रहता जीवन कितना अकेला - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

रहता जीवन कितना अकेला

जीवन में यदि थोड़ी सी व्यथा हो तो उसका वर्णन सबके सामने कर लिया जाता है, लेकिन यदि वह गहरी हो तो वह मूक ही बनी रह जाती है. जिसे सहन करना कठिन होता है लेकिन कभी-कभी यही व्यथा अपनों की भीड़ से हटकर अनजाने रिश्तों की व्यथा में डूबकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ़ ही लेती है और फिर उसकी परिणति एक अलग ही व्यथा का रूप धर हमारे सामने उपस्थित होती है. कुछ ऐसे ही मनोभावों की प्रस्तुति .......


घेर लेती उदासी और सूनापन
न दिखता कोई साथ सहारा
मन की घोर निराशा के क्षण में
बहती चाह, तमन्नाओं की व्यर्थ निरंतर धारा
सबसे अच्छे दिन, साल गुजरते जब जीवन में
सोचूं प्यार करूँ मैं! लेकिन किसको?
व्यर्थ यत्न यह दिखता
शाश्वत प्यार भला कब संभव!
अपने ही अंतर्मन झाँकूँ
वहां न कोई दीपक जलता
ख़ुशी-गम, चाहत का लगता मेला
अंतर्द्वंद के वीराने में
रहता जीवन कितना अकेला!

-Kavita Rawat

15 टिप्‍पणियां:

  1. अंतर्द्वंद के वीराने में
    रहता जीवन कितना अकेला....

    अक्सर कभी कभी जब उदासी छाती है .......... मन अपने आप को अकेला महसूस करता है ....... सूनेपन को हूबहू उतार दिया है आपने ..........

    जवाब देंहटाएं
  2. अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना अच्छी लगी। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. सूनेपन को हूबहू उतार दिया है आपने ..........

    जवाब देंहटाएं
  5. PLZ VISIT MY BLOG KAVITA JI...
    ....देश सबका है ....
    MY NEW POST..

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रभावशाली रचना....वाह !!!

    जवाब देंहटाएं
  7. ख़ुशी-गम, चाहत का लगता मेला
    अंतर्द्वंद के वीराने में
    रहता जीवन कितना अकेला!
    सही बात है बहुत भावमय मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  8. अपने ही अंतर्मन झाँकूँ
    वहां न कोई दीपक जलता
    ...सच है. जब तक अंतर्मन में दीपक नहीं जलता जीवन खुद को सदा अकेला ही महसूस करता है.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही खूबसूरत कविता..... आपने तो निःशब्द कर दिया....

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द गहरे भावों की प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  11. सोचूं प्यार करूँ मैं! लेकिन किसको?
    व्यर्थ यत्न यह दिखता
    शाश्वत प्यार भला कब संभव!
    अपने ही अंतर्मन झाँकूँ
    वहां न कोई दीपक जलता
    ख़ुशी-गम, चाहत का लगता मेला
    अंतर्द्वंद के वीराने में
    रहता जीवन कितना अकेला!
    bahut sundarkavita

    जवाब देंहटाएं
  12. अन्त्रदुअन्द के वीराने मे
    रहता जीवन कितना अकेला
    उदासी के आलम मे मन की व्यथा का सजीव चित्रण शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  13. कविता जी, आपका ब्लॉग पर आना पहाड़ की सैर पर आने का अनुभव देता है, बहुत बहुत साधुवाद!! लिखते रहिएगा...

    जवाब देंहटाएं