वो मेरी दहलीज़ पे चढ़ता भी नहीं है
कहते हैं लोग मेरे सीने में मौजूद है
मेरी मर्जी से मगर ये धड़कता भी नहीं है
मैं भी दिन और रात का पाबंद हूँ
मुझसे तो सूरज कभी ढलता भी नहीं है
आ जाती हैं यादें कोई बहाना लेकर
दिल मेरे दिल की तरह चलता भी नहीं है
कश्ती सवार को साहिल दिखाई तो देता है
इस दरिया के किस्मत में समंदर भी नहीं है
हाथ मिलाया ज़िन्दगी से और बिक गए
चैन से जीने का अब तो वक़्त भी नहीं है
कैसे कह दूँ मुहब्बत का बीमार नहीं हूँ
चिराग़ है ऐसा जो अब जलता भी नहीं है
मैंने 'आसिफ' दुनिया को बदलते देखा है
एक मेरा ख़्वाब है जो बदलता भी नहीं है
...मुहम्मद आसिफ अली