हमारे देश को गणतंत्र दिवस मानते हुए 60 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं, बावजूद इसके यह सोचनीय स्थिति है कि इतने वर्ष बीत जाने पर भी देश में जाति, संप्रदाय, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अपराध और राजनीतिक मूल्यहीनता बढ़ता ही जा रहा है, इसके फलस्वरूप देशप्रेम कि भावना में तीव्र ह्रास परिलक्षित होता है.
आज देश को बाहरी आतंकवाद से ही नहीं अपितु अपने देश के असामाजिक तत्वों की विघटनकारी और शंतिविरोधी गतिविधियों के कारण शांति बनाये रखने के लिए अघोषित युद्ध की स्थिति से बार-बार जूझना पड़ रहा है. इसलिए आज हर गली, मोहल्ले, गाँव और शहर स्तर पर सक्रिय जनक्रांति लाने की सख्त आवश्यकता है. इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है कुछ पंक्तियाँ......
कहीं अचानक मच ज़ाती भगदड़
कहीं छिड़ ज़ाती है ख़ूनी संघर्ष
भर ज़ाती जब दिलों में दहशत
तब जहाँ से गायब होता हर्ष
आतंक के साए से सिहर जाते लोग
कोई तो इन आतंकियों को भगाओ
देश को आंतक करने वाले दरिंदो
जरा होश में आओ.
आसुंओं से नम रहती आँखे उनकी सदा
जिनके प्रियजन शहीद हो चुके है
रोते-कलपते जीवन बिताते वे
जो असहाय बन चुके है
यह देख क्यों मन नहीं पिघलता इनका!
कोई तो इन्हें दयाभाव सिखलाओ
देश को आंतक करने वाले दरिंदो
जरा होश में आओ.
क्यों बेकसूरों पर चलाते हैं गोलियां
क्यों आंखे मूंद लगा देते है आग
क्यों शांत घरों में भर देते सूनापन
क्यों जला डालते हैं घर के चिराग
क्यों उजाड़ बनाते घर आँगन
कोई तो इन्हें सबक सिखाओ
देश को आंतक करने वाले दरिंदो
जरा होश में आओ.
क्यों अपने ही बन्धुं-बांधवों को मारकर
ये कर देते हैं रिश्तों को तार-तार
मानवता के ऐसे इन दुश्मनों को
इस मानव जीवन की है धिक्कार!
हैवानियत पर क्यों तुल जाते ये
कोई तो इन्हें मानवता सिखलाओ
देश को आंतक करने वाले दरिंदो
जरा होश में आओ.
सभी ब्लोगर्स को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
-Kavita Rawat