मुरझाये पौधे भी खिल उठते
जब उमड़-घुमड़ बरसे पानी।
आह! इन बादलों की देखो
अजब-गजब की मनमानी।।
देख बरसते बादलों को ऊपर
पेड़-पौधे खिल-खिल उठते हैं।
जब बरसते बादल बूंद- बूंद
तब अद्भुत छटा बिखेरते हैं।।
अजब- गजब रंग बिखरते
चहुंदिशि फ़ैलती हरियाली।
उमड़-घुमड़ ज्यों बरसे बदरा
मनमोहक बनती डाली-डाली।।
आह! काले-भूरे बदरा नभ से
तुम कैसा अमृत बरसाते हो?
बूंद-बूंद, बरस-बरस धरा को
दर्पण के सम चमकाते हो।।
ये घनघोर काली घटाएं देखो
गरज-चमक करती हैं बौछारे।
भर उठे मन उमंग-तरंग मेरा
देखूं बगिया ऊपर बरसे सारे।।
...कविता रावत