जब उमड़-घुमड़ बरसे बदरा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 4 जुलाई 2022

जब उमड़-घुमड़ बरसे बदरा

मुरझाये पौधे भी खिल उठते

जब उमड़-घुमड़ बरसे पानी।

आह! इन बादलों की देखो

अजब-गजब की मनमानी।।


देख बरसते बादलों को ऊपर

पेड़-पौधे खिल-खिल उठते हैं।

जब बरसते बादल बूंद- बूंद

तब अद्भुत छटा बिखेरते हैं।।


अजब- गजब रंग बिखरते

चहुंदिशि फ़ैलती हरियाली।

उमड़-घुमड़ ज्यों बरसे बदरा

मनमोहक बनती डाली-डाली।।


आह! काले-भूरे बदरा नभ से

तुम कैसा अमृत बरसाते हो?

बूंद-बूंद, बरस-बरस धरा को

दर्पण के सम चमकाते हो।।


ये घनघोर काली घटाएं देखो

गरज-चमक करती हैं बौछारे।

भर उठे मन उमंग-तरंग मेरा

देखूं बगिया ऊपर बरसे सारे।।

...कविता रावत