पेट की आग बुझाने के लिए रोटी अनिवार्य है। जब तक पेट में रोटी नही जाती तब तक सारी बातें खोटी लगती है। पापी पेट सबकुछ करवा सकता है। कहते हैं कि भूख की मार तलवार की धार से भी तेज होती है। भूखा कुत्ता भी डंडे की मार से नहीं डरता है और भूखा आदमी जितनी चीजें ढूंढ़ निकालता है, उतनी सौ वकील भी नहीं ढूंढ़ पाते हैं।

घर पहुंचकर झूठ बोलकर उसने जब मां-बाप को नौकरी लगने की बात कही तो उन्हें लगा अब उनके अच्छे आ गए हैं। अब वह हर दिन कभी इस तो कभी उस धर्मस्थल पहुंचकर भीख मांगकर कमाने लगा। एक ही तरीके भीख मांगते-मांगते जब वह उकता गया तो घर में यह कहकर कि उसका स्थानांतरण हो गया है, वह चल पड़ा तीर्थ स्थलों की खाक छाने। जहां उसे भीख के साथ ही धर्म की विविध लीलाओं का ज्ञान भी प्रत्यक्ष देखने को मिला। वहां उसे बड़े-बड़े महात्मा मोक्ष बांटते तो कई लोग पाप धोते नजर आए। किसी का चिपटा तो किसी का ज्ञान बोलता दिखा। कहीं देवताओं के नाम पर चढ़ावा चढ़ रहा था तो कोई हाथ में खप्पर और गले में हड्डियों की माला पहने अपने को किसी महान ऋषि की संतान बताकर दान ले रहा था। कोई एक हाथ ऊपर उठाकर स्वर्ग पर चढ़ रहा था तो कोई विभूति लगाकर जटाएं फैलाकर अपने को सिद्ध महात्मा बनने का जतन कर रहा था। कई साधू भक्तों के सामने ऐसा रूप बनाते, त्योंरियां बदलते, स्वांग भरते कि भक्त उनकी मांग बिन बोले ही शाप देने के भय से पूरी कर रहे थे। मुंह में शाप और मन में पाप। यह सब देखकर उसका मन प्रसन्न हुआ तो उसे भी अच्छी कमाई का एक मंत्र मिल गया। उसने भी अपना वही पथ निश्चित कर लिया।
भले ही वह पंडित न था, लेकिन अपनी व्यवहार कुशलता के दम पर और अपने आस-पास के माहौल को देखकर उसने भी बहुत से गुर सीख लिए थे, जिससे उसकी आमदनी और पहचान बढ़ी तो आस-पास के पंडितों की तीक्ष्ण दृष्टि उस पर पड़ी तो सबने मिलकर उसे बाहरी व्यक्ति कहते हुए पाखंडी, नीच और न जाने क्या-क्या पुण्य श्लोक सुनाए तो वह दुःखी होकर वहां से कूच कर गया। शहरी बस्ती से दूर फिर वह एक मंदिर में जाकर भजन कीर्तन करने लगा। यह भगवान का ही प्रसाद था कि लोग उसे महात्मा समझकर उसके भक्ति भाव में डूबे भजन सुनने दूर-दूर से आने लगे। एक दिन एक सज्जन आए जिसने उसे अपने घर भोजन पर बुलाया। घर पहुंचकर उसने स्वादिष्ट भोजन किया। थोड़ा विश्राम करने के बाद जब उस सज्जन को उसने अपनी कहानी सुनाई तो वे सिहर उठे। सुनकर उन्हें लगा जैसे उन्हें कोई अपना आत्मीय मिल गया। उन्होंने उसे अपनी फैक्टरी में नौकरी करने का आमंत्रण दिया तो उसने झट से अपनी स्वीकृति दे ही। अंधे को क्या चाहिए दो-आँखें। वह बहुत खुश था आखिर उसकी फैक्टरी में नौकरी लग गई, उसे मजदूरी मिल गई।
...कविता रावत
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!