अक्सर एकाकीपन ही मुझे अच्छा लगता
अपनेपन से भरा साथ मिले किसी का
जैसे यह दिखता कोई सुन्दर सपना है
अपने पास तो आंसू ही शेष ऐसे दिखते
जो वक्त-बेवक्त साथ देते अपना है
न होंठों पर खिलकर हंसीं आ पाई कभी
न शायद मुस्कान कभी लौट सकती है
हँस-हँस कर ही जीना जिंदगी है
ये अक्सर मुझसे मेरी वेदना कहती है
ये जिंदगी नहीं उदास रहने की
तू हरदम क्यों उदास हो जाती है
दुःख में भी मुस्कराना सीख ले
ये दुखभरी घड़ियाँ अक्सर कहती है
पर खुशियाँ तू अबतक नसीब न हुई
सिर्फ देखती आयी हूँ सुनहरे सपने
होता गम अगर सीने में कुछ कम
तो छुपा लेती उसे सीने में अपने
दर्द छुपाना चाहा मैंने हरदम
पर पीड़ा कुछ कम होती नहीं
हँसना चाहती हूँ मैं भी जीभर कर
पर होंठों तक मुस्कान आती नहीं
ख़ुशी तो मिलती है जिंदगी में मगर
हर राह मिलती मुझे टेढ़ी है
बातें जो जख्मी कर जाते दिल को
फिर वही बात हर किसी ने छेड़ी हैं
copyright@Kavita Rawat