
कभी-कभी कुछ लोकाक्तियों के माध्यम से जिसमें मनुष्य की विवशता की हँसी या किसी वर्ग विशेष पर कटाक्ष परिलक्षित होता है, उसे एक सूत्र में गूंथने के लिए मैं कविता/रचना के माध्यम से प्रयासरत रहती हूँ. इसी सन्दर्भ में बुरी आदत पर एक प्रस्तुति.....
गधा कभी घोडा नहीं बन सकता, चाहे उसके कान क़तर दो
नीम-करेला कडुआ ही रहेगा, चाहे शक्कर की चासनी में डाल दो
हाथी को कितना भी नहला दो वह अपने तन पर कीचड मल देगा
भेड़िये के दांत भले ही टूट जाय वह अपनी आदत नहीं छोड़ेगा
पानी चाहे जितना भी उबल जाय उसमे चिंगारी नहीं उठती है
एक बार बुरी लत लग जाय तो वह आसानी से नहीं छूटती है
एक आदत को बदलने के लिए दूसरी आदत डालनी पड़ती है
और अगर आदत को नहीं रोका जाय तो वह जरुरत बन जाती है
-Kavita Rawat
Bahut sunder.
जवाब देंहटाएंbehtreen ....
जवाब देंहटाएं... बहुत सुन्दर !!!
जवाब देंहटाएंbahut sahi
जवाब देंहटाएंBahut hi satik kaha aapne kavitaji
जवाब देंहटाएंbahut achhi aur sacchi baat...........
जवाब देंहटाएंdhnyavaad !
सारी कहावते बहुत अच्छी लगी पर विजेता है---
जवाब देंहटाएंपानी चाहे जितना भी उबल जाय उसमे चिंगारी नहीं उठती है
अच्छी और उपयोगी जानकारी ..आभार!
बस यही सोच अक्सर मन में बहने लगती सबके सुख-दुःख की सरिता, जब-जब मचता घमासान अंतर्मन में तब-तब साकार हो उठती है कविता|
जवाब देंहटाएंdouno panktiyo me ek ke baad ek ka naam aa gaya .hai na sanjog .
Mujhe betiya bahut pyaree hai isee se shayad bhagvan ne teen dee hai. Kavita duniya me jo apanapan de vo apne hai beta....baki naam ke rishte hai jo hum nibhate bhee hai. swasthy ka dhyan rakho ........
कमाल! अद्भुत!! बेजोड़!!!
जवाब देंहटाएंसत्य वचन ........ मुहावरों में अक्सर सच ही बयान होता है ...... जन लोकोक्तियाँ यथार्थ के धरातल में ही पलटी हैं ......
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