लो फिर आ गया एक पर्व की तरह हमारा हिन्दी का महोत्सव। हर वर्ष की भांति 14 सितम्बर को हिन्दी चेतना जागृत करने, उसके प्रति निष्ठा व्यक्त करने और उसका सिंहावलोकन कर उसकी प्रगति पर विचार करने के उद्देश्य से लगाई गई प्रदर्शिनी, मेले, गोष्ठी, सम्मेलन एवं समारोहों को देखकर एक पल को ऐसा लगता है जैसे हमारी मातृभाषा हिन्दी के भाग खुल गए हों। इस दिवस विशेष के अवसर पर सरकारी हो या गैर-सरकारी संस्थाएं सब अपने-अपने स्तर से ’अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग’ अलापने में एक-दूसरे से पीछे नहीं दिखते हैं। इस अवसर पर हिन्दी भाषी राज्यों की बात ही कुछ और होती है, क्योंकि वहाँ हिन्दी राजकाज की भाषा होने से कोई विशेष कार्यक्रम तो देखने को नहीं मिलते हैं। हाँ इतना जरूर होता है कि कुछ हिन्दी सेवियों को पुरस्कृत तथा सम्मानित कर औपचारिकता पूरी कर ली जाती है। केन्द्र सरकार के कार्यालयों और बैंकों का क्या कहना, यहाँ तो पहले से ही अंग्रेजी का ही बोलबाला रहता है, इसलिए यहाँ हिन्दी दिवस आते ही कहीं हिन्दी-सप्ताह तो कहीं हिन्दी पखवाड़ा नाम से बडे़-बड़े पोस्टर और वाद-प्रतियोगिता के माध्यम से हिन्दी का मोह प्रकट कर लिया जाता है।
आज जहाँ एक ओर सम्पूर्ण विश्व में हिन्दी बोलने, पढ़ने, समझने और लिखने वालों की कोई कमी नहीं, वहीं दूसरी ओर ‘इस घर को आग लग गई घर के चिराग से’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वालों की भी कमी नहीं है। इस संबंध में आज ही के दिन घटित एक वाकया का आंकलन कर आप स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं-
हुआ यूँ कि आज सुबह-सुबह मेरी एक सहेली का फोन आया। कहने लगी कि मेरा अभी-अभी एक ऐसी संस्था से परिचय हुआ है जो वीडियो के माध्यम से बहुत ही सरल ढंग से अंग्रेजी बोलना सिखा रहे हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम भी आकर पहले मुझसे समझ लो और फिर मेरे साथ वहाँ चलकर अंग्रेजी बोलना सीख लो। क्योंकि मैं नहीं चाहती कि जब तुम मेरी तरह कभी विदेश या दक्षिण भारत की सैर करने निकलो तो अंग्रेजी न बोल पाने के कारण शर्मिंदगी महसूस करो। उसकी बातें सुनकर मैं हक्की-बक्की रह गई, सोचने पर मजबूर हुई कि क्या सचमुच दुनिया में किसी को अपनी मातृभाषा बोलने के कारण शर्मिंदगी महसूस होती होगी? खैर उसकी बातें सुनने के बाद मुझे उसे बताना पड़ा कि आज हिन्दी दिवस है इसलिए कम से कम आज तो अंग्रेजी का गुणगान छोड़़ दो और जरा गंभीरता से अपनी मातृभाषा हिन्दी के बारे में सोचने, समझने और जानने की कोशिश तो कर लो। लेकिन मेरी इतनी सी बात वह हजम न कर पायी, उसने एक ऐसी लम्बी चुपी साधी कि मुझे लगा जैसे उसे कोई सांप सूंघ गया हो। उसने बिना कोई प्रतिक्रिया के ही फोन कट कर दिया। मैं सोचने लगी कहीं हिन्दी दिवस के अवसर पर ऐसे वीडियो प्रचारित करना हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के विरुद्ध यह अंग्रेजी परस्तों की साजिश तो नहीं? खैर छोड़िए कोई बात नहीं, मैं तो उनसे यही कहूँगी कि-
“छोड़ दो साजिशें तुम्हारी अब एक न चलेगी
हिन्दी है माथे की बिन्दी माथे पर ही सजेगी“
....कविता रावत
7 टिप्पणियां:
हिंदी द8वीएएस की हार्दिक शुभकामनाएं,कविता दी। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
प्रभावी चिंतन एवं सार्थक आलेख ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 16 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया लेख।
सार्थक आलेख
हिंदी दिवस पर सरथ लेखन।आपको बहुत शुभकामनाएँ।
बहुत समय बाद आपकी पोस्ट पढ़ रहा हूं। आपको भी हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
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