प्रथम पूज्य गणपति जी की मूर्ति स्थापना के साथ ही पर्यावरण और हमारी झीलों को खतरनाक रसायनों से बचाने के उद्देश्य से मेरे शिवा ने इस बार गणेशोत्सव में अपने हाथों मिट्टी से एक-दो नहीं अपितु पूरी 30 गणेश प्रतिमाएं तैयार की हैं। पिछले 4-5 वर्ष से निरंतर प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी प्रतिमाओं के स्थान पर पर्यावरण और तालाब को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमारी आस्था, श्रद्धा और पूजा विधि के अनुरूप मिट्टी के गणेश की प्रतिमा स्थापित कर उनका पूजन और विसर्जन करने की अपील की जा रही है, लेकिन आज भी पूर्ण जागरूकता के अभाव के चलते बहुत बड़ी संख्या में पीओपी की प्रतिमाओं का निर्माण और विसर्जन किया जाना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
मैंने जब-जब मेरे शिवा को अपने हाथों से मिट्टी के गणेश की प्रतिमाओं की आकार देते देखा है तब-तब मैंने अनुभव किया कि पीओपी की तुलना में मिट्टी से गणेश प्रतिमा बनाने में कठिन परिश्रम और समय की आवश्यकता तो पड़ती ही है, साथ ही साथ उसके धैर्य की भी परीक्षा होती है। क्योंकि इसके लिए एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। पहले मिट्टी का चुनाव करना होता है फिर उससे कंकड़-पत्थर अलग करने फिर उसे लगभग २ दिन तक भिगो कर रखने और फिर उसके बाद उसे कपड़े से छानकर किसी दूसरे कपड़े में पोटली बनाकर किसी पेड़ या मजबूत रस्सी के बल पर लगभग ४-५ दिन के लिए लटका कर रखना होता है। इसके बाद पोटली खोलना और मिट्टी को आटे की तरह गूंथने के बाद उसकी जांच-परख कर मूर्ति बनाना शुरू करना और इस दौरान उसके एक-एक अंग को देखने जांचने और स्वयं ही निरीक्षण भी करना होता है।
मेरे बेटे का लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से कहना है कि - "भक्ति के साथ ही हम पर्यावरण सन्देश देना चाहते हैं, क्योँकि हम अभी कम उम्र के बच्चे हैं और पर्यावरण पर पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को हमें ही झेलना है। अभी नहीं चेते तो आगे चलकर बहुत दिक्कत होगी। दूसरा यह कि अपने से प्रतिमा बनाने से हमारी रचनात्मकता कला का विकास होता है। खुद से प्रतिमा निर्माण, डेकोरेशन और पूजा-पाठ से मन में भक्तिभाव भी ज्यादा आता है। अतः मेरी तरह ही अन्य बच्चे भी यदि अपने घर में मिट्टी की गणेश प्रतिमा तैयार कर विराजमान करने का संकल्प करेंगे तो निश्चित ही हम पर्यावरण प्रदूषित होने से बचाने में अपनी सफल भूमिका निभाने में सफल होंगे। "
कड़े परिश्रम से बनने वाली मिट्टी की प्रतिमाएं भले ही पीओपी से बनी प्रतिमाओं से कम सुन्दर और आकर्षक लगती हों, बावजूद इसके लोगों को यह बात कतई नहीं भूलनी चाहिए कि मिट्टी से बनी प्रतिमाएं हमारी आस्था, श्रद्धा और पूजन के साथ ही हमारे पर्यावरण के सर्वथा अनुकूल हैं और आज के समय की मांग है। अतः मिट्टी से बने गणेश ही घर में विराजमान करने का संकल्प सभी लोग करें तो हमारे झील और तालाब प्रदूषित होने से बच जाएंगे और हमारे पर्यावरण को किसी तरह की क्षति नहीं होगी। जब भी मैं मेरे शिवा को मिट्टी से सने कपड़ों में गणेश की प्रतिमा अपने हाथों से बनांते देखती हूँ तो मुझे कवि 'रत्नम' की ये पंक्तियाँ याद आती हैं-
"जीवन की अमूल्य धरोहर है
अपने तन में दो लगे हाथ
मैंने 'रत्नम' जान लिए -
यह अपने हाथ हैं जगन्नाथ"