एक दिन पार्वतीजी शिवजी से बोली-
"भगवन! भूलोक पर आज लोग इतना कमर्काण्ड करते है
फिर भी वे क्यों इसके लाभ से वंचिंत रह जाते है?
प्रश्न सुन गंभीर होकर शिवजी बोले-
"चलो हम भूलोक चलकर तुमको आँखों देखी दिखलाएं
क्यों निष्फल हो रहे हैं पूजा-पाठ रहस्य समझाएं"
शिवरात्रि का शुभ दिन भीड़ बहुत थी मंदिर में
भूखे-नंगे चीथड़ों में लिपटी बेजान जानें बैठ आस लगाये थे
कि कोई तो शिव के नाम देगा कुछ न कुछ पेट भर
यही सोच धसीं आँखों से सबपर अपनी गिद्ध-दृष्टि जमाये थे
पार्वती जी बन बैठी सुंदरी साध्वी पत्नी
शिवजी ने कोढ़ी रूप धर लिया
वहीँ शिव मंदिर की सीढ़ियों में
दोनों ने अपना आसन जमा दिया
सज-धज शिव दर्शन को आते -जाते लोग
बीच राह में देख कोढ़ी को नाक-भौं सिकोड़ते
पर देख साथ में सुंदरी साध्वी बैठी
रख बुरी नीयत, घूरकर सिक्के उछालते
देख यह पाखंड कुत्सित स्वरुप मंदिर में
पार्वती जी मन ही मन बहुत घबराई
"लौट चलिए अब अपने कैलाश पर"
पति अपमान वह सहन न कर पाई
निराश हो बैरंग लौटे शिव-पार्वती जी
तब महाशिवरात्रि को जब ध्यान लगाया
तो कुछ ही गिने चुने सच्चे भक्त दिखे
बाकी सब में धार्मिक आडम्बर ही पाया
'यह कैसी सर्वोत्कर्ष्ट, शक्तिशाली कृति हमारी'
बेवस हो आँखों देखी दोनों सोच में डूब गए
कब समझेगें इंसान, इंसान को इंसान जैसे
कैसे,किसको समझाएं वे भी हिम्मत हार बैठे
सभी ब्लोग्गर्स को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.
-Kavita Rawat