बुलेवर्ड स्ट्रीट की एक शाम - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 3 मई 2022

बुलेवर्ड स्ट्रीट की एक शाम

पिछले दो वर्ष से अधिक समय से कोरोना के मारे घर में मुर्गा-मुर्गियों के दबड़े की तरह उसमें दुबक कर रह गए थे। अभी मौसम का मिजाज क्या गर्मियाया कि अब हर सुबह-शाम घूमने-फिरने की आदद पड़ गई है। हर दिन की तरह कल शाम को खाना खाकर जब बाहर टहल रही थी तो थोड़ी देर में हमारी पड़ोसन भी आकर हमारे साथ-साथ टहलने लगी। टहलते-टहलते वह बोली कि चलो स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट तक चलते हैं। रात को वहां बहुत अच्छा लगता है, बहुत लोग घूमने आते हैं। बुलेवर्ड स्ट्रीट हमारे घर से महज ५ मिनट की दूरी पर है, इसलिए धीरे-धीरे खाना पचाते हुए हम बुलेवर्ड स्ट्रीट पहुँच गए। बुलेवर्ड स्ट्रीट के दोनों ओर आकर्षक विद्युत सज्जा और विभिन्न प्रकार के फूलों से लदी डालियों के बीच सुन्दर-सुन्दर पेड़-पौधों के साथ ही बैठने के लिए लगाईं गई उत्तम लकड़ी की कुर्सियां और बेंच लोगों का घ्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहाँ सुबह-शाम घूमने-फिरने वाले लोगों का ताँता लगा रहता है। जहाँ हमें हर तरह के लोग देखने को मिलते हैं और इन्हीं लोगों के बीच जब कभी कोई अपना भूला-भटका पहचान वाला या रिश्तेदार मिल जाता है तो सैर का मजा दुगुना हो जाता है।

            अभी हम स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट पर टहलते हुए कुछ ही कदम चले होंगे कि अचानक ऐसा कुछ हुआ कि मुझे लगा स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट की किसी ने जैसे हवा निकाल ली हो। हुआ यूँ कि हम दोनों स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट की चकाचौंध में खोये और बतियाते हुए उसका इधर-उधर से निरीक्षण करते हुए आगे बढ़े जा रहे थे कि तभी पड़ोसन का किसी चीज पर पांव क्या पड़ा कि वह फिसल गई। वह तो गनीमत रही कि हम साथ-साथ चल रहे थे तो मैंने ऐन वक्त पर उसका हाथ पकड़ लिया, नहीं तो वह निश्चित ही बहुत बुरी तरह गिरती, जिससे उसे गंभीर चोट लग सकती थी। मैंने उसे संभाला और कहा कि क्या हुआ तो वह घबराते हुए अपनी चप्पलों पर लगा चिपचिपा दिखाते हुए बोली- 'ऐ ,छी, छी, देखो! किसी ने कुत्ते को यहाँ हगा रखा था।' और वह गुस्से में इधर-उधर कुत्ते घुमाने वालों को घूरते हुए अपना गुस्सा उतारने के लिए उन्हें गाली देते हुए बड़बड़ाने लगी। मैंने उसे जैसे-तैसे चुप कराना चाहा और उसकी चप्पल में लगी पोटी निकालने के लिए सड़क किनारे से एक पत्थर उठा कर दिया तो मेरे हाथ में ताजे-ताजे गुटखे की पीक क्या लगी कि वह गाली देना भूल गई और मेरी उँगलियों पर लगी पीक की ओर इशारा करते हुए जोर-जोर से हँसने लगी। यह देख मैं अवाक रह गई! उसकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही  थी। यह नज़ारा देख आस-पास घूमने-फिरने वाले कोई हँस पड़ता तो कोई मुस्कुराते निकल जाता। वह हँसते-हँसते कहने लगी- 'अब तू भी दे ही डाल, दो-चार प्यारी-प्यारी गाली, अभी मुझे चुप कर रही थी न?' अब दो-चार बातें मेरे मन भी आई कि सुना ही दूँ, लेकिन किसे सुनाऊँ और किसे छोड़ दूँ, बड़ी दुविधा थी तो चुप्पी साध लेने में मैंने अपनी भलाई समझी। बुलेवर्ड स्ट्रीट की इस सुहावनी रात की सैर का सारा मजा किरकिरा हो गया।  अब और घूमना-फिरना यह सोचकर और मुश्किल हो गया कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, लेकिन मन समझाने लगा- नहीं यार, यह तो सबके साथ होता है।  हाँ ये बात अलग है सबको बहुत कुछ दिखते हुए भी कुछ नहीं दिखाई नहीं देता। बस चुप रहने में ही सभी अपनी भलाई समझते हैं, लेकिन तू कहाँ चुप रहने वालों में है।    

          खैर हम दोनों जैसे-तैसे थोड़ी देर और घूमते रहे और फिर खट्टे मन से घर लौट आये। घर लौटते समय मैं स्मार्ट सिटी की बुलेवर्ड स्ट्रीट पर पलीता लगाते लोगों की बारे में सोचती रही कि स्मार्ट सिटी तो एक दिन जरूर बनकर तैयार हो जाएगी, लेकिन क्या उन लोगों को कभी स्मार्ट बनाया जा सकेगा? जो सुबह-शाम अपने पालतू कुत्तों को इधर-उधर कहीं भी हगा लेते हैं और पान-गुटके की पीक से हर जगह गन्दगी फ़ैलाने से बाज नहीं आते हैं?      

          सोचती हूँ जब हमारे भोपाल में स्मार्ट सिटी बन के तैयार जाएगी, तब स्मार्ट सिटी का जो उद्देश्य  “परंपरा एवं विरासत से भरे, झीलों के शहर भोपाल को शिक्षा, अनुसंधान, उद्यमता तथा पर्यटन पर केन्द्रित स्मार्ट, नियोजित, पर्यावरण हितैषी समुदायों का एक प्रमुख गंतव्य बनाना” है, उसके लिए स्मार्ट लोग कहाँ से आयातित करेंगे? यह बात मेरी तो समझ से परे है, इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?    

शेष फिर  ..... तब तक गुनगुनाते रहिए  . ...

कौन सुनेगा किसको सुनाये

कौन सुनेगा किसको सुनाये

इस लिए चुप रहते हैं

हमसे अपने रूठ न जाएँ 

हमसे अपने रूठ न जाएँ

इस लिए चुप रहते हैं"  

..कविता रावत