हमारे देश में नारी के लिए "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता" यानि जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहां देवता रमते हैं. लेकिन वास्तव में कुछ ऐसा दिखता नज़र नहीं आता है. आज जिस तरह से नारी संबोधनकारी गलियों
-->की बौछार सरेआम होते दिखती है, जिसमें अनपढ़ हो या पढ़े-लिखे सभी गाहे-बजाये शामिल होते दिखते हैं, उससे साफ़ झलकता हैं कि हमारा आज का सुसंस्कृत समाज इस दिशा में कितनी तरक्की कर रहा है. क्या यह स्वस्थ समाज की दिशा में बाधक नहीं है? ...................... प्रस्तुत हैं कुछ झांकियां..... .....
सड़क, बस या हो रेल का कोई सफ़र
हम रहते सदा चिंतामुक्त और बेखबर
हर जगह अपने ही लोग नज़र आये हमें
फिर काहे की चिंता! क्यों देखें इधर-उधर
माफ़ करना गर फिसले जुबाँ कभी
और झरे मोती बनकर दो-चार गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
हम ड्राईवर सबको ढ़ोते फिरते
चाहे चपरासी हो या कोई अफसर
पर जब आते टेंशन में हम भैय्या
तब दिखता न घर न दफ्तर
पान-गुटखा-बीडी-सिगरेट साथ देते
और है जुबाँ की शान हमारी गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
बहुत सीधे-साधे किस्म के जीव है हम
चाय-गुटका-दारु से काम चला लेते हैं
रीढ़ की हड्डी हैं हम सरकार की भैय्या
हम सबके प्यारे बाबू कहलाते हैं
सबकुछ सीख लिया हमने भी भैय्या
किसको प्यार, किसको देनी है गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
जनता का सारा बोझ सर पर हमारे
हम मिलजुल, सोच-समझकर काम करते हैं
हम सीख गए बखूबी गोटियाँ जमाना भैय्या
तभी तो हम नेता-अफसर कहलाते हैं
पर अगर कोई बिगाड़ दे बना खेल अपना
तो हम पुचकार कर उसे देते दो-चार गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
सड़क, घर-दफ्तर, पार्क या कहीं सफ़र में
जमती चौकड़ी, होती चर्चा, बंटती मुफ्त गाली
कोई कुछ भी बके चुप खिसक लेना भैय्या
है अपनी जनता पर है बहुत भोली-भाली
हम रहते सदा चिंतामुक्त और बेखबर
हर जगह अपने ही लोग नज़र आये हमें
फिर काहे की चिंता! क्यों देखें इधर-उधर
माफ़ करना गर फिसले जुबाँ कभी
और झरे मोती बनकर दो-चार गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
हम ड्राईवर सबको ढ़ोते फिरते
चाहे चपरासी हो या कोई अफसर
पर जब आते टेंशन में हम भैय्या
तब दिखता न घर न दफ्तर
पान-गुटखा-बीडी-सिगरेट साथ देते
और है जुबाँ की शान हमारी गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
बहुत सीधे-साधे किस्म के जीव है हम
चाय-गुटका-दारु से काम चला लेते हैं
रीढ़ की हड्डी हैं हम सरकार की भैय्या
हम सबके प्यारे बाबू कहलाते हैं
सबकुछ सीख लिया हमने भी भैय्या
किसको प्यार, किसको देनी है गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
जनता का सारा बोझ सर पर हमारे
हम मिलजुल, सोच-समझकर काम करते हैं
हम सीख गए बखूबी गोटियाँ जमाना भैय्या
तभी तो हम नेता-अफसर कहलाते हैं
पर अगर कोई बिगाड़ दे बना खेल अपना
तो हम पुचकार कर उसे देते दो-चार गाली
आजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!
सड़क, घर-दफ्तर, पार्क या कहीं सफ़र में
जमती चौकड़ी, होती चर्चा, बंटती मुफ्त गाली
कोई कुछ भी बके चुप खिसक लेना भैय्या
है अपनी जनता पर है बहुत भोली-भाली
-Kavita Rawat
यथार्थ लेखन।
ReplyDeleteहम सीख गए बखूबी गोटियाँ जमाना भैय्या
ReplyDeleteतभी तो हम नेता-अफसर कहलाते हैं
....बहुत खूब, प्रसंशनीय रचना!!!
बहुत अच्छा व्यंग्य किया है कविता जी आपने गाली देने वालों पर. दिल्ली में तो लोग गाली ऐसे देते हैं, जैसे ज़िन्दा रहने के लिये वह भी एक आवश्यक आवश्यकता हो. और वो भी सारी गालियाँ औरतों को सम्बोधित होती हैं.
ReplyDeleteगलियां तो आज कल लोग ऐसे देते है जैसे ....उन्हें विरासत मिली हो ....बहुत अच व्यंग्य किया आपने
ReplyDeletekavita ji aapki rachna padhte huye vyag bhari hansi fut padi ,jawab nahi is sach ka ,main padhte huye yahi sochi ki mahila divas ise kyo nahi dala .सड़क, घर-दफ्तर, पार्क या कहीं सफ़र में
ReplyDeleteजमती चौकड़ी, होती चर्चा, बंटती मुफ्त गाली
कोई कुछ भी बके चुप खिसक लेना भैय्या
है अपनी जनता पर है बहुत भोली-भाली. bahut khoob
व्यवस्था के विरोध का यह तरीका भी बढ़िया है ।
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य अच्छी कविता और सबसे बढ़कर आपका उठाया मुद्दा कि सारी गालियाँ औरतों से सम्बन्धित क्यों होती है...पुरुष प्रधान समाज की एक और बुराई!ठहर कर सोचने पर मजबूर हुआ हूँ..
ReplyDelete....बहुत खूब, प्रसंशनीय रचना!!!
ReplyDeletehalke-fulke dhang se bhaari-bharkam baaten kah daali hain aapne aaj.....aur inka ham khyaal bhi rakhenge sach....!!
ReplyDeleteसच कहा .. मुँह बाद में खुलता है गालियाँ पहले निकलती हैं आज कल ... बहुत बेहतरीन लिखा है ..
ReplyDeleteस्वाधीनता का यह जश्न है या पतन ?
ReplyDeleteसुन्दर
सड़क, घर-दफ्तर, पार्क या कहीं सफ़र में
ReplyDeleteजमती चौकड़ी, होती चर्चा, बंटती मुफ्त गाली
कोई कुछ भी बके चुप खिसक लेना भैय्या
है अपनी जनता पर है बहुत भोली-भाली
बहुत सटीक और यथार्थपरक लगी आपकी यह रचना। हार्दिक शुभकामनायें। पूनम
बहुत सही और सोचनीय मुद्दा
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! आपने उम्दा रचना लिखा है! बधाई!
ReplyDeleteआज जिस तरह से नारी संबोधनकारी गलियों की बौछार सरेआम होते दिखती है,
ReplyDeleteकविता परसों मैने इन्ही पँक्तियों पर एक कविता लिखी थी सही कहा है तुम ने। नारी की दशा पर मगर पुरुष के लिये कोई कुछ नही कहता इनका हाल पर अच्छा कटाक्ष लिखा है। धन्यवाद शुभकामनायें
puri tarah se pardafash........bahut badhiya likha hai
ReplyDelete".....और है जुबाँ की शान हमारी गाली
ReplyDeleteआजाद देश के आजाद पंछी है हम
हर बात हमारी है निराली!........."फिर शिकायत क्यों ?
बहुत गंभीर बात कह दी हंसी हंसी में, एक बहुत अच्छा कटाक्ष .बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteहलके फुल्के अंदाज़ में करारा व्यंग.
ReplyDeleteaccha kataksh.......vazandaar rachana.......
ReplyDeleteHappy holi .....
kavita shobhanajee 'abhivykti 'unaka teen saptah se koi post nahee itana to gap kabhee maine dekha nahee....holi bas aise hee nikalee kaise anjane rishte man bana leta hai..............sambhavtah vo vyast hai.........tumhe koi khabar ho to batana please..........
ReplyDeleteHappy holi.