वो मेरी दहलीज़ पे चढ़ता भी नहीं है
कहते हैं लोग मेरे सीने में मौजूद है
मेरी मर्जी से मगर ये धड़कता भी नहीं है
मैं भी दिन और रात का पाबंद हूँ
मुझसे तो सूरज कभी ढलता भी नहीं है
आ जाती हैं यादें कोई बहाना लेकर
दिल मेरे दिल की तरह चलता भी नहीं है
कश्ती सवार को साहिल दिखाई तो देता है
इस दरिया के किस्मत में समंदर भी नहीं है
हाथ मिलाया ज़िन्दगी से और बिक गए
चैन से जीने का अब तो वक़्त भी नहीं है
कैसे कह दूँ मुहब्बत का बीमार नहीं हूँ
चिराग़ है ऐसा जो अब जलता भी नहीं है
मैंने 'आसिफ' दुनिया को बदलते देखा है
एक मेरा ख़्वाब है जो बदलता भी नहीं है
...मुहम्मद आसिफ अली
10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 अक्टूबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
कविता रावत जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आप बहुत अच्छा लिखती हैं। मैं आशा करता हूँ कि आप भविष्य में और अधिक कामयाबी हासिल करेगीं।
मैंने 'आसिफ' दुनिया को बदलते देखा है,
एक मेरा ख़्वाब है जो बदलता 'ही' नहीं है !
लगता है मुझ पर भी लागू होता है !😊🙏
बेहद शानदार गज़ल।
हर शेर लाज़वाब है।
सादर।
खूबसूरत फ़लसफ़ा.शानदार गज़ल।
बहुत शानदार गजल।
सुन्दर रचना । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ l
दीपावली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
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