दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ । गुरु पूर्णिमा - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 21 जुलाई 2024

दादू सब ही गुरु किए, पसु पंखी बनराइ । गुरु पूर्णिमा

घर में माता-पिता के बाद स्कूल में अध्यापक ही बच्चों का गुरु कहलाता है। प्राचीनकाल में अध्यापक को गुरु कहा जाता था और तब विद्यालय के स्थान पर गुरुकुल हुआ करते थे, जहाँ छात्रों को शिक्षा दी जाती थी। चाहे धनुर्विद्या में निपुण पांडव हो या सहज और सरल जीवन जीने वाले राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न या फिर कृष्ण, नानक हो या बुद्ध जैसे अन्य महान आत्माएं, इन सभी ने अपने गुरुओं से शिक्षाएं प्राप्त कर एक आदर्श स्थापित किया।  गुरु का आदर्श ही संसार में कुछ करने की प्रेरणा देता है और इतिहास गवाह है कि इसी प्रेरणा से कई शिष्य गुरु से आगे निकल गए। गुरु चाणक्य ने जब अपने शिष्य चन्द्रगुप्त को शिक्षित किया तो उसने देश का इतिहास बदल दिया और जब सिकन्दर ने अपने गुरु अरस्तु से शिक्षा प्राप्त की तो वे विश्व जीतने की राह पर चल पड़े।
कभी बचपन में टाट-पट्टी पर बैठकर हम छोटे बच्चे भी स्कूल में खूब जोर लगाकर ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दिओ मिलाय।' की रट से गुरु महिमा का बखान कर मन ही मन खुश हो लेते थे कि हमने कबीर के इस दोहे को याद कर गुरु जी को प्रसन्न कर लिया है। तब हमें इतना भर पता था कि हमें पढ़ाने वाले ही हमारे गुरु हैं और वे जो पढ़ाते-रटाते हैं, वैसा करने में ही हमारी भलाई है। यदि ऐसा न किया तो मन में बेंत पड़ने के भय के साथ ही परीक्षा में पूछे जाने पर न लिख पाने की स्थिति में अनुत्तीर्ण होने का डर बराबर सताता रहता था। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़ी कक्षाओं की ओर बढ़ते गए वैसे-वैसे हमारे गुरुओं की संख्या भी बढ़ती चली गई। पढ़ाई खत्म करने के बाद घर-गृहस्थी के साथ दुनियादारी में जीते-देखते हुए आज जब मैं किसी सच्चे गुरु के बारे में थोड़ा सोच-विचार करने बैठती हूँ तो मुझे संत कवि दादू दयाल याद आने लगते हैं-
झूठे, अंधे गुरु घणैं, बंधे विषै विकार।
दादू साचा गुरु मिलै, सनमुख सिरजनहार।
अर्थात संसार में चारों और झूठे और अंधे, कपटी गुरुओं की भरमार है, जो विषय विकार में स्वयं बंधे हुए हैं। ऐसे में यदि सच्चा  गुरु मिल जाय तो समझ लेना चाहिए कि उसे साक्षात् ईश्वर के दर्शन हो गए।
आज गुरु ही नहीं शिष्यों की भी स्थिति कम चिन्तनीय नहीं है। इस पर दादू ने सही कहा है कि-
दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।
गुरु तो ज्ञान देता ही है लेकिन शिष्य के अंदर भी पात्रता होनी चाहिए। चिकित्सक रोगी की चिकित्सा तभी कर सकता है जब उसका रोगी उसके कहने पर चलता रहे। यदि रोगी मीठा, खट्टा और चटपटा अपनी जीभ के स्वादानुसार खाता रहेगा तो दवा का प्रभाव नहीं होगा।  इसी तरह यदि शिष्य विषय विकारों में फंसकर विरत होता रहेगा, तो गुरु कभी भी उसे ज्ञानी नहीं बना सकता।
गुरु के मामले में मैं भी आज की परिस्थितियों को देखकर अपने आप को संत कवि दादू के सबसे निकट पाती हूँ जिसमें उन्होंने कहा कि-
‘दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
अर्थात जब मैंने सारा जीवन भर चिन्तन किया तो यही निष्कर्ष निकाला कि संसार के प्रत्येक जीव के अंदर ईश्वर विद्यमान हैं। इसलिए मैंने पशु, पक्षी तथा जंगली जीव-जन्तु सभी को अपना गुरु बनाया क्योंकि इनसे मैंने कुछ न कुछ सीखा है। मैंने अंत में यही जाना कि तीनों लोक पांच तत्वों से बने हैं तथा सभी में ईश्वर का निवास है।
        ...कविता रावत

55 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अच्छा आर्टिकल कविता जी,गुरु के बगैर ज्ञान का सार समझना बेहद मुश्किल है।

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

गुरु के प्रति सबके मन में श्रद्धा भाव होते हैं और वहीं श्रद्धा भाव आपके लेख में झलक रहे हैं। गुरु गुरु होता है उसमें छोटे-बडे की बात नहीं। आस-पास का सारा माहौल गुरु की जगह ले लेता है यह आपका कहना गुरु की परिधि को व्यापक कर रहा है।

vijay ने कहा…

दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
सौ फीसदी सही कहना है संत दादू दयाल जी का ..जब सब में इश्वर विद्यमान है तो फिर कोई एक गुरु कैसे हो सकता है ...........गुरु पर्व पर सार्थक लेख ..बधाई!!!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया लेख कविता जी...
दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।

बेहद सार्थक और रोचक..
अनु

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बढ़िया विचार , आज जो परिस्थितियाँ विद्यमान है ऊसके लिए अकेला गुरु या शिष्य नहीं अपितु पूरा समाज जिम्मेदार है !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज्ञानवान गुरु ही ज्ञान का प्रकाश दे सकता है .... सार्थक लेख ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सीख तो सबसे ही मिल जाती है, गुरु गहरा ज्ञान बताता है..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति
latest post क्या अर्पण करूँ !

Unknown ने कहा…

दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।
दादू एकदम सही कहते हैं ....बहुत अच्छा लिखा है .............

kshama ने कहा…

Aapne shat pratishat sahi baat kahi...characharme eeshwar widyamaan hai....!

Maheshwari kaneri ने कहा…

गुरु ही ज्ञान का प्रकाश दे सकता है ..बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

संत कवि दादू दयाल आज भी प्रासंगिक है, उन्होंने समाज को जगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मैंने अंत में यही जाना कि तीनों लोक पांच तत्वों से बने हैं तथा सभी में ईश्वर का निवास है।


सही कहा कविता जी इश्वर तो भीतर ही मौजूद होता है ......

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

संग्रहणीय आलेख
बहुत सुंदर


मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

नि‍तांत सात्‍वि‍क. धन्‍यवाद.

बेनामी ने कहा…

सुंदर, सार्थक प्रस्तुति

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा,सुंदर सार्थक आलेख,,,

RECENT POST : अभी भी आशा है,

संजय भास्‍कर ने कहा…

संग्रहणीय आलेख
............दादू एकदम सही कहते हैं ..!!!

Jyoti khare ने कहा…

जीवन में गुरु का महत्त्व दर्शाता सार्थक और विचारपरक आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई


आग्रह है
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपका लेख पढकर और दादू की ज्ञान की बातें पढकर. मेरे गाँव में एक योगी हुआ करते थे करीब डेढ़ सौ साल पहले. उनका नाम लक्ष्मीनाथ गोसाईं था . उनका लिखा गुरु पर भजन भी मुझे याद रहा है. यह भजन आज भी मेरे गाँव में हर कीर्तन के प्रारम्भ में गाया जाता है-


प्रथम देव गुरु देव जगत में, और ना दूजो देवा ।
गुरू पूजे सब देवन पूजे, गुरू सेवा सब सेवा ।। ध्रुव ।।
गुरू ईष्ट गुरू मंत्र देवता, गुरू सकल उपचारा ।
गुरू मंत्र गुरू तंत्र गुरू हैं, गुरू सकल संसारा ।। १ ।।
गुरू आवाहन ध्यान गुरू हैं, गुरू पंच विधि पुजा ।
गुरू पद हव्य कव्य गुरू पावक, सकल वेद गुरू दुजा ।। २ ।।
गुरू होता गुरू पार ब्रह्म, गुरू भागवत ईशा ।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु सदाशिव, इंद्र वरुण दिग्धीशा ।। ३।।
बिनु गुरू जप तप दान व्यर्थ व्रत, तीरथ फ़ल नहिं दाता ।
"लक्ष्मीपति" नहिं सिध्द गुरू बिनु, वृथा जीव जग जाता ।। ४।।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 21/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और सार्थक रचना..
:-)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अर्थपूर्ण बात कही....

अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

बहुत बहुत सुंदर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए शुक्रिया!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

‘दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।

दादू जी ने बस एक ही दोहे से सब कुछ बता दिया .. जीवन का सार जैसे कुछ शब्दों में उड़ेल दिया ...
कई बार संत इतनी आसानी से सहज ही इतना कुछ कह जाते हैं जो इन्सान चाहे तो संजीवनी बन सकता है ... आपका आभार इस पोस्ट के लिए ...

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

गुरू की महिमा समुद्र की तरह गहरी है।

राज चौहान ने कहा…

दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।

बेहद सार्थक और रोचक..

अभिमन्‍यु भारद्वाज ने कहा…

बहुत सुन्‍दर लेख
नईपोस्‍ट
Without the internet, now Use your Favorites websites अ‍ब इन्‍टरनेट बिना भी प्रयोग कीजिये अपनी मनपसंद बेबसाइट

Dr ajay yadav ने कहा…

आदरणीया मैम ,
बहुत ही सुंदर रचना |
अच्छे शिक्षकों के प्रभाव की लहरे अनंत होती हैं |
वास्तव में जबब तक शिष्य की पात्रता नही होती ,गुरु का ज्ञान धारण नही कर सकता |
कुछ वर्ष पहले मैंने अपनी शिक्षिका के लिए अपने भाव व्यक्त किये थे ...आपको अच्छे लगेंगे लिंक दे रहा हूँ -
http://drakyadav.blogspot.in/2012/11/blog-post_16.html

Vinod Singh Jethuri ने कहा…

सुन्दर लेख ....

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Darshan jangra ने कहा…

बहुत बहुत सुंदर

के. सी. मईड़ा ने कहा…

गुरु के प्रति सुन्दर विचार....
सही का आपने जाने अजाने में ही सही परन्तु
प्रकृति भी बहुत बार हमारे लिए गुरु की भुमिका निभाती रहती है ।

PS ने कहा…

झूठे, अंधे गुरु घणैं, बंधे विषै विकार।
....आज की गुरुओं का तो यही हाल है ..

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

अच्‍छा लेख।

Neeraj Neer ने कहा…

जाके गुरु अंधला , चेला खड़ा निगंध
अंधे अँधा ठेल्या दोनों कूप पडंध।।

अनुपमा पाठक ने कहा…

‘दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।

यही होना चाहिए... यही सत्य है!
सारगर्भित आलेख!

शिवनाथ कुमार ने कहा…

झूठे, अंधे गुरु घणैं, बंधे विषै विकार।
दादू साचा गुरु मिलै, सनमुख सिरजनहार।

सच ही है यदि सच्चा गुरु मिल जाए तो जीवन की नैया बड़ी सुगमता से
हर परिस्थिति को झेलते हुए आगे बढती है और किनारे भी लगती है

सादर!

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

सामयिक ,ज्ञानवर्धक लेख। गुरु पूर्णिमा पर गुरु जी पुण्य स्मरण।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

सामयिक ,ज्ञानवर्धक लेख। गुरु पूर्णिमा पर गुरु जी पुण्य स्मरण।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख.....

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया पोस्ट।

'एकलव्य' ने कहा…

अतिसुन्दर रचना! जीवन को एक नया आयाम देती हुई।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 जुलाई 2022 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 जुलाई 2022 को लिंक की जाएगी ....

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बलराम ने कहा…

ये सच है आजकल सच्‍चा गुरू मिलने का मतलब भगवान का मिलना है

मन की वीणा ने कहा…

गुरु पूर्णिमा पर दादु के विचारों का समर्थन करता सुंदर सटीक लेख।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

गुरु को महत्ता को परिभाषित करती सुंदर पोस्ट । बहुत शुभकामनाएं ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

गुरु की महत्ता दर्शाता बहुत सुंदर लेख,कविता दी।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

गुरु तो ज्ञान देता ही है लेकिन शिष्य के अंदर भी पात्रता होनी चाहिए। बिल्कुल सच। मैं साँभर नामक उसी कस्बे का निवासी हूँ जहाँ संत दादू जी ने अपने जीवन का एक बड़ा भाग बिताया था। वहाँ उस महान संत एवं विचारक की स्मृति का प्रतीक 'दादू दुआरा' आज भी है।

Sudha Devrani ने कहा…

दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
मैं भी यही मानती हूँ प्रकृति और प्रकृति में उपस्थित सभी प्राणी ईश्वर के अंश है हमें जब जिस जानकारी की जरूरत होती है प्रभु किसी न किसी रूप में सीख देते हैं हम प्रकृति एवं प्राणिमात्र में ईश्वरीय शक्ति देखें तो सब गुरू रूप में हमारे समक्ष हमें ज्ञान देते हैं...इसके अलावा आजकल सद्गुरु मिलना मुश्किल है।
बहुत ही सारगर्भित लेख।

डॉ 0 विभा नायक ने कहा…

आज के समय के हिसाब से बहुत ही सारगर्भित
लेख। बधाई और शुभकामनाएँ 🌷🌷🙏

Meena sharma ने कहा…

सार्थक एवं सारगर्भित, संत दादूदयाल के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी एवं गुरू का महत्त्व स्पष्ट करता हुआ महत्त्वपूर्ण आलेख ।