दो दिन से नल से पानी की एक बूँद भी नहीं टपकी है। ये पानी पिलाने वाला विभाग भी बोलता कुछ और है और करता कुछ और ही है। इधर हमको कहा एक दिन की परीक्षा है और उधर दो दिन तक बिठा के रख दिया। कहाँ तो एक दिन परीक्षा देने में ही हालत ख़राब हो जाती है और यहाँ दो दिन तक परीक्षा में बिठाये रखा। अब जब घर में पानी नहीं होगा तो इस भीषण गर्मी में पियेंगे क्या, भांडे-बर्तन धोना और नहाना-धोना कैसे होगा? पेड़-पौधों को पानी देने की बात तो भूल ही जाइये। आजकल शादी-ब्याह भी खूब हो रहे हैं और कोरोना से मुक्ति क्या मिली कि भीड़-भाड़ भी जमकर हो रही है। भीषण गर्मी का मौसम है तो पानी की खपत भी बढ़ी है। ऐसे हालातों में पानी न मिले तो सोचो लोग-बाग़ क्या करेंगे? अगर ऐसे में पानी की चोरी होने लगे तो क्या यह ताज्जुब वाली बात होगी? नहीं न। कोई ताज्जुब वाली बात नहीं होगी, लेकिन यह सब जिस पर गुजरती है, वह बखूबी समझता है, लेकिन यह बात पानी पिलाने वाले विभाग के भेजे में घुसती ही नहीं है।
आज जब तीसरे दिन पानी आया तो सोचा वर्तन-भांडे, टंकियां सब भरकर रख देंगे, क्योंकि कोई भरोसा नहीं कब पानी आये कब नहीं? लेकिन आधा घंटा पानी भरा होगा कि जैसे ही मैंने कुछ बर्तन धोकर किचन का नल खोला तो देखा कि जैसे उसके गले में कुछ फँस के रह गया हो और वह खांसने-खंखारने जैसी आवाज कर जोर-जोर से सांस लेने लगा, यह देख मुझे लगा जैसे उसकी सांसे उखड़ रही हों और इससे पहले कि मैं कुछ समझती उसकी साँसे सचमुच उखड गई। मैं घबराई अब क्या होगा? मैं छत पर रखी पानी की टंकी का निरीक्षण करने पहुंची तो देखा छत पर तो कोई नहीं था, लेकिन मैं यह देखकर दंग रह गई कि टंकी के पेट में किसी ने दो मोटे-मोटे पाइप घुसेड़ रखे हैं, जो उसका पेट खाली कर चुके थे। अब वहां कोई था नहीं और जिस टंकी तक पाईप गये थे, वह भर चुकी थी। पानी चोरी करने वाले कौन हैं इसका मुझे पता नहीं था। अब मुझे जल्दी से खाना बनाकर ऑफिस भी तो जाना है, इसलिए मैंने ज्यादा सोच-विचार न कर चुराया हुआ पानी वापस खींचकर उन्हीं दोनों पाइपों से अपनी टंकी भर ली। फिर मैंने वह किया शायद जो मुझे न चाहते हुए भी करना पड़ा। पानी चोरों को सबक सीखने की नियत से मैंने छत से दोनों पाईप को उठाकर इतनी दूर पटका दिया कि बेचारे फिर हमारी टंकी के पेट भी घुसने के लायक नहीं बचे, जिसे देख मुझे तसल्ली हुई तो तो मैं फ़ौरन नीचे उतर आई।
किचन में खाना पकाते और फिर जब ऑफिस गई तो दिन भर पानी चोरों के बारे में कई बातें मन में आती-जाती रही। पानी चोर विदेशों में भी होती होगी, यह हमें मालूम नहीं है, लेकिन हमारे देश में पानी चोरी का इतिहास बड़ा ही रोचक और भयानक है। यहाँ गांव से लेकर शहर हर जगह पानी चोर बड़ी सुगमता से मिल जाएंगे। गांव में कुएं हो या तालाब या फिर नहर पानी चोरों की सब जगह पैठ है। शहर के बड़े-बड़े औद्यौगिक प्रतिष्ठानों में टैंकरों से पानी चोरी आम बात है और छतों में रखी पानी की टंकियों से पानी चुराने पर एफआईआर लिखवाने और महाभारत छिड़ने के किस्से भी किसी से छुपे नहीं हैं। इन पानी चोरों के बारे में बहुत सी बातें लिखने का मन बहुत करता है, लेकिन इनके चक्कर में कहीं पानी पिलाने वाला विभाग कनेक्शन न कट कर दे, यही सोच चुप हो लेते हैं और पानी के रंगत में गुनगुनाने बैठ जाते हैं कि -
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा
जिसमें मिला दो लगे उस जैसा
2 टिप्पणियां:
एकदम सामयिक, सार्थक और सटीक रचना।
पानी का खेल तो ऐसा है की लोग कहते हैं अगला युद्ध विश्व युद्ध पानी पर ही होने वाला है ...
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