अभी हम स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट पर टहलते हुए कुछ ही कदम चले होंगे कि अचानक ऐसा कुछ हुआ कि मुझे लगा स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट की किसी ने जैसे हवा निकाल ली हो। हुआ यूँ कि हम दोनों स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट की चकाचौंध में खोये और बतियाते हुए उसका इधर-उधर से निरीक्षण करते हुए आगे बढ़े जा रहे थे कि तभी पड़ोसन का किसी चीज पर पांव क्या पड़ा कि वह फिसल गई। वह तो गनीमत रही कि हम साथ-साथ चल रहे थे तो मैंने ऐन वक्त पर उसका हाथ पकड़ लिया, नहीं तो वह निश्चित ही बहुत बुरी तरह गिरती, जिससे उसे गंभीर चोट लग सकती थी। मैंने उसे संभाला और कहा कि क्या हुआ तो वह घबराते हुए अपनी चप्पलों पर लगा चिपचिपा दिखाते हुए बोली- 'ऐ ,छी, छी, देखो! किसी ने कुत्ते को यहाँ हगा रखा था।' और वह गुस्से में इधर-उधर कुत्ते घुमाने वालों को घूरते हुए अपना गुस्सा उतारने के लिए उन्हें गाली देते हुए बड़बड़ाने लगी। मैंने उसे जैसे-तैसे चुप कराना चाहा और उसकी चप्पल में लगी पोटी निकालने के लिए सड़क किनारे से एक पत्थर उठा कर दिया तो मेरे हाथ में ताजे-ताजे गुटखे की पीक क्या लगी कि वह गाली देना भूल गई और मेरी उँगलियों पर लगी पीक की ओर इशारा करते हुए जोर-जोर से हँसने लगी। यह देख मैं अवाक रह गई! उसकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। यह नज़ारा देख आस-पास घूमने-फिरने वाले कोई हँस पड़ता तो कोई मुस्कुराते निकल जाता। वह हँसते-हँसते कहने लगी- 'अब तू भी दे ही डाल, दो-चार प्यारी-प्यारी गाली, अभी मुझे चुप कर रही थी न?' अब दो-चार बातें मेरे मन भी आई कि सुना ही दूँ, लेकिन किसे सुनाऊँ और किसे छोड़ दूँ, बड़ी दुविधा थी तो चुप्पी साध लेने में मैंने अपनी भलाई समझी। बुलेवर्ड स्ट्रीट की इस सुहावनी रात की सैर का सारा मजा किरकिरा हो गया। अब और घूमना-फिरना यह सोचकर और मुश्किल हो गया कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, लेकिन मन समझाने लगा- नहीं यार, यह तो सबके साथ होता है। हाँ ये बात अलग है सबको बहुत कुछ दिखते हुए भी कुछ नहीं दिखाई नहीं देता। बस चुप रहने में ही सभी अपनी भलाई समझते हैं, लेकिन तू कहाँ चुप रहने वालों में है।
खैर हम दोनों जैसे-तैसे थोड़ी देर और घूमते रहे और फिर खट्टे मन से घर लौट आये। घर लौटते समय मैं स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट पर पलीता लगाते लोगों की बारे में सोचती रही कि स्मार्ट सिटी तो एक दिन जरूर बनकर तैयार हो जाएगी, लेकिन क्या उन लोगों को कभी स्मार्ट बनाया जा सकेगा? जो सुबह-शाम अपने पालतू कुत्तों को इधर-उधर कहीं भी हगा लेते हैं और पान-गुटके की पीक से हर जगह गन्दगी फ़ैलाने से बाज नहीं आते हैं?
सोचती हूँ जब हमारे भोपाल में स्मार्ट सिटी बन के तैयार जाएगी, तब स्मार्ट सिटी का जो उद्देश्य “परंपरा एवं विरासत से भरे, झीलों के शहर भोपाल को शिक्षा, अनुसंधान, उद्यमता तथा पर्यटन पर केन्द्रित स्मार्ट, नियोजित, पर्यावरण हितैषी समुदायों का एक प्रमुख गंतव्य बनाना” है, उसके लिए स्मार्ट लोग कहाँ से आयातित करेंगे? यह बात मेरी तो समझ से परे है, इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
शेष फिर ..... तब तक गुनगुनाते रहिए . ...
कौन सुनेगा किसको सुनाये
कौन सुनेगा किसको सुनाये
इस लिए चुप रहते हैं
हमसे अपने रूठ न जाएँ
हमसे अपने रूठ न जाएँ
इस लिए चुप रहते हैं"
..कविता रावत
8 टिप्पणियां:
रोचक संस्मरण और वाजिब प्रश्न !!
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (04-05-2022) को चर्चा मंच नाम में क्या रखा है? (चर्चा अंक-4420) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
बहुत ही उचित सवाल कविता दी। स्मार्ट सिटी तोबना दोगे लेकिन स्मार्ट नागरिक कहां से लाओगे?
हाहा बहुत badhiya
उचित वाजिब प्रश्न
यथार्थ पर प्रहार करता शानदार संस्मरण।
हम सुंदर जगहों का निर्माण तो कर लेते हैं पर आम मानसिकता को बदलना असंभव सा है।
सटीक सुंदर।
लोग जब तक सुधरेंगे नहीं तब तक स्मार्ट सिटी भी साफ नहीं रह पाएगी। रोचक संस्मरण। ज्यादातर जगहों का यही हाल है। कहते हैं लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं। भारतीय जनता का भी यही हाल है। सिंगापुर जैसा प्रावधान होना चाहिए जहां गंदगी फैलाने वाले को तगड़ा जुर्माना भरना पड़ता। तभी शायद सुधार हो।
एक टिप्पणी भेजें