जब उमड़-घुमड़ बरसे बदरा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 4 जुलाई 2022

जब उमड़-घुमड़ बरसे बदरा

मुरझाये पौधे भी खिल उठते

जब उमड़-घुमड़ बरसे पानी।

आह! इन बादलों की देखो

अजब-गजब की मनमानी।।


देख बरसते बादलों को ऊपर

पेड़-पौधे खिल-खिल उठते हैं।

जब बरसते बादल बूंद- बूंद

तब अद्भुत छटा बिखेरते हैं।।


अजब- गजब रंग बिखरते

चहुंदिशि फ़ैलती हरियाली।

उमड़-घुमड़ ज्यों बरसे बदरा

मनमोहक बनती डाली-डाली।।


आह! काले-भूरे बदरा नभ से

तुम कैसा अमृत बरसाते हो?

बूंद-बूंद, बरस-बरस धरा को

दर्पण के सम चमकाते हो।।


ये घनघोर काली घटाएं देखो

गरज-चमक करती हैं बौछारे।

भर उठे मन उमंग-तरंग मेरा

देखूं बगिया ऊपर बरसे सारे।।

...कविता रावत 

10 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आखिर बादल बरस ही गए । सुंदर शब्द चित्रांकन ।

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०५-०७ -२०२२ ) को
'मचलती है नदी'( चर्चा अंक-४४८१)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहद खूबसूरत रचना।

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

ये घनघोर काली घटाएं देखो
गरज-चमक करती हैं बौछारे।
–चाक और कुटिया होते उदास

–सुन्दर प्रस्तुति

रंजू भाटिया ने कहा…

खूबसूरत रचना

शुभा ने कहा…



वाह!कविता जी ,खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

Naresh nehra ने कहा…

एकदम सामयिक, सार्थक और सटीक रचना

MANOJ KAYAL ने कहा…

सराहनीय सृजन।

Sudha Devrani ने कहा…

बरसते बादलो पर बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

वर्षा ऋतु की आमद का अहसास कराती सुंदर रचना ।