एक मेरा ख़्वाब है जो बदलता भी नहीं है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

एक मेरा ख़्वाब है जो बदलता भी नहीं है

जो तेरे घर से निकलता भी नहीं है

वो मेरी दहलीज़ पे चढ़ता भी नहीं है


कहते हैं लोग मेरे सीने में मौजूद है

मेरी मर्जी से मगर ये धड़कता भी नहीं है


मैं भी दिन और रात का पाबंद हूँ

मुझसे तो सूरज कभी ढलता भी नहीं है


आ जाती हैं यादें कोई बहाना लेकर

दिल मेरे दिल की तरह चलता भी नहीं है


कश्ती सवार को साहिल दिखाई तो देता है

इस दरिया के किस्मत में समंदर भी नहीं है


हाथ मिलाया ज़िन्दगी से और बिक गए

चैन से जीने का अब तो वक़्त भी नहीं है


कैसे कह दूँ मुहब्बत का बीमार नहीं हूँ

चिराग़ है ऐसा जो अब जलता भी नहीं है


मैंने 'आसिफ' दुनिया को बदलते देखा है

एक मेरा ख़्वाब है जो बदलता भी नहीं है

...मुहम्मद आसिफ अली