पिछले दिनों जब मैं छत पर गया तो यह देखकर हैरान रह गया कि मेरी पत्नी ने कुछ दिन पहले घर की छत पर जो गमले रखवाकर उनमें पेड़-पौधे लगाए थे, वे फल-फूलों से लदने लगे थे। मैंने देखा कि एक नींबू के पौधे में दो नींबू लटके हुए थे और एक मिर्च के पौधे में दो-चार हरी-हरी मिर्च भी तनी हुई थी। जब मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक मुरझाये बांस के पौधे का बड़ा गमला घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी तो मैंने जिज्ञासा बस कारण पूछा तो वह बोली, 'यहाँ यह बांस का पौधा सूख रहा है, इसलिए इसे खिसकाकर दूसरे पौधों के पास कर रही हूँ।" यह सुनकर मैं हँस पड़ा और मैंने कहा, 'अरे पौधा सूख रहा है तो उसे खाद-पानी दो, इस तरह खिसकाकर दूसरे पौधे के पास कर देने से क्या होगा? मेरी बात सुनकर पत्नी मुस्कुराते हुए बोली,'अरे ये पौधा यहाँ अकेला होने से मुरझा रहा है। इसलिए इसे मैंने दूसरे पौधे के पास कर दिया है, अब देखना यह फिर से लहलहा उठेगा। आपको शायद यह बात नहीं मालूम कि पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाय तो वे जी उठते हैं।" मुझे पत्नी की यह बात पहले थोड़ी अजीब लगी लेकिन जब मैंने गहराई से सोचा तो मेरे आँखों के आगे एक-एक कर कई चित्र उभरने लगे। मुझे याद आया कि माँ की मौत के बाद पिताजी भी तो कैसे एक ही रात में बूढ़े, बहुत बूढ़े हो गए थे। हालाँकि उनके गुजरने के बाद वे सोलह वर्ष तक जीवित रहे, लेकिन ऐसे ही अकेले सूखते हुए पौधे की तरह। जिन्हें मैंने माँ के रहते हुए कभी उदास नहीं देखा, वे एकाएक उनके जाने के बाद खामोश से हो गए थे। मुझे पत्नी की बातों पर पूरा विश्वास होने लगा। मुझे लगा सचमुच पौधे भी अकेले में सूख जाते होंगे।
मुझे याद आया कि बचपन में मैं एक बार बाजार से एक छोटी सी रंगीन मछली खरीद कर लाया था और उसे शीशे के जार में पानी भरकर रख दिया था। मछली सारा दिन गुमसुम रही। मैंने उसके लिए खाना भी डाला, लेकिन वह चुपचाप इधर-उधर पानी में अनमनी सी घूमती रही। सारा खाना जार की तलहटी में जाकर बैठ गया। मछली ने कुछ नहीं खाया। दो दिन तक वह ऐसे ही बेचैन होकर इधर से उधर टहलती रही और अगली सुबह मैंने देखा कि वह पानी की सतह पर उलटी पड़ी थी। मुझे आज फिर वह घर में पाली अकेली छोटी सी मछली की बड़ी याद आई।सोचने लगा तब यदि किसी ने मुझे यह बताया होता तो कम से कम दो, तीन या ढेर सारी मछलियां खरीद लाता और मेरी वह प्यारी मछली यूँ तन्हा न मरती।
बचपन ने एक बार माँ ने बताया कि लोग मकान बनवाते समय रोशनी के लिए कमरे में दीपक रखने के लिए दीवार में इसलिए दो मोखे बनवाते थे, ताकि बेचारा अकेला मोखा कहीं गुमसुम और उदास न हो जाय। तब तो इतनी समझ नहीं थी लेकिन अब लगता है कि सच में संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं होगा। आदमी हो या पौधा, हर किसी को किसी न किसी के साथ की जरुरत होती है। इसलिए आप अपने आस-पास झांकिए, अगर कहीं कोई अकेला दिखे तो उसे अपना साथ दीजिये और उसे मुरझाने से बचाइए। अगर आप अकेले हों तो किसी का साथ लीजिये और खुद को भी मुरझाने से रोकिए। अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है। गमले के पौधे को तो हाथ से खींचकर एक दूसरे पौधे के पास किया जा सकता है, लेकिन आदमी को करीब लाने के लिए रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की जरुरत होती है। अगर कहीं आपको लगे की जिंदगी का रस सूख रहा है, जीवन मुरझा रहा है तो उस पर रिश्तों के प्यार का रस डालिए। खुश रहिये और मुस्कुराइए। अगर कोई यूँ ही किसी कारण से आपसे दूर हो गया है तो उसे अपने करीब लाने की कोशिश कीजिए।
अवधेश चन्द्र गुप्ता
वरिष्ठ प्रबंधक (नियोजन एवं तकनीकी प्रकोष्ठ)
टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड
कोटेश्वर (उत्तराखंड)
11 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-07-2022) को
चर्चा मंच "गरमी ने भी रंग जमाया" (चर्चा अंक-4496) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत अच्छी और सच्ची बात कही गई है इस पोस्ट में।
कविता जी, बहुत ही सुन्दर सन्देश है आपका. एकाकीपन तो कालेपानी की सज़ा से कम नहीं है.
Thanks for this precious post.
कभी कभी, औरों के साथ हो कर भी मन अकेला रहता है। इंसानों ने अकेलेपन को भरने के लिए पत्रिकाएँ, पुस्तकें, टीवी आदि खोज लिये हैं लेकिन किसी से मन की बातें कहने में जो सुख है, वह किसी और बात में नहीं।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ जुलाई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर संदेश सहित प्रेरणा देती रचना ।
सचमें अकेलापन जीवन में सबसे बड़ी सजा है
बहुत सटीक एवं लाजवाब लेख
पौधे ही नहीं सभी प्राणियों क्षको साथ की जरुरत होती है।
अकेलेपन पर सोचने के लिए मजबूर करती पोस्ट ।
बहुत ही मार्मिक और प्रेरक
सुन्दर संदेश देती यह प्रस्तुति भावुक भी करती है। लेखक को बहुत-बहुत शुभकामनायें
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