पेट की आग बुझाने के लिए रोटी अनिवार्य है। जब तक पेट में रोटी नही जाती तब तक सारी बातें खोटी लगती है। पापी पेट सबकुछ करवा सकता है। कहते हैं कि भूख की मार तलवार की धार से भी तेज होती है। भूखा कुत्ता भी डंडे की मार से नहीं डरता है और भूखा आदमी जितनी चीजें ढूंढ़ निकालता है, उतनी सौ वकील भी नहीं ढूंढ़ पाते हैं।
वह मजदूर का बेटा मैट्रिक पास क्या हुआ कि उसके मां-बाप उसके बाबू बनने का सपने देखनेे लगे। बेटे ने भी बाबू बनने के लिए दर-दर की ठोकरें खाई, लेकिन किसी ने उस पर दया नहीं दिखाई तो उसके मां-बाप की आंखों में अंधेरा छाने लगा, जिसे देख उसका मन उदास हुआ तो वह चुपचाप अपनी झोंपड़ी से निकल पास के एक मंदिर के एक कोने में आंखे मूंदकर मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ जपने लगा। लेकिन जब एक आघ घंटे बाद उसने आंखे खोली तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसे भिखारी समझकर उसके सामने लोगों ने पैंसे फेंक रखे थे। उसने उन्हें भगवान का प्रसाद समझ बटोरा और घर की राह पकड़ी और सोचने लगा भगवान बुद्ध को तो घोर तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ, किन्तु उसे तो आधे घंटे में ही भगवान ने अच्छी-खासी भिखारी की नौकरी दे दी।
घर पहुंचकर झूठ बोलकर उसने जब मां-बाप को नौकरी लगने की बात कही तो उन्हें लगा अब उनके अच्छे आ गए हैं। अब वह हर दिन कभी इस तो कभी उस धर्मस्थल पहुंचकर भीख मांगकर कमाने लगा। एक ही तरीके भीख मांगते-मांगते जब वह उकता गया तो घर में यह कहकर कि उसका स्थानांतरण हो गया है, वह चल पड़ा तीर्थ स्थलों की खाक छाने। जहां उसे भीख के साथ ही धर्म की विविध लीलाओं का ज्ञान भी प्रत्यक्ष देखने को मिला। वहां उसे बड़े-बड़े महात्मा मोक्ष बांटते तो कई लोग पाप धोते नजर आए। किसी का चिपटा तो किसी का ज्ञान बोलता दिखा। कहीं देवताओं के नाम पर चढ़ावा चढ़ रहा था तो कोई हाथ में खप्पर और गले में हड्डियों की माला पहने अपने को किसी महान ऋषि की संतान बताकर दान ले रहा था। कोई एक हाथ ऊपर उठाकर स्वर्ग पर चढ़ रहा था तो कोई विभूति लगाकर जटाएं फैलाकर अपने को सिद्ध महात्मा बनने का जतन कर रहा था। कई साधू भक्तों के सामने ऐसा रूप बनाते, त्योंरियां बदलते, स्वांग भरते कि भक्त उनकी मांग बिन बोले ही शाप देने के भय से पूरी कर रहे थे। मुंह में शाप और मन में पाप। यह सब देखकर उसका मन प्रसन्न हुआ तो उसे भी अच्छी कमाई का एक मंत्र मिल गया। उसने भी अपना वही पथ निश्चित कर लिया।
भले ही वह पंडित न था, लेकिन अपनी व्यवहार कुशलता के दम पर और अपने आस-पास के माहौल को देखकर उसने भी बहुत से गुर सीख लिए थे, जिससे उसकी आमदनी और पहचान बढ़ी तो आस-पास के पंडितों की तीक्ष्ण दृष्टि उस पर पड़ी तो सबने मिलकर उसे बाहरी व्यक्ति कहते हुए पाखंडी, नीच और न जाने क्या-क्या पुण्य श्लोक सुनाए तो वह दुःखी होकर वहां से कूच कर गया। शहरी बस्ती से दूर फिर वह एक मंदिर में जाकर भजन कीर्तन करने लगा। यह भगवान का ही प्रसाद था कि लोग उसे महात्मा समझकर उसके भक्ति भाव में डूबे भजन सुनने दूर-दूर से आने लगे। एक दिन एक सज्जन आए जिसने उसे अपने घर भोजन पर बुलाया। घर पहुंचकर उसने स्वादिष्ट भोजन किया। थोड़ा विश्राम करने के बाद जब उस सज्जन को उसने अपनी कहानी सुनाई तो वे सिहर उठे। सुनकर उन्हें लगा जैसे उन्हें कोई अपना आत्मीय मिल गया। उन्होंने उसे अपनी फैक्टरी में नौकरी करने का आमंत्रण दिया तो उसने झट से अपनी स्वीकृति दे ही। अंधे को क्या चाहिए दो-आँखें। वह बहुत खुश था आखिर उसकी फैक्टरी में नौकरी लग गई, उसे मजदूरी मिल गई।
...कविता रावत
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
22 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर रचना
मजदूर दिवस की शुभकामनाएं
मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।
बेहतरीन सामयिक रचना
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०२-०५-२०२०) को "मजदूर दिवस"(चर्चा अंक-३६६८) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
कविता दी, जो व्यक्ति मेहनत करके खाना चाहता हैं उसे यदि नौकरी मिल जाए तो उसे तो भगवान ही मिल जाता हैं। बहुत सुंदर रचना।
नौकरी भी मजदूरी ही तो है....
जरूरतें क्या क्या न करवा देती हैं
बहुत सुन्दर रचना
अच्छी कहानी ... सच है जिले मेहनत की आदत हो वो रास्ता इलने पर खुश होता है ...
अच्छी कहानी ...
स्वालम्बन और परिश्रम की सीख देती प्रेरक कहानी ।
अति सुंदर, जिस प्रकार आपने अपनी लेखनी द्वारा एक सजीव सा चित्रण कर डाला, वह वाकई काबिले तारीफ है। आप सर्वदा युहीं लिखते रहे, इसी कामना के साथ आपका बहुत बहुत धन्यवाद .....।
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर एक मजदूर को समर्पित।
कहानी अच्छी थी एक व्यक्ति को किन किन परिस्थितियों का सामना करने के पश्चात एक नौकरी मिली। लकिन यह आज की कहानी प्रतीत नही होती वह व्यक्ति इतने दिन साधु संतों के साथ रहा फिर मंदिर में भी भजन किया आज के युग मे इतना ही काफी है एक कथा वाचक बनने के लिए और लोग कर भी रहे है। लेकिन यह कहानी एक ऐसे मजदूर की थी जो परिश्रम करके अपने परिवार चलाना चाहता था।
Sachin3304.blogspot.com
मजदूर दिवस को सार्थक करती सुन्दर प्रस्तुति।
कितने ऐसे लोग है जो काम करना चाहते हैं पर काम नहीं है उनके पास. चलिए रोजगार भला.. घर में चराग जलेंगे। सुन्दर कहानी।
स्वावलम्बन मे ही बल है।
समाज के विविध पहलुओं को उजागर करती बहुत ही सुंदर एवं प्रेरक रचना। सादर
अच्छी कहानी
समाज के सभी आलम्बों को अपने अन्दर समेटती हुयी आपकी प्रस्तुति ।
बहुत अच्छी रचना
सुंदर रचना.
बहुत अच्छी कहानी
अत्यंत मार्मिक एवं सार्थक रचना
सुंदर सामयिक रचना
एक टिप्पणी भेजें