भले जनि तनि करि घर तू चलैई
भले कैका गोरू बकरा चरैई
मगर म्यारू भुल्ला दारू नि पेई
यु दारू त घर मा झगड़ा करांद
फेफड़ा सुखांद जिकुड़ी जलांद
बुरी लत येकी कभी नि लगैई
भले काचू पाकू रूखु सूखू खैई
भले जनि तनि करि घर तू चलैई
भले कैका गोरू बकरा चरैई
मगर म्यारू भुल्ला दारू नि पेई
यू कच्चि पक्कि दारू गुमठियों कु चखना
नीयत नि बिगडि बचीकि तू रहना
दारू की लत बडि बुरि हूंद
रोग लगन्द घरबार फुकंद
दरोल्यों की संगत म कभी नि रैई
भले काचू पाकू रूखु सूखू खैई
भले जनि तनि करि घर तू चलैई
भले कैका गोरू बकरा चरैई
मगर म्यारू भुल्ला दारू नि पेई
यु दारू ठेकदारों कु धंधा च भुल्ला
पैसा कमाण की मशीन च भुल्ला
कभी भूलि की भी ठेका नि जैई
न दारू लेई-पेई न कैथे पिलई
भले काचू पाकू रूखु सूखू खैई
भले जनि तनि करि घर तू चलैई
भले कैका गोरू बकरा चरैई
मगर म्यारू भुल्ला दारू नि पेई
@कविता रावत
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 2 अगस्त 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम
सच मा दारुन कई घौरों ते बर्बाद करयूँ च। बहुत सुंदर सारगर्भित गीत।
वाह
अत्यन्त प्रेरक गढ़वाली गीत
एक टिप्पणी भेजें