 सितंबर 2018

भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है

पहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है

पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है

अंगारों को झेलना चिलम खूब जानती है
समझ तब आती है जब सर पर पड़ती है

पराई दावत पर सबकी भूख बढ़ जाती है
अक्सर पड़ोसी मुर्गी ज्यादा अण्डे देती है

अपने कन्धों का बोझ सबको भारी लगता है
सीधा  आदमी  पराए  बोझ  से दबा रहता है

पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है

                                       ...कविता रावत