
कभी-कभी कुछ लोकाक्तियों के माध्यम से जिसमें मनुष्य की विवशता की हँसी या किसी वर्ग विशेष पर कटाक्ष परिलक्षित होता है, उसे एक सूत्र में गूंथने के लिए मैं कविता/रचना के माध्यम से प्रयासरत रहती हूँ. इसी सन्दर्भ में बुरी आदत पर एक प्रस्तुति.....
गधा कभी घोडा नहीं बन सकता, चाहे उसके कान क़तर दो
नीम-करेला कडुआ ही रहेगा, चाहे शक्कर की चासनी में डाल दो
हाथी को कितना भी नहला दो वह अपने तन पर कीचड मल देगा
भेड़िये के दांत भले ही टूट जाय वह अपनी आदत नहीं छोड़ेगा
पानी चाहे जितना भी उबल जाय उसमे चिंगारी नहीं उठती है
एक बार बुरी लत लग जाय तो वह आसानी से नहीं छूटती है
एक आदत को बदलने के लिए दूसरी आदत डालनी पड़ती है
और अगर आदत को नहीं रोका जाय तो वह जरुरत बन जाती है
-Kavita Rawat