
झुलसी-मुरझाई धरा पर हरियाली छायी
बादल बरसे नदी-पोखर जलमग्न हो गए
खिले फूल, कमल मुकुलित बदन खड़े हुए
नदियां इतराती-इठलाती अठखेलियां करने लगी
तोड़ तट बंधन बिछुड़े पिय मिलन सागर को चली
गर्मी गई चहुंदिशा शीतल मधुर, सुगंधित हुआ
जनजीवन उल्लसित, सैर-सपाटा मौसम आया
वन-उपवन, बाग-बगीचों में देखो यौवन चमका
धुली धूल धूसरित डालियां मुखड़ा उनका दमका
पड़ी सावनी मंद फुहार मयूर चंदोवे दिखा नाचने चले
देख ताल-पोखर मेंढ़क टर्र-टर्र-टर्र गला फाड़ने लगे
हरी-भरी डालियां नील गगन छुअन को मचल उठी
पवन वेग गुंजित-कंपित वृक्षावली सिर उठाने लगी
घर-बाहर की किचकिच-पिटपिट किसके मन भायी?
पर बरसाती किचकिच भली लगे बरखा बहार आयी!
...कविता रावत
वाहः
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना कविता जी।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात दीदी..
जवाब देंहटाएंवाह....
सुन्दर विवरण
वर्षा का....
गोस्वामी तुलसी दास ने भी
वर्षा काल में वियोग का वर्णन किया है
यथा..
घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥
दामिनि दमक रह नघन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसें
सादर
बरसात, भले ही इंतिहा मुसीबत लाती हो पर आकाश से झरता अमृत ही है
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है आपने कविता जी। हमारे ब्लाग पर भी आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ....बरखा आयी ...........
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-07-2017) को "इंसान की सच्चाई" (चर्चा अंक 2682) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बरखा का बहुत सुंदर विवरण।
जवाब देंहटाएंबरखा धरती के लिए अमृत है ........ सुन्दर बरखा बहार
जवाब देंहटाएंRIMJHIM BARKHA ME BHIGNE ME HI ANAND ATATA HAI.
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " राजमाता गायत्री देवी और ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंकविता जी बहुत सुन्दर रचना ,शब्दों का संयोजन मौसम ए बहार का वास्तविक संकेत दे रहे हैं
जवाब देंहटाएंवाह ! क्या बात है प्रकृति को क्या सुन्दर शब्दों में ढाला है आभार ,"एकलव्य"
जवाब देंहटाएंयदि आप कहानियां भी लिखते है तो आप प्राची डिजिटल पब्लिकेशन द्वारा जल्द ही प्रकाशित होने वाली ई-बुक "पंखुड़ियाँ" (24 लेखक और 24 कहानियाँ) के लिए आमंत्रित है। कृपया आमंत्रण स्वीकार करें और हमें अपनी कहानी ई-मेल prachidigital5@gmail.comपर 31 अगस्त तक भेज दें। तो देर किस बात की उठाईये कलम और भेज दीजिए अपनी कहानी। अधिक जानकारी के लिए https://goo.gl/ZnmRkM पर विजिट करें।
जवाब देंहटाएं--
PRACHI DIGITAL PUBLICATION
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवर्षाकाल का सुंदर चित्रण !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बरखा बहार ....
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/07/28.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबरखा बहार आती है तो किच-पिच के साथ मधुर बयार भी ले के आती है ... गर्मी के मौसन कको सुहाना भी बनाती है ...
जवाब देंहटाएंआपने हर पल को पकड़ने का प्रयास किया है रचना में ...
वन-उपवन, बाग-बगीचों में देखो यौवन चमका
जवाब देंहटाएंधुली धूल धूसरित डालियां मुखड़ा उनका दमका
.....बरखा बहार क्या बात है.....बहुत सुन्दर :)