बुरी आदत - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

बुरी आदत



कभी-कभी कुछ लोकाक्तियों के माध्यम से जिसमें मनुष्य की विवशता की हँसी या किसी वर्ग विशेष पर कटाक्ष परिलक्षित होता है, उसे एक सूत्र में गूंथने के लिए मैं कविता/रचना के माध्यम से प्रयासरत रहती हूँ. इसी सन्दर्भ में बुरी आदत पर एक प्रस्तुति.....


गधा कभी घोडा नहीं बन सकता, चाहे उसके कान क़तर दो
नीम-करेला कडुआ ही रहेगा, चाहे शक्कर की चासनी में डाल दो

हाथी को कितना भी नहला दो वह अपने तन पर कीचड मल देगा
भेड़िये के दांत भले ही टूट जाय वह अपनी आदत नहीं छोड़ेगा

पानी चाहे जितना भी उबल जाय उसमे चिंगारी नहीं उठती है
एक बार बुरी लत लग जाय तो वह आसानी से नहीं छूटती है

एक आदत को बदलने के लिए दूसरी आदत डालनी पड़ती है
और अगर आदत को नहीं रोका जाय तो वह जरुरत बन जाती है


-Kavita Rawat