आज सोचती हूँ पेड़-पौधों के प्रति प्रेम-भावना तो हमारे देश में बहुत प्राचीन काल से है। हम तो पेड-पौधों को लकड़ी की साधारण ठूंठ ही नहीं, बल्कि उन्हें देवता मानते आए हैं। भगवान शंकर का निवास मानकर हम वट की पूजा तो आमलकी एकादशी को आंवला की पूजा करते हैं। पीपल और तुलसी की पूजा तो प्रतिदिन होती है। फिर आखिर क्यों हमने लालच में ईश्वरीय सृष्टि की अलौकिक, अद्भुत, असीम एवं विलक्षण कलास्वरूप प्रकृति-सौंदर्य के कोश को लूटने के लिए उससे शत्रुता मोल लेकर उसके हरे-भरे खेत नष्ट किए, वन-उपवन काटे, हरियाली उजाडी, पहाड़ों को तोड़ा और नदियों को मरोड़ने का दुस्साहस किया? क्यों उसके हरे-भरे खेतों के स्थान पर बड़ी-बड़ी इमारतें तानकर, अमूल्य-बहुमूल्य पदार्थों के कोश वनों के स्थान पर बडे-बड़े औद्योगिक संस्थान खड़े करके सुगंधित वायुमंडल को दूषित कर और विषैली गैसों से पावन जल को अपवित्र कर विकसित होने का दंभ भर रहे हैं? हम क्यों भूल रहे हैं कि पेड़-पौधे तो प्राकृतिक सुंदरता के घर हैं, हरियाली का स्रोत हैं, स्वास्थ्य वृद्धि की बूटी हैं, वर्षा के निमंत्रणदाता हैं, प्रकृति के रक्षक हैं, प्रदूषण के नाशक हैं, प्राणिमात्र के पोषक हैं। वे अपने पत्तों, फल-फूल, छाया, छाल, मूल, वल्कल, काष्ठ, गंध, दूध, भस्म, गुठली और कोमल अंकुर से प्राणि-मात्र को लाभ पहुंचाते हैं। बावजूद इसके आज यह गंभीर चिंतन का विषय बना है कि-
“बरगद, पीपल, नीम को, काट ले गये लोग।हवा भी जहरी हुई, फैला जहरी रोग।।“

इसी उद्देश्य से आज हम आपको हमारे घर से थोड़ी दूर स्थित #श्यामला_हिल्स_की _पहाड़ी पर बने भगवान शंकर के मंदिर “जलेश्वर मंदिर“ में हमारे द्वारा लगभग 200,-250 जिसमें #फलदार पेड़ों में #आम #अमरूद #जामुन #केला #बादाम #नींबू #नारियल #कटहल #सीताफल #आंवला #अनार #शहतूत #बेर तो #छायादार पेड़ों में #बरगद #पीपल #नीम #गूलर #अशोक और फूलों में #चांदनी #गुड़हल #कनेर #चंपा #गेंदा तो #पूजा और औषधि गुण से भरपूर पौधों में #तुलसी #बेलपत्र #शम्मी #हरसिंगार या #पारिजात एवं अन्य जगली पेड़-पौधों में #जंगल जलेबी #चंदन#,मेहंदी आदि के पेड़ पौधे लगाए हैं, जो आज जंगल जैसा नजर आता है। हमारे इस प्रकृति सेवा से #प्रेरित होकर कई लोग भी पेड़-पौधे लगाकर उनकी स्वयं रेखरेख का जिम्मा उठाना सीख गए हैं, यह देख हमें अपार प्रसन्नता होती है।
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