जीवन में यदि थोड़ी सी व्यथा हो तो उसका वर्णन सबके सामने कर लिया जाता है, लेकिन यदि वह गहरी हो तो वह मूक ही बनी रह जाती है. जिसे सहन करना कठिन होता है लेकिन कभी-कभी यही व्यथा अपनों की भीड़ से हटकर अनजाने रिश्तों की व्यथा में डूबकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ ही लेती है और फिर उसकी परिणति एक अलग ही व्यथा का रूप धर हमारे सामने उपस्थित होती है. कुछ ऐसे ही मनोभावों की प्रस्तुति .......
घेर लेती उदासी और सूनापन
न दिखता कोई साथ सहारा
मन की घोर निराशा के क्षण में
बहती चाह, तमन्नाओं की व्यर्थ निरंतर धारा
सबसे अच्छे दिन, साल गुजरते जब जीवन में
सोचूं प्यार करूँ मैं! लेकिन किसको?
व्यर्थ यत्न यह दिखता
शाश्वत प्यार भला कब संभव!
अपने ही अंतर्मन झाँकूँ
वहां न कोई दीपक जलता
ख़ुशी-गम, चाहत का लगता मेला
अंतर्द्वंद के वीराने में
रहता जीवन कितना अकेला!
-Kavita Rawat
अंतर्द्वंद के वीराने में
जवाब देंहटाएंरहता जीवन कितना अकेला....
अक्सर कभी कभी जब उदासी छाती है .......... मन अपने आप को अकेला महसूस करता है ....... सूनेपन को हूबहू उतार दिया है आपने ..........
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी। बधाई।
जवाब देंहटाएंachchi abhivyakti.
जवाब देंहटाएंसूनेपन को हूबहू उतार दिया है आपने ..........
जवाब देंहटाएंPLZ VISIT MY BLOG KAVITA JI...
जवाब देंहटाएं....देश सबका है ....
MY NEW POST..
प्रभावशाली रचना....वाह !!!
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhivykti........
जवाब देंहटाएंख़ुशी-गम, चाहत का लगता मेला
जवाब देंहटाएंअंतर्द्वंद के वीराने में
रहता जीवन कितना अकेला!
सही बात है बहुत भावमय मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है शुभकामनायें
अपने ही अंतर्मन झाँकूँ
जवाब देंहटाएंवहां न कोई दीपक जलता
...सच है. जब तक अंतर्मन में दीपक नहीं जलता जीवन खुद को सदा अकेला ही महसूस करता है.
बहुत ही खूबसूरत कविता..... आपने तो निःशब्द कर दिया....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द गहरे भावों की प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसोचूं प्यार करूँ मैं! लेकिन किसको?
जवाब देंहटाएंव्यर्थ यत्न यह दिखता
शाश्वत प्यार भला कब संभव!
अपने ही अंतर्मन झाँकूँ
वहां न कोई दीपक जलता
ख़ुशी-गम, चाहत का लगता मेला
अंतर्द्वंद के वीराने में
रहता जीवन कितना अकेला!
bahut sundarkavita
अन्त्रदुअन्द के वीराने मे
जवाब देंहटाएंरहता जीवन कितना अकेला
उदासी के आलम मे मन की व्यथा का सजीव चित्रण शुभकामनायें
कविता जी, आपका ब्लॉग पर आना पहाड़ की सैर पर आने का अनुभव देता है, बहुत बहुत साधुवाद!! लिखते रहिएगा...
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