भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 1 सितंबर 2018

भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है

पहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है

पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है

अंगारों को झेलना चिलम खूब जानती है
समझ तब आती है जब सर पर पड़ती है

पराई दावत पर सबकी भूख बढ़ जाती है
अक्सर पड़ोसी मुर्गी ज्यादा अण्डे देती है

अपने कन्धों का बोझ सबको भारी लगता है
सीधा  आदमी  पराए  बोझ  से दबा रहता है

पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है

                                       ...कविता रावत 

17 टिप्‍पणियां:

मन की वीणा ने कहा…

जी बहुत सुंदर! जीवन में यही विसंगतियां है अपना दर्द सभी को ज्यादा लगता है और दुसरे की थाली में घई ज्यादा लगता है। सुंदर यथार्थ मुहावरों सी रचना।

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना 👌

Unknown ने कहा…

पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है .........जिसपर बीतती है वही जानता है

व्याकुल पथिक ने कहा…

सीधा आदमी पराए बोझ से दबा रहता है

जीवन दर्शन की एक झलक और संग में सदुपदेश भी

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर रचना

Sweta sinha ने कहा…

"जाके पैर न फटी बिबाई वो का जाने पीर पराई"
बेहद उम्दा विचारणीय भाव और बेहतरीन शद-शिल्प.से गूँथी रचना...वाह्ह्ह👌👌👌

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन कविता जी

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

सत्यम् शिवम् सुन्दरम् । यथार्थ का समग्र एवं सुन्दर परिचय।

जयन्ती प्रसाद शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर।
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं आपको।

Rohitas Ghorela ने कहा…

भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता।
दर्द को समझना तो ऊंचे लेवल की बात है।

सटीक रचना

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ख़ूब ...
खरी बात अपने अपने ही अन्दाज़ में ... और हर छन्द सटीक कड़क सामयिक उमदा और लाजवाब ... पेट भरा हो तो भूख कौन समझ पाता है ...

tarachad khyalia ने कहा…

kavita Rawaji ji aap ne bahut sundar kavita likhi h........... www.nokariadda.co.in

Tarachand Khyalia ने कहा…

good job...

'एकलव्य' ने कहा…

निमंत्रण विशेष :

हमारे कल के ( साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक 'सोमवार' १० सितंबर २०१८ ) अतिथि रचनाकारआदरणीय "विश्वमोहन'' जी जिनकी इस विशेष रचना 'साहित्यिक-डाकजनी' के आह्वाहन पर इस वैचारिक मंथन भरे अंक का सृजन संभव हो सका।

यह वैचारिक मंथन हम सभी ब्लॉगजगत के रचनाकारों हेतु अतिआवश्यक है। मेरा आपसब से आग्रह है कि उक्त तिथि पर मंच पर आएं और अपने अनमोल विचार हिंदी साहित्य जगत के उत्थान हेतु रखें !

'लोकतंत्र' संवाद मंच साहित्य जगत के ऐसे तमाम सजग व्यक्तित्व को कोटि-कोटि नमन करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

डॉ. हीरालाल प्रजापति ने कहा…

अच्छा है

जमशेद आज़मी ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन प्रकाशित की है। मुझे बहुत अच्छी लगी। इसके लिये धन्यवाद।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।