जब कोई मुझसे पूछता है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

जब कोई मुझसे पूछता है


जब कोई मुझसे पूछता है.......
'कैसे हो?'
तो होंठों पर ' उधार की हंसी'
लानी ही पड़ती है
और मीठी जुबां से
'ठीक हूँ '
कहना ही पड़ता है
अगर जरा भी जुबां फिसल गई
और कह दिया
'नहीं बीमार हूँ'
तो समझो अब मैं बेकार हूँ!
फिर कुछ लोग कहाँ कहने से चूकते हैं
दुनिया भर की दवा-दारू बताने लगते है!
कहते हैं-
'अरे भई! तुम तो कुछ भी नहीं खाते-पीते  हो
फिर भी बीमार होते हो
अरे हमें देखो! हम तो सबकुछ खाते-पीते हैं
पर कभी तुम्हारी तरह बीमार नहीं होते हैं?
अरे भई! सबकुछ खाया-पिया करो
और हमारी तरह रहा करो.''
बेवस होकर सोचता हूँ -
अच्छे-खासे दिखते इंसान को
जब कोई रोग लग जाता है
तो वह क्यों कुछ लोगों के लिए
अच्छा-खासा मजाक सा बन जाता है!
क्यों वे लोग भी आकर दवा-दारू बताते हैं
जो ज़माने भर के रोग पाले रखते हैं  ..      . .. कविता रावत

 ...................................................................................
आज की भाग-दौड़ की जिंदगी के बीच अनियमित दिनचर्या, खान-पान, रहन-सहन, बढ़ते प्रदूषण आदि कारणों से इन्सान को कई प्रकार के व्याधियों ने आ घेरा हैं, किसे कब क्या हो जाय, कोई कुछ नहीं बता सकता? फिर भी हमारे इर्द-गिर्द ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं, जो अपनी स्वस्थ बने रहने की घोषणा करते हुए किसी अच्छे-खासे दिखते पर व्याधिग्रस्त व्यक्ति का मजाक उड़ाने में जरा भी आगे-पीछे नहीं सोचते. ऐसे में भला एक पीड़ित व्यक्ति भला क्या सोचेगा? ऐसे ही पीड़ित व्यक्ति की मनोदशा का चित्रण करने की एक कोशिश प्रस्तुत कविता में है।


              

36 टिप्‍पणियां:

  1. badi khubsurati se aapne yatharth ka varnan kiya hai........sach me aisa hi kuchh hota hai..:)

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बेवस होकर सोचता हूँ कि -
    अच्छे-खासे दिखते इंसान को
    जब कोई रोग लग जाता है
    तो क्यों वह कुछ लोगों के लिए
    अच्छा-खासा मजाक सा बन जाता है!
    क्यों वे लोग भी आकर दवा-दारू बताते हैं
    जो ज़माने भर के बेदर्द हुआ करते हैं
    Ye anubhav swayam mujhe hua hai..aapne behad suljhe hue tareeqe se shabdon me dhala hai..!Behad achhee rachana..

    जवाब देंहटाएं
  4. "Bevas'ke badle 'bebas kar dengee?

    जवाब देंहटाएं
  5. "बेवस होकर सोचता हूँ कि -
    अच्छे-खासे दिखते इंसान को
    जब कोई रोग लग जाता है
    तो क्यों वह कुछ लोगों के लिए
    अच्छा-खासा मजाक सा बन जाता है!
    क्यों वे लोग भी आकर दवा-दारू बताते हैं
    जो ज़माने भर के बेदर्द हुआ करते हैं"

    बहुत अच्छी लगी ये कविता अच्छा है ये सब लिखना क्योंकि लगभग सभी लोगों कों इससे गुजरना पड़ता है कभी न कभी

    जवाब देंहटाएं
  6. क्यों वे लोग भी आकर दवा-दारू बताते हैं
    जो ज़माने भर के बेदर्द हुआ करते हैं
    ...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  7. क्यों वे लोग भी आकर दवा-दारू बताते हैं
    जो ज़माने भर के बेदर्द हुआ करते हैं......
    sunder..................

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ मर्मस्पर्शी रचना लिखा है आपने! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  9. कविता में इस नए दर्द को बहुत सुन्‍दर उकेरा है आपने, धन्‍यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छे-खासे दिखते इंसान को
    जब कोई रोग लग जाता है
    तो क्यों वह कुछ लोगों के लिए
    अच्छा-खासा मजाक सा बन जाता है!
    क्यों वे लोग भी आकर दवा-दारू बताते हैं
    जो ज़माने भर के बेदर्द हुआ करते हैं
    ....Dawa-daaru batane walon kee bhala hamare desh main kahan kami hai. kuch logon ka har kisi ka majak udane mein maja aata hai lekin ek din we khud majak ban jaate hai aur phir kisi ko kuch batane kee sthithi mein nahi rahti..
    Prabhvpurn dhang se aapne ek aam jan kee peeda ko kareeb se samjha hai... Aabhar

    जवाब देंहटाएं
  11. बचपन में रीडर्स डाईजेस्ट किताब पढने का लत था..अऊर उसका एगो बात अभी तक याद है... किसी के सामने अपना दुःख अऊर आँसू का प्रदर्सन मत करो, क्योंकि दुनिया में इस चीज का कोनो मार्केट नहीं है... कम से कम बास्तविक जीवन में त एकदमे नहीं... अगर कोई पूछे कईसे हो त आप ठीक कहीं हैं कि अच्छा बोलकर निकल जाना चाहिए...
    कबिता जी! आपका कबिता जीबन का सच्चाई दर्साता है!!

    जवाब देंहटाएं
  12. जब कोई मुझसे पूछता है.......
    'कैसे हो?'
    तो होंठों पर ' उधार की हंसी'
    लानी ही पड़ती है
    और मीठी जुबां से
    'ठीक हूँ '
    जीवन में औपचारिकताए इस कदर हावी हैं कि यह अन्दाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि हकीकत क्या है
    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. रहीम की पंक्तियों का स्मरण हो आया
    रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय,
    सुन इठलईहें लोग सब, बाँट न लईहें कोय.
    बहुत अच्छी बात कही है आपने...

    जवाब देंहटाएं
  14. चाहे कोई आपकी निन्‍दा या अपमान करता है फिर भी उस पर मुस्‍कान व शुभकामनाओं के पुष्‍पों की वर्षा करें।

    जवाब देंहटाएं
  15. मर्मस्पर्शी रचना.

    जवाब देंहटाएं
  16. बिल्कुल सही लिखा है कविता जी. मैं भी अक्सर बीमार रहती हूँ और दवा खाती हूँ. जब लोग कहते हैं कि इतनी दवा क्यों खाती हो? तो बहुत गुस्सा आता है. क्या कोई अपनी मर्जी से बीमार रहना चाहता है और शौक से दवा खाता है... हाँ वो जरूर बीमारी का नाटक कर सकता है, जिसकी देखभाल करने वाले लोग होते हैं, पर जिसे खुद अपनी देखभाल करनी हो, कोई पूछने वाला ही ना हो तो वो भला बीमारी का बहाना क्यों करेगा...? या एक बीमार आदमी, जो खाना भी ठीक से नहीं पाता, उसे कोई ये कहे कि फल-दूध खाया करो... असल में लोग खुद को अगले की जगह पर रखकर नहीं सोचते और सलाह देने लग जाते हैं.
    आपने तो लगता है कि मेरे ही मन की बात कह दी हो क्योंकि मैं ऐसी सलाहों से तंग आ चुकी हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  17. ...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  18. नमस्कार जी...

    आपके ब्लॉग पर मेरा यूँ तो आना पहले भी हुआ है पर तब जब जब मैंने आपके ब्लॉग का अनुसरण करना चाह तो जाने किस तकनीकी खामी के चलते कंप्यूटर स्वतः ही ऑफ हो जाता था और में किन्कर्त्व्यविमूध सा बैठा देखता रह जाता था की क्या हुवा...खैर आज ऐसा कुछ न हुआ और यह प्रक्रिया सफलता पूर्वक संपन्न हो गयी...

    आपके प्रस्तुत आलेख अत्यधिक मर्मस्पर्शी है...सच कहते हो आप...जो व्यथा और कष्ट में होता है उसे मुफ्त की सलाह देने वाले बहुत मिल जाते हैं और गाहे बगाहे अपनी तारीफों के पुल बंधते हुए अपनी बातों को रखते हैं जैसे सामने वाले को जो रोग हो गया हो वो उनके जैसा नहीं है सिर्फ और सिर्फ इसलिए हुआ हो...

    आपकी हर पोस्ट पर लगे चित्र...मुझे उत्तरांचल की याद दिलाते हैं... जीवन का एक हिस्सा मैंने भी उत्तरांचल में जिया है... और वहां पुनः जाने के लिए प्रयत्नशील हूँ... देखें ये हसरत कब पूरी होती है...देवभूमि हमें पुनः कब बुलाती है...

    दीपक...

    जवाब देंहटाएं
  19. ...सार्थक अभिव्यक्ति!!!

    जवाब देंहटाएं
  20. वस होकर सोचता हूँ कि -
    अच्छे-खासे दिखते इंसान को
    जब कोई रोग लग जाता है
    तो क्यों वह कुछ लोगों के लिए
    अच्छा-खासा मजाक सा बन जाता है!
    मर्मसपर्शी रचना है\ लोग दर्द बंटाने नही आते बल्कि अपना दिल बहलाने आते है। किसी की बेबसी उनके लिये मजाक बन जाती है। बहुत गहरे भाव लिये पोस्ट के लिये धन्यवाद और शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  21. kavita ji, mujhe lagta hai jaise aapki is kavita
    me main apne aapko pa rahi hun.aksar jab bimaar hoti hun to aise hi kuchh sawalaat mujhse bhi kiye jaate hai aur main pareshaan ho jaati hun.aapne ek aswasth vykti ke antarman ki manovytha ka bakhoobi chitran kiya hai.badhai.
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  22. her use bimar aadme kee antaratmaa kee aawaz hai ye kavita jise bin mange hazar salah dene wale mil jate hai.........
    Kavita bahut hee sunder bilkul dil se nikalee anubhuti.............

    जवाब देंहटाएं
  23. वस होकर सोचता हूँ कि -
    अच्छे-खासे दिखते इंसान को
    जब कोई रोग लग जाता है
    तो क्यों वह कुछ लोगों के लिए
    अच्छा-खासा मजाक सा बन जाता है!
    बहुतों के दर्द को शब्दों में ढाल दिया आपने...संवेदनशील रचना

    जवाब देंहटाएं
  24. dil ko chhoo jane vali rachna. kotishah dhanyvad.

    जवाब देंहटाएं
  25. बेनामी12:18

    bahut hi behtareen...
    sach me jab koi poochta hai kaise ho to samajh nahi aata kya jawab doon....
    bas yahi kehta hoon ki theek hoon,,,
    mann ko choo lene wali kavita....

    जवाब देंहटाएं
  26. naseehton ki kami nahin, isse behtar hai udhaar ki muskaan

    जवाब देंहटाएं
  27. कविता जी
    बचपन में पढ़ा था कि खुशी बांटने से बढ़ती है, दुख बांटने से कम होता है। पर आज कितना उल्टा हो रहा है। किताब की बातें किताब में ही रह गई हैंं...कितना सही लिखा है आपने। लोगो को दूसरों का मजाक उड़ाने में मजा आता है। ये नहीं कि कोई प्रेक्टिकल बात करे, मदद करे। पर वो नहीं। सलाह देने में सब आगे। पर आगे बढ़कर मदद करने के नाम पर सब पीछ हो लेते हैं। यही तो जीवन की कड़वी सच्चाई है। ऐसा नहीं है कि सारी दुनिया ऐसी है। पर अधिकांश दुनिया ऐसी ही है।

    जवाब देंहटाएं
  28. रहिमन निज मन की व्यथा मन में राखो गोय
    सुनि अठिलैहें लोग सब, बांट न लेहैं कोय.
    ...सुंदर पोस्ट.

    जवाब देंहटाएं
  29. बेनामी19:43

    कविता में 'नहीं बीमार हूँ' दर्द को बहुत सुन्‍दर उकेरा है आपने, धन्‍यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  30. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 28 जुलाई जुलाई 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  31. बीमार न होना यदि अपने हाथ में ही होता तो कोई भी बीमार न होता.. हम स्वस्थ रहने के उपाय मात्र ही कर सकते हैं..मर्मस्पर्शी कविता

    जवाब देंहटाएं
  32. बि‍ल्‍कुल सही कहा आपने...ऐसे में बीमार खुद को और बीमार समझने लगता है। मन छूने वाली रचना।

    जवाब देंहटाएं
  33. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
    https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena

    जवाब देंहटाएं