जब कोई मुझसे पूछता है.......
'कैसे हो?'
तो होंठों पर ' उधार की हंसी'
लानी ही पड़ती है
और मीठी जुबां से
'ठीक हूँ '
कहना ही पड़ता है
अगर जरा भी जुबां फिसली
और कह दिया
'नहीं बीमार हूँ'
तो समझो तब मैं बेकार हूँ!
फिर कुछ लोग कहाँ कहने से चूकते हैं
दुनिया भर की दवा-दारू बताने लगते है!
कहते हैं-
'अरे भाई तुम तो कुछ भी नहीं पीते खाते हो
फिर भी जब तब देखो बीमार होते हो
अरे भाई हमें देखो!
हम तो सबकुछ खाते-पीते हैं
पर कभी तुम्हारी तरह बीमार नहीं रहते हैं?
अरे भाई हमारी मानो
पर कभी तुम्हारी तरह बीमार नहीं रहते हैं?
अरे भाई हमारी मानो
तुम भी हमारे साथ सबकुछ खाया पिया करो
और हमारी तरह हमेशा स्वस्थ और मस्त रहो
बेबस होकर सोचता हूँ -
अच्छे भले इंसान को
जब कोई रोग लगता है
तो वह क्यों कुछ लोगों के लिए
अच्छे भले इंसान को
जब कोई रोग लगता है
तो वह क्यों कुछ लोगों के लिए
मजाक बनता है!
क्यों वे लोग भी आकर दुनियाभर की
क्यों वे लोग भी आकर दुनियाभर की
सलाह देने लगते हैं
जो ज़माने भर के रोग पाले रखते हैं
जो जमाने भर के रोग पाले रखते हैं
... कविता रावत
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आज की भाग-दौड़ की जिंदगी के बीच अनियमित दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन,
बढ़ते प्रदूषण आदि कारणों से इन्सान को कई प्रकार के व्याधियों ने आ घेरा
हैं, किसे कब क्या हो जाय, कोई कुछ नहीं बता सकता? फिर भी हमारे इर्द-गिर्द
ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं, जो खाने पीने की बात कर अपनी स्वस्थ बने रहने की घोषणा करते हुए
किसी अच्छे भले इंसान के रोगग्रस्त होने पर उसका मज़ाक बनाने लगते हैं,,,,ऐसे में भला एक सीधा साधा इंसान भला क्या सोचेगा? ऐसी ही मनोदशा के चित्रण की एक कोशिश प्रस्तुत कविता में
है।