एक बार जंगल के राजा शेर ने
एक आपात बैठक बुलाई
प्रस्ताव रखा-
'हम सबका भी एक कुशल राजनेता हो
जिसमें हो गहरी सूझ-बूझ और चतुराई'
सुनकर प्रस्ताव झटके से गजराज बोले-
"मैं हूँ शक्तिशाली मैं ही राजनेता बनूँगा
जो भी गड़बड़ घोटाला करेगा शासन में
उसे मैं तुरंत मसल कर रख दूंगा"
सुनकर गजराज के बातें हिलते-डुलते
भालूराम जी बोले-
"आप सभी की कृपा से यदि मैं राजनेता बनूँगा
तो मैं सभी भाई-बंधुओं से पक्का वादा करता हूँ
कि प्रतिदिन सबको नए-नए डिस्को दिखलाऊंगा"
भालूराम जी कि बातें सुनकर शरमाते हुए
गधेचंद जी बोले -
"भाई-बंधुओं! मैं सीधा-साधा मेरी सुनो मुझे राजनेता बनाना
मेरी पीठ पर लाद-लादकर ईंट-पत्थर तुम
अपनी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करते जाना"
यह सुनते ही एक कोने में दुबका मूषकराज उछालकर बोला-
"मुझे बना लो अपना राजनेता, मेरा राज-काज होगा महान
कोई न होगा भूखा-नंगा, सबको मिलेगा रोटी-कपडा और मकान"
सबके मन में राजनेता बनने को तीव्र लालसा
सबने अपनी-चिकनी-चुपड़ी बातें सुनाई
किन्तु समस्या जहाँ की तहां रही
सुलझाये सभी किन्तु सुलझ न पाई
अंत में राजा शेर से मंत्रणा करके
मंत्री महोदय सियार बोले-
"साथियो! हमने तय किया है हम प्रजातंत्र की राह चलेंगे
अब वोट के द्वारा ही हम अपना राजनेता चुना करेंगे"
यह सुनकर सबने प्रस्ताव का समर्थन किया
और अपना-अपना मत डालना आरंभ किया
जब मतगणना हुई और मूषकराज राजनेता चुने गए
यह देखकर वे मन में फूले न समाये
राजनेता बनकर मूषकराज ने चतुराई से हेर-फेर कर
फाईलें कुतर-कुतर कर बिल में दे डाले
कभी पकड़ न पाया कोई उसे
जब कर डाले उसने घोटाले
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