मुरझाये पौधे भी खिल उठते
जब उमड़-घुमड़ बरसे पानी।
आह! इन बादलों की देखो
अजब-गजब की मनमानी।।
देख बरसते बादलों को ऊपर
पेड़-पौधे खिल-खिल उठते हैं।
जब बरसते बादल बूंद- बूंद
तब अद्भुत छटा बिखेरते हैं।।
अजब- गजब रंग बिखरते
चहुंदिशि फ़ैलती हरियाली।
उमड़-घुमड़ ज्यों बरसे बदरा
मनमोहक बनती डाली-डाली।।
आह! काले-भूरे बदरा नभ से
तुम कैसा अमृत बरसाते हो?
बूंद-बूंद, बरस-बरस धरा को
दर्पण के सम चमकाते हो।।
ये घनघोर काली घटाएं देखो
गरज-चमक करती हैं बौछारे।
भर उठे मन उमंग-तरंग मेरा
देखूं बगिया ऊपर बरसे सारे।।
...कविता रावत
10 टिप्पणियां:
आखिर बादल बरस ही गए । सुंदर शब्द चित्रांकन ।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०५-०७ -२०२२ ) को
'मचलती है नदी'( चर्चा अंक-४४८१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बेहद खूबसूरत रचना।
ये घनघोर काली घटाएं देखो
गरज-चमक करती हैं बौछारे।
–चाक और कुटिया होते उदास
–सुन्दर प्रस्तुति
खूबसूरत रचना
वाह!कविता जी ,खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
एकदम सामयिक, सार्थक और सटीक रचना ।
सराहनीय सृजन।
बरसते बादलो पर बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन ।
वर्षा ऋतु की आमद का अहसास कराती सुंदर रचना ।
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