तनिक सी आहट होती
चौंक उठता आतुर मन
जैसे आ गए वे
जिसका रहता है
दिल को अक्सर
इन्तजार
हर बार
बार-बार
बार-बार.
वे दिल के करीब रहकर भी
कभी-कभी जाने क्यों?
दूर दूर नज़र आते हैं
अपनों के बीच रहकर
कभी-कभी जाने क्यों?
अजनबी से दिखते हैं
यह देख उठती दिल में
गहरी टीस
अति धारदार
हर बार
बार-बार
बार-बार.
गुजरे करीब से जब भी वे
तन-मन में सिहरन सी उठती है
थोड़ी सी निगाह पड़ी जब भी
सीधे दिल पर वार करती है
पागल मन बुनता सप्तरंगी सपने
भागता पीछे-पीछे
और फिर बहती प्रेमनद
बन अति तीव्रधार
हर बार
बार-बार
बार-बार.
-कविता रावत
28 टिप्पणियां:
naya rang liye ye rachana pyaree lagee............meethe se ahsaas kee chubhan jiye.........
दिल के करीब रहकर भी
कभी-कभी जाने क्यों?
दूर दूर नज़र आते हैं
अपनों के बीच रहकर
कभी-कभी जाने क्यों?
अजनबी से दिखते हैं
....bahut sundar rachna.
पागल मन बुनता सप्तरंगी सपने
भागता पीछे-पीछे
और फिर बहती प्रेमनद
बन अति तीव्रधार...
दिल के करीब रहकर दूर रहने वाले ....
अपनों के करीब रहकर अजनबी रहने वाले
यही तो है रिश्तों की मायानगरी ...
अच्छी कविता ...!!
कविता सिर्फ महसूस की जा सकती है । इस कविता को मस्तिस्क से न पढ़कर बोध के स्तर पर पढ़ना जरूरी है।
मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है....बहुत खूबसूरत रचना...बधाई
गुजरे करीब से जब भी वे
तन-मन में सिहरन सी उठती है
थोड़ी सी निगाह पड़ी जब भी
सीधे दिल पर वार करती है
पागल मन बुनता सप्तरंगी सपने
अनछुए अहसास लिए हुए सुन्दर कविता
तनिक सी आहट होती
चौंक उठता आतुर मन
जैसे आ गए वे
जिसका रहता है
दिल को अक्सर
,,,,,,,,अच्छी कविता ...!!
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
कुंवर जी,
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
अपनों के बीच रहकर
कभी-कभी जाने क्यों?
अजनबी से दिखते हैं
ye hui shaandaar rachna, shaandaar abhivyakti
अच्छी रचना...बधाई
मनोभावो को बखुबी बाँधा है।
रिस्तों की उधेड़बुन ऐसी ही होती है ... कभी कुछ तो कभी कुछ ...
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है ...
सुन्दर ,सरल शब्दों के माध्यम से गहन बात कह दी है ..ऐसी उलझन अक्सर सभी को होती होगी.
...बहुत सुन्दर, प्रसंशनीय रचना!!!
संवेदनशील वक्तव्य!
गुजरे करीब से जब भी वे
तन-मन में सिहरन सी उठती है
थोड़ी सी निगाह पड़ी जब भी
सीधे दिल पर वार करती है
पागल मन बुनता सप्तरंगी सपने
भागता पीछे-पीछे
और फिर बहती प्रेमनद
बन अति तीव्रधार
हर बार
बार-बार
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
kavita ji ,
bahut hi sanvedansheel rachna . man ke bheetar kahin chooti hui ... aur na jaane kitne saare shabdo ke ahsaas ko gunjan deti hui ....
aabhar aapka
vijay
आपकी दोनों नई रचनाओं और ४-५ महीने पहले की रचनाओं में मुझे तो हर द्रष्टिकोण से बहुत ज्यादा फर्क नजर आ रहा है - हार्दिक शुभकामनाएं - keep it up.
Komal bhavanaon kee bahut sundar aur sahaj prastuti---badhiya kavita----.
कुछ अलग हठ कर है यह रचना, शुभकामनायें !
वे दिल के करीब रहकर भी
कभी-कभी जाने क्यों?
दूर दूर नज़र आते हैं
अपनों के बीच रहकर
कभी-कभी जाने क्यों?
अजनबी से दिखते हैं
यह देख उठती दिल में
गहरी टीस
अति धारदार
हर बार
बार-बार
बार-बार.
ati uttam ,behad khoobsurat
अलग सी शैली की रचना. कुछ कुछ ध्वन्यात्मक भी
तनिक सी आहट होती
चौंक उठता आतुर मन
जैसे आ गए वे
जिसका रहता है
दिल को अक्सर
इन्तजार
हर बार
बार-बार
बार-बार.
Wo aaye?
Sadhuwad!
ये प्रेम नदी कभी सुख नहीं सकती है।
भावों को बखूबी शब्दों में ढाला है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जी बेहतरीन रचना
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