अब तक 15 हज़ार से भी अधिक लोगों को मौत के आगोश में सुला देने वाली विश्व की सबसे बड़ी औधोगिक त्रासदी की आज 31वीं बरसी है। आज भी जब मौत के तांडव का वह भयावह दृश्य याद आता है तो दिल दहल जाता है और ऑंखें नम हुए बिना नहीं रहतीं। आधी रात बाद हुई इस विभीषिका का पता हमें तब लगा जब आँखों में अचानक जलन और खांसी से सारे घरवालों का बुरा हाल होने लगा। पिताजी ने बाहर आकर देखा तो बाहर अफरा-तफरी मची थी। घर के सामने श्यामला हिल्स से लोग गाड़ी-मोटर और पैदल इधर-उधर भाग रहे थे। लोग चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि गैस रिस गई है। हम भी एक गाडी में जो पहले से ही ठूस-ठूस कर भरी थी, जान बचाने के वास्ते उसमें ही ठुस गए। भोपाल से दूर जाकर ही कुछ राहत मिली। सुबह 5 बजे वापस आये तो फिर से अफवाह फैली कि फिर से गैस रिस गई है और हमें फिर भागना पड़ा।आँखों में जलन और श्वास की तकलीफ का चलते जब हमीदिया हॉस्पिटल जाना हुआ तो रास्ते में सैकड़ों मवेशी इधर-उधर मरे पड़े दिखे। भ्रांतियों और आतंक से घोर सन्नाटा पसरा था। लोग ट्रकों से भर-भर कर इलाज के लिए आ रहे थे, कई लोग उल्टियाँ तो कई आँखों को मलते लम्बी-लम्बी सांस लेकर सिसकियाँ भर रहे थे। कई बेहोश पड़े थे जिन्हें ग्लूकोस और इंजेक्शन दिया जा रहा था। अस्पताल के वार्डों के फर्श पर शवों के बीच इंजेक्शन के फूटे एम्म्युल और आँखों में लगाने की मलहम की खाली ट्यूबें बिखरी पड़ी थी। मरने वालों में सबसे ज्यादा बच्चे थे, जिन्हें देखकर हर किसी के आँखों से आंसूं रुके नहीं रुकते थे। इस त्रासदी में लोगों का असहनीय दुःख देख मैं अपना दुःख भूल सोचने लगी .....
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
गहन तम में नहीं इस दिल को कुछ सूझ पाया है
पर परदुःख में मैंने अक्सर दुःख अपना छुपाया है
इसी भाव से मन में बहती सबके सुख-दुःख की सरिता
जब-जब द्रवित हुआ अंतर्मन तब-तब साकार हुई कविता
इस विभीषिका के कई सवाल उभर कर आये लेकिन समय के साथ-साथ ये सवाल भी काल के गर्त में समा गए हैं. मसलन क्यों और किस आधार पर इतनी घनी आबादी के बीच संयंत्र लगाने की अनुमति दी गई. पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम क्यों नहीं थे आदि बहुत से प्रश्नों के साथ यह भी अनुतरित प्रश्न आज भी हैं कि गैस त्रासदी की जांच के लिए बिठाए गए न्यायिक आयोग को गैस सयंत्र की स्थापना की अनुमति सम्बन्धी जांच का अधिकार क्यों नहीं सौंपा गया? सयंत्र के अध्यक्ष वारेन एंडरसन एवं कंपनी के ७ अन्य अधिकारियों के खिलाफ सबसे पहले आईपीसी की किन धाराओं में मुकदमें दर्ज हुए, उनमें से १२० व अन्य धाराएँ बाद में कैसे हट गई? चेयरमेन को ७ दिसम्बर को गिरफ्तार कर जमानत पर रिहा क्यों किया गया? कार्बाइड कारखाने के घातक रसायनों का अब तक निपटारा क्यों संभव नहीं हो सका है?
भोपाल की यह विभीषिका जहाँ विश्व की भीषण दुर्घटनाओं में एक है, जिसमें हजारों लोग मारे गए और आज भी कई हजार कष्ट और पीड़ा से संत्रस्त होकर उचित न्याय और सहायता की आस लगाये बैठे हैं, क्या यह खेदजनक और दुखप्रद नहीं कि सत्ता की गलियारों में बैठे अपनी सिर्फ थोथी शेखी बघारकर अपने प्राथमिक कर्तव्य से विमुख होकर वोट की राजनीति में ही लगे रहते हैं?
41 टिप्पणियां:
mahsoos karna aur us bhayanak raaste se gujarna aur jeena .... likhker bhi kya kahna , we mundi palken kab aankhon se jati hain !
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
...gahara dard jhalakta hai...aapke dard ko mahsoos kiya jaa sakta hai...bhopal kand ek aisee hadasaa thee jise koi bhee indian kaise bhool sakta hai.....
man bhar gaya
एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
यह विभिषिका कुछ ऐसी ही थी --
ऐसी त्रासदी पर क्या न्याय कर पायेंगें ...कुछ भी करना कम ही होगा ..
padhkar man bhar aaya,is trasdi ko mere bade pitaji aur us waqt bhopal main rehne waale hamare parichito ne bhi bhukta hain.
itni badi trasdi hui par abhi tak doshiyon ko saza nahi mili..aur saza milegi bhi ya nahi ye bhi pata nahi.
जो झेलता है वही महसूस कर सकता है कि दर्द क्या होता है.आपने सही कहा है कि सत्ता शीर्ष पर बैठे ये लोग चाहे वो किसी भी दल के हों सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक की राजनीति में लगे रहते हैं.
द्रवित कर देने वाली पंक्तियाँ लिखी हैं आपने.
सादर
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
...bhopal gas kand ke barsi par aapka aalekh aur kavita padhkar dil bhar aaya. ..sach mein kayee anutarit sawal abhi tak jas ke tas hai....raajniti kis kadar janta par havi hai aur janta kis tarah mook bankr sabkuch dekhten huye bhi nahi dekh paati hai.. iska prataksh udahara hai ya trasadi..
आपका आलेख पढ़कर मन बेहद द्रवित हो उठा, मन में कई सवाल उभर कर सामने आ रहें हैं....
भोपाल गैस त्रासदी की इतनी लम्बी अवधि गुजर जाने के बाद भी पीड़ितों को समुचित न्याय न मिलना हमारी सरकारों की ढिलाई को गहरी पोल खोलती है. जब इतनी बड़ी संवेदनशील त्रासदी का यह हश्र है तो किसी भी सरकार से आम जनता क्या उम्मीद कर सकती है!!!!! शायद वोट देकर जनता भी इतिश्री कर लेती है .......
sach bhopal gas trasadi bahut badi trasadi thi.. aur aaj bhi iske liye doshiyon ko sajja n milna hamari kaanoni vywastha aur raajnetaon kee pol khol rahi hai....
gareeb janta ka kya haal hota hai yah es trasadi ke shikar huyee gareeb janta ke haal jaankar aasani se liya jaa sakta hai..
aabhar aapka aapne ek samyik jaankari ham tak pahunchayee
आलेख पढ़कर मन बेहद द्रवित हो उठा
...gahara dard jhalakta hai aapke aalekh mein.. padhkar man darvit ho utha.. aaj tak niya na milna bhi ek bahut badi trasdi hai hamare shashan prashana kee....
bahoot hi marmik aalekh.kavita dil ko chhoo gayee........
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
Aah! Dard kee bhee phulwariyan saji hain...
ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
मन को द्रवित करनेवाली अभिव्यक्ति..जिन्होंने इस दर्द को महसूस किया उनको सलाम...इतने वर्षों बाद इस प्रशासन से क्या न्याय की आशा की जासकती है..
bahut khubsurar.
आपके ब्लॉग पर आना हमेशा एक नया अनुभव होता है!!आपके वर्णन ने उस विभीषिका को जीवंत कर दिया!एक कोढ़ की तरह यह घटना चिपकी है देश के माथे पर!!
... behad maarmik !!!
मन द्रवित हो उठा। बहुत ही अच्छा लिखा है आपने।
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
सच में दर्द है इस दुनिया में ...बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति ...दिल द्रवित हो उठा ...
कभी चलते -चलते पर भी दर्शन दें तो हमें ख़ुशी होगी
2 दिसम्बर की की काली रात कई उजले चहरो को काला कर गई एक अर्जुन सिंह जो उस वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जिसने वारन एंडरसन को ससम्मान सारे आपराधिक प्रकरणों से मुक्त कर उसे दिल्ली पहुंचाया, दो राजीव गांधी जो उस वक्त प्रधानमंत्री थे उन्होंने पच्चीस हजार निर्मम हत्याओं के जिम्मेदार हत्यारे को दिल्ली में स्वागत किया और ससम्मान विदेश पहुंचाया, तीसरा वह लोग (जस्टीस अहमदी) जिन्होंने डाउ कैमिकल पर दर्घटना का मुकदमा चला कर पच्चीस हजार मौतों के जिम्मेदार और कितने ही दर्द में तड़पते जिन्दा लोगों के जख्मों पर नमक मला। यह सब चहरे जनता के सामने उजागर है इन पर अपना फैसला आप तो सही करिए
इस देश में गरीबों और असहायों की कौन सुनता है।
आपने इनकी खैर खबर ली, इस हेतु आप बधाई की पात्र हैं।
---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
आपकी यह पोस्ट लोगों की ऑंखें खोलने के लिए काफी है...
एक तरफ कांटे दिखे दूसरी तरफ फुलवारी इसका संदर्भ समझ में नहीं आ सका । पर दुख में अपना दुख भूल जाना यही मानवता है। मन के द्रवित होने पर कविता का साकार होना । हो ही जाना चाहिये।एसे क्षणों में भी कविता साकार नहीं होगी तो क्या मतलव है कवि होने का। मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य
भोपाल गैस त्रासदी पर आपकी पोस्ट मन को झंकझोरती है.पर क्या करें ये देश सिर्फ सवालों पर ही चलता है यहाँ जवाब कोई न तो होता है न कोई देता है
बेहतरीन प्रस्तुति ......
भोपाल गैस त्रासदी की याद से मन सिहर जाता है
jhakjhhorti hui sarthak post , hila ke rakh diya
26 साल लम्बा दुख।
बहुत ही दिल दहलाने वाला दर्दनाक मंज़र था वो ... और बहुत ही अफ़सोस की बात है की आज तक इसका उपयोग राजनीति करने के लिए होता है .....
आपने तो इस दर्द को झेला है ... आपका दर्द समझा आता है ..
kavita ji
bhopal gass trasadi ek bahut hi bhayanak ghatna jise shyad koi bhula nahi paya hoga .
aaj aapki post padhkar purane jakhm jaise taja ho gaye.
bahut hi marmik avam man ko dravit kar gai aapki post.
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
...आलेख पढ़कर मन बेहद द्रवित हो उठा
फिर वही मार्मिक चित्रण
मगर इसका उपयोग अब केवल राजनैतिक रोटी सेकने के लिये हो रहा है।
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
...मार्मिक।
आधी रात बाद हुई इस विभीषिका का पता हमें तब लगा जब आँखों में अचानक जलन और खांसी से सारे घरवालों का बुरा हाल होने लगा. पिताजी ने बाहर आकर देखा तो बाहर अफरा-तफरी मची थी. घर के सामने पहाड़ी से लोग गाडी-मोटर और पैदल इधर-उधर भाग रहे थे. लोग चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि गैस रिस गई है. हम भी एक गाडी में जो पहले से ही ठूस-ठूस कर भरी थी, उसमें ही ठुस गए. भोपाल से दूर जाकर ही कुछ राहत मिली. सुबह ५ बजे वापस आये तो फिर से अफवाह फैली कि फिर से गैस रिस गई है और हमें फिर भागना पड़ा. आँखों में जलन और श्वास की तकलीफ का चलते जब हॉस्पिटल जाना हुआ तो रास्ते में सैकड़ों मवेशी इधर-उधर मरे पड़े दिखे. भ्रांतियों और आतंक से घोर सन्नाटा पसरा था. लोग ट्रकों से भर-भर कर इलाज के लिए आ रहे थे, कई लोग उल्टियाँ तो कई आँखों को मलते लम्बी लम्बी सांस लेकर सिसकियाँ भर रहे थे. कई बेहोश पड़े थे जिन्हें ग्लूकोस और इंजेक्शन दिया जा रहा था. अस्पताल के वार्डों के फर्श पर शवों के बीच इंजेक्शन के फूटे एम्म्युल और आँखों में लगाने की मलहम की खाली ट्यूबें बिखरी पड़ी थी. मरने वालों में सबसे ज्यादा बच्चे थे, जिन्हें देखकर हर किसी के आँखों से आंसूं रुके नहीं रुकते थे.
ओह .....तो ये त्रासदी ये विभीषिका आपने भी झेली है ......?
तभी शायद आपको ये तारीख नहीं भूलती .....
कभी इस पर पूरा संस्मरण लिखिए कैसे क्या हुआ था .....!!
भोपाल त्रास्दी की सुन कर ही मन सिहर उठता है जिसने झेला हो उसके लिये शब्द नही।
मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
बहुत मार्मिक अभीव्यक्ति है। शुभकामनायें।
आदरणीया कविता रावत जी
प्रणाम !
भोपाल की भयावह गैस विभीषिका पर आपने इतना मर्मस्पर्शी आलेख लिखा है, … उन दिनों रेड़ियो और समाचारपत्रों के माध्यम से इस त्रासदी की प्रथम सूचना मिली थी ।
… आंखें तब भी नम हो गई थीं, आपका आलेख पढ़ कर भी …
उन दिनों मेरे कुछ पत्र मित्र हुआ करते थे , उन्हीं में एक संजय अंत्रीवाले और एक अंतिम कुमार प्रयत्नशील भोपाल के थे । मैंने उनसे इस हृदय द्रवित कर देने वाली दुर्घटना की और जानकारी ली थी … मन उदास हो गया ।
पर परदुःख में मैंने अक्सर दुःख अपना छुपाया है
बहुत संवेदनशील कविता है । इंसान संकट में भी परदुःखकातरता और संवेदना नहीं भूलता ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अच्छा विश्लेषण है यह इस त्राज़दी पर इस न भूलने वाली घटना पर अब केवल आँसू बहाना ही काफी नहीं ।
गहन तम में नहीं इस दिल को कुछ सूझ पाया है
पर परदुःख में मैंने अक्सर दुःख अपना छुपाया है
इसी भाव से मन में बहती सबके सुख-दुःख की सरिता
जब द्रवित होता अंतर्मन तब साकार हो उठती कविता
dravit kar gaya aapka ye lekh.......aur kavita kee ye panktiya aapke swabhav par prakash dalti hai......God bless you.
Kavita ji ..bahot achha tha aapka ye lekh ...koi sabd ni hai mere pass aapne sab kuchh to likh hi diya ...bas aapko or aapki kalam ko ek shakti mile sabhi dukhon se ladne ki ..ye hi meri mangal kamana hai aapke sath....bahot bahot dhanyvad ..aapne ye sab kavita main likha or hum sab kuchh samjh gaye ..ki kya raha hoga tab wahan ke logon ka ...dhanyvad
एक टिप्पणी भेजें