उस घर की दरो-दीवार भी रोई होंगी
खोया जिन माओं ने अपना लाल
उस काली रात को कैसी रही होंगी
छलनी किया जिन दहशत गर्दों ने सीना
उन्हें उनकी औकात दिखानी होगी
भूल न जाना कर्ज उन वीर जवानों का
बात यह उनके घर-घर पहुंचानी होगी
.. जी.एस. कंडारी
About कविता रावत