कभी बचपन में टाट-पट्टी पर बैठकर हम छोटे बच्चे भी स्कूल में खूब जोर लगाकर ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दिओ मिलाय।' की रट से गुरु महिमा का बखान कर मन ही मन खुश हो लेते थे कि हमने कबीर के इस दोहे को याद कर गुरु जी को प्रसन्न कर लिया है। तब हमें इतना भर पता था कि हमें पढ़ाने वाले ही हमारे गुरु हैं और वे जो पढ़ाते-रटाते हैं, वैसा करने में ही हमारी भलाई है। यदि ऐसा न किया तो मन में बेंत पड़ने के भय के साथ ही परीक्षा में पूछे जाने पर न लिख पाने की स्थिति में अनुत्तीर्ण होने का डर बराबर सताता रहता था। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़ी कक्षाओं की ओर बढ़ते गए वैसे-वैसे हमारे गुरुओं की संख्या भी बढ़ती चली गई। पढ़ाई खत्म करने के बाद घर-गृहस्थी के साथ दुनियादारी में जीते-देखते हुए आज जब मैं किसी सच्चे गुरु के बारे में थोड़ा सोच-विचार करने बैठती हूँ तो मुझे संत कवि दादू दयाल याद आने लगते हैं-
झूठे, अंधे गुरु घणैं, बंधे विषै विकार।
दादू साचा गुरु मिलै, सनमुख सिरजनहार।
अर्थात संसार में चारों और झूठे और अंधे, कपटी गुरुओं की भरमार है, जो विषय विकार में स्वयं बंधे हुए हैं। ऐसे में यदि सच्चा गुरु मिल जाय तो समझ लेना चाहिए कि उसे साक्षात् ईश्वर के दर्शन हो गए।
आज गुरु ही नहीं शिष्यों की भी स्थिति कम चिन्तनीय नहीं है। इस पर दादू ने सही कहा है कि-
दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।
गुरु तो ज्ञान देता ही है लेकिन शिष्य के अंदर भी पात्रता होनी चाहिए। चिकित्सक रोगी की चिकित्सा तभी कर सकता है जब उसका रोगी उसके कहने पर चलता रहे। यदि रोगी मीठा, खट्टा और चटपटा अपनी जीभ के स्वादानुसार खाता रहेगा तो दवा का प्रभाव नहीं होगा। इसी तरह यदि शिष्य विषय विकारों में फंसकर विरत होता रहेगा, तो गुरु कभी भी उसे ज्ञानी नहीं बना सकता।
गुरु के मामले में मैं भी आज की परिस्थितियों को देखकर अपने आप को संत कवि दादू के सबसे निकट पाती हूँ जिसमें उन्होंने कहा कि-
‘दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
अर्थात जब मैंने सारा जीवन भर चिन्तन किया तो यही निष्कर्ष निकाला कि संसार के प्रत्येक जीव के अंदर ईश्वर विद्यमान हैं। इसलिए मैंने पशु, पक्षी तथा जंगली जीव-जन्तु सभी को अपना गुरु बनाया क्योंकि इनसे मैंने कुछ न कुछ सीखा है। मैंने अंत में यही जाना कि तीनों लोक पांच तत्वों से बने हैं तथा सभी में ईश्वर का निवास है।
55 टिप्पणियां:
अच्छा आर्टिकल कविता जी,गुरु के बगैर ज्ञान का सार समझना बेहद मुश्किल है।
गुरु के प्रति सबके मन में श्रद्धा भाव होते हैं और वहीं श्रद्धा भाव आपके लेख में झलक रहे हैं। गुरु गुरु होता है उसमें छोटे-बडे की बात नहीं। आस-पास का सारा माहौल गुरु की जगह ले लेता है यह आपका कहना गुरु की परिधि को व्यापक कर रहा है।
दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
सौ फीसदी सही कहना है संत दादू दयाल जी का ..जब सब में इश्वर विद्यमान है तो फिर कोई एक गुरु कैसे हो सकता है ...........गुरु पर्व पर सार्थक लेख ..बधाई!!!
बहुत बढ़िया लेख कविता जी...
दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।
बेहद सार्थक और रोचक..
अनु
बढ़िया विचार , आज जो परिस्थितियाँ विद्यमान है ऊसके लिए अकेला गुरु या शिष्य नहीं अपितु पूरा समाज जिम्मेदार है !
ज्ञानवान गुरु ही ज्ञान का प्रकाश दे सकता है .... सार्थक लेख ।
सीख तो सबसे ही मिल जाती है, गुरु गहरा ज्ञान बताता है..
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति
latest post क्या अर्पण करूँ !
दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।
दादू एकदम सही कहते हैं ....बहुत अच्छा लिखा है .............
Aapne shat pratishat sahi baat kahi...characharme eeshwar widyamaan hai....!
गुरु ही ज्ञान का प्रकाश दे सकता है ..बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
संत कवि दादू दयाल आज भी प्रासंगिक है, उन्होंने समाज को जगाने का महत्वपूर्ण कार्य किया.
मैंने अंत में यही जाना कि तीनों लोक पांच तत्वों से बने हैं तथा सभी में ईश्वर का निवास है।
सही कहा कविता जी इश्वर तो भीतर ही मौजूद होता है ......
संग्रहणीय आलेख
बहुत सुंदर
मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
नितांत सात्विक. धन्यवाद.
सुंदर, सार्थक प्रस्तुति
बहुत उम्दा,सुंदर सार्थक आलेख,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
संग्रहणीय आलेख
............दादू एकदम सही कहते हैं ..!!!
जीवन में गुरु का महत्त्व दर्शाता सार्थक और विचारपरक आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है
केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------
बहुत अच्छा लगा आपका लेख पढकर और दादू की ज्ञान की बातें पढकर. मेरे गाँव में एक योगी हुआ करते थे करीब डेढ़ सौ साल पहले. उनका नाम लक्ष्मीनाथ गोसाईं था . उनका लिखा गुरु पर भजन भी मुझे याद रहा है. यह भजन आज भी मेरे गाँव में हर कीर्तन के प्रारम्भ में गाया जाता है-
प्रथम देव गुरु देव जगत में, और ना दूजो देवा ।
गुरू पूजे सब देवन पूजे, गुरू सेवा सब सेवा ।। ध्रुव ।।
गुरू ईष्ट गुरू मंत्र देवता, गुरू सकल उपचारा ।
गुरू मंत्र गुरू तंत्र गुरू हैं, गुरू सकल संसारा ।। १ ।।
गुरू आवाहन ध्यान गुरू हैं, गुरू पंच विधि पुजा ।
गुरू पद हव्य कव्य गुरू पावक, सकल वेद गुरू दुजा ।। २ ।।
गुरू होता गुरू पार ब्रह्म, गुरू भागवत ईशा ।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु सदाशिव, इंद्र वरुण दिग्धीशा ।। ३।।
बिनु गुरू जप तप दान व्यर्थ व्रत, तीरथ फ़ल नहिं दाता ।
"लक्ष्मीपति" नहिं सिध्द गुरू बिनु, वृथा जीव जग जाता ।। ४।।
कल 21/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक रचना..
:-)
अर्थपूर्ण बात कही....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
बहुत बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
साझा करने के लिए शुक्रिया!
‘दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
दादू जी ने बस एक ही दोहे से सब कुछ बता दिया .. जीवन का सार जैसे कुछ शब्दों में उड़ेल दिया ...
कई बार संत इतनी आसानी से सहज ही इतना कुछ कह जाते हैं जो इन्सान चाहे तो संजीवनी बन सकता है ... आपका आभार इस पोस्ट के लिए ...
गुरू की महिमा समुद्र की तरह गहरी है।
दादू वैद बिचारा क्या करै, जै रोगी रहे न साच।
मीठा खारा चरपरा, मांगै मेरा वाछ।।
बेहद सार्थक और रोचक..
बहुत सुन्दर लेख
नईपोस्ट
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आदरणीया मैम ,
बहुत ही सुंदर रचना |
अच्छे शिक्षकों के प्रभाव की लहरे अनंत होती हैं |
वास्तव में जबब तक शिष्य की पात्रता नही होती ,गुरु का ज्ञान धारण नही कर सकता |
कुछ वर्ष पहले मैंने अपनी शिक्षिका के लिए अपने भाव व्यक्त किये थे ...आपको अच्छे लगेंगे लिंक दे रहा हूँ -
http://drakyadav.blogspot.in/2012/11/blog-post_16.html
सुन्दर लेख ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बहुत सुंदर
गुरु के प्रति सुन्दर विचार....
सही का आपने जाने अजाने में ही सही परन्तु
प्रकृति भी बहुत बार हमारे लिए गुरु की भुमिका निभाती रहती है ।
झूठे, अंधे गुरु घणैं, बंधे विषै विकार।
....आज की गुरुओं का तो यही हाल है ..
अच्छा लेख।
जाके गुरु अंधला , चेला खड़ा निगंध
अंधे अँधा ठेल्या दोनों कूप पडंध।।
‘दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
यही होना चाहिए... यही सत्य है!
सारगर्भित आलेख!
झूठे, अंधे गुरु घणैं, बंधे विषै विकार।
दादू साचा गुरु मिलै, सनमुख सिरजनहार।
सच ही है यदि सच्चा गुरु मिल जाए तो जीवन की नैया बड़ी सुगमता से
हर परिस्थिति को झेलते हुए आगे बढती है और किनारे भी लगती है
सादर!
सामयिक ,ज्ञानवर्धक लेख। गुरु पूर्णिमा पर गुरु जी पुण्य स्मरण।
सामयिक ,ज्ञानवर्धक लेख। गुरु पूर्णिमा पर गुरु जी पुण्य स्मरण।
बहुत सुन्दर लेख.....
बढ़िया पोस्ट।
अतिसुन्दर रचना! जीवन को एक नया आयाम देती हुई।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 जुलाई 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
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ये सच है आजकल सच्चा गुरू मिलने का मतलब भगवान का मिलना है
गुरु पूर्णिमा पर दादु के विचारों का समर्थन करता सुंदर सटीक लेख।
गुरु को महत्ता को परिभाषित करती सुंदर पोस्ट । बहुत शुभकामनाएं ।
गुरु की महत्ता दर्शाता बहुत सुंदर लेख,कविता दी।
गुरु तो ज्ञान देता ही है लेकिन शिष्य के अंदर भी पात्रता होनी चाहिए। बिल्कुल सच। मैं साँभर नामक उसी कस्बे का निवासी हूँ जहाँ संत दादू जी ने अपने जीवन का एक बड़ा भाग बिताया था। वहाँ उस महान संत एवं विचारक की स्मृति का प्रतीक 'दादू दुआरा' आज भी है।
दादू’ सब ही गुरु किये, पसु पंखी बनराइ।
तीन लोक गुण पंच सूं, सब ही माहिं खुदाइ।।
मैं भी यही मानती हूँ प्रकृति और प्रकृति में उपस्थित सभी प्राणी ईश्वर के अंश है हमें जब जिस जानकारी की जरूरत होती है प्रभु किसी न किसी रूप में सीख देते हैं हम प्रकृति एवं प्राणिमात्र में ईश्वरीय शक्ति देखें तो सब गुरू रूप में हमारे समक्ष हमें ज्ञान देते हैं...इसके अलावा आजकल सद्गुरु मिलना मुश्किल है।
बहुत ही सारगर्भित लेख।
आज के समय के हिसाब से बहुत ही सारगर्भित
लेख। बधाई और शुभकामनाएँ 🌷🌷🙏
सार्थक एवं सारगर्भित, संत दादूदयाल के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी एवं गुरू का महत्त्व स्पष्ट करता हुआ महत्त्वपूर्ण आलेख ।
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