थोड़ी सी बात हुई
चंद मुलाकात हुई
वे अपना मान बैठे
जाने क्या बात हुई
देखते आये थे जिसे
करने लगे ‘प्यार’ उसे
वे इसे ही समझ बैठे
जग समझे चाहे जिसे
प्यार में सिमटने लगे
दूर सबसे छिटकने लगे
आंखों में सपने लिए
रात भर जगने लगे
दिखते न थे जो आसपास
डालते नहीं थे सूखी घास
उनकी नज़र में आने लगे
वही अब बन खासमखास
पर जब लंबे अरसे बाद
उनसे हुई एक मुलाकात
न थी आंखों में रौनक
न होंठों पे पहले जैसी बात
मुर्दानी सूरत नज़र आई
चेहरे पर उड़ती थी हवाई
कसम खाते थे जिस प्यार की
उसी से थी अब रुसवाई
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्सर
छोड़कर अपना सीधा रास्ता
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
चंद मुलाकात हुई
वे अपना मान बैठे
जाने क्या बात हुई
देखते आये थे जिसे
करने लगे ‘प्यार’ उसे
वे इसे ही समझ बैठे
जग समझे चाहे जिसे
प्यार में सिमटने लगे
दूर सबसे छिटकने लगे
आंखों में सपने लिए
रात भर जगने लगे
दिखते न थे जो आसपास
डालते नहीं थे सूखी घास
उनकी नज़र में आने लगे
वही अब बन खासमखास
पर जब लंबे अरसे बाद
उनसे हुई एक मुलाकात
न थी आंखों में रौनक
न होंठों पे पहले जैसी बात
मुर्दानी सूरत नज़र आई
चेहरे पर उड़ती थी हवाई
कसम खाते थे जिस प्यार की
उसी से थी अब रुसवाई
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्सर
छोड़कर अपना सीधा रास्ता
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
..कविता रावत
54 टिप्पणियां:
आदरणीय कविता जी
नमस्कार !
खूबसूरत अह्साशों से भरी बेहतरीन कविता प्रस्तुत की है आपने ....बहुत ही प्यारी रचना !
sahi bat ....piyar karna to sabhi chahte hain par use nibhana ????? koi virla hi ye kar sakta hai..
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्सर
छोड़कर अपना सीधा रास्ता
_
सीधे रस्ते चलने वाले भी कब इस प्यार के चक्कर में घनचक्कर बन जाते है ये उन्हें बहुत बाद में पता चलता है
बहुत खूब अनुभव परिलक्षित होता है कविता में..
बधाई
प्यार का ककहरा सीखना सबके बस की बात नहीं .....
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे...बहुत ही बढ़िया
ककहरे के बाद का व्याकरण कठिन हो जाता है प्यार में..
सार्थक प्रस्तुति ...
निभाना ही तो मुश्किल है ...!!
खुबसूरत एहसास ,सुक्ष्म विवेचन ,सरल विश्लेषण के साथ प्यार का ककहरा .
इस एहसास के गुप्त जी की दो लाइन
प्रणय और बिना झुके ,चलना जैसे रुके रुके
बहुत ही बेहतरीन जो प्यार को समझते ही नहीं है..
वो क्या जाने इसकी गहराई..
कुछ दिन का बुखार है फिर उतर जाता है...
अति उत्तम रचना....
:-)
क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
क्या करें कविता जी प्यार का दस्तूर ही कुछ ऐसा है... बहुत ही बढ़िया रचना
प्यार को प्यार ही ना जाने ......ना जाने ऐसा क्यूँ होता हैं ...
प्यार को प्यार ही ना जाने ...ऐसा क्यूँ होता हैं ?
बहुत सुंदर......
प्यार को ना समझे वो नासमझ हैं.......
सादर.
प्यार का ककहरा बिना पढ़े जीवन आधा है...पढ़ने के बाद कुछ पास होते हैं कुछ फेल...पर कम से कम ख़ुदा के घर जब जायेंगे तो ये तो नहीं कहेंगे कि आपकी नियामत के लिए हमने ट्राई नहीं किया...
प्यार को जो लोग हल्का लेते हैं उनकी क्या गत होती है इसको बड़ी खूबसूरती से पेश किया है आपने ..बहुत अच्छा उदाहरण है ..बहुत सुन्दर रचना
बेहद खूबसूरत एहसास ..........
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्सर
छोड़कर अपना सीधा रास्ता
प्यार की अजब-गजब दास्ताँ का ककहरा बड़ा उलझा सुलझा है ...सुन्दर रचना
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
यही तो बड़ी मुसीबत है ..प्यार हुआ तो उसी की सुनते चले जाते है फिर आफत सबके ऊपर ...
बहुत प्रेरक कविता है ...
ये पढाई हर किसी के बस की बात नहीं
सुन्दर रचना.
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
कोमल रचना....
बहुत खूब....
सादर।
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्सर
छोड़कर अपना सीधा रास्ता
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
Kya baat kahee hai aapne!
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
बहुत खूब कहा है आपने ... आभार।
कौन पढ़ता है ककहरे और व्याकरण को प्यार में
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे...अब तो प्यार कोई एक खेल भर बनता जा रहा है..
बड़ी अच्छी कविता लिखी है ..
कोमल भाव सुन्दर रचना....
कल 23/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... तू हो गई है कितनी पराई ...
सुंदर भाव संयोजन से सजी भावपूर्ण अभिव्यक्ति....
ककहरा समझ में आया . सुँदर रचना .
सच कहा है .. प्रेम हर किसी के बस में नहीं होता ... पर क्या करें इसपे बस भी तो नहीं होता ...
न चाहते हुवे भी ये रोग दबोच लेता है ...
वाह ! बहुत भावपूर्ण रचना...प्रेम करना या न करना कहाँ अपने हाथ में है...
बहुत ही प्रभावित करती पक्तियां । मेरे नए पोस्ट अमीर खुसरो पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्सर
छोड़कर अपना सीधा रास्ता
अजीब दास्तां है ये...!
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्यार के ककहरे
वाह! आपने तो प्यार का क ख ग अच्छी तरह से समझा दिया ...बहुत सुँदर अभिव्यक्ति....
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
हैल्थ इज वैल्थपर पधारेँ।
बहुत ही बढिया लिखा है आपने ............जितनी प्रशंसा हो कम है और ऐसा ही लिखते रहिये
इतना आसान नहीं है प्यार का ककहरा सीखना, सुन्दर रचना, बधाई.
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
हम भी समझ लिए प्यार के ककहरे को ....
आपने बहुत ही बढिया लिखा है ..
ककहरे किस भाषा का शब्द है और इसका अर्थ क्या है ?
इस ककहरे से शुरू हुई गाथा सबके बस की बात नहीं।
हम भी पढ़ चले प्यार का ककहरा!
बहुत रूचिकर पोस्ट । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना का 100 वां वर्ष" पर आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी ।
धन्यवाद ।
ककहरा का मतलब वर्णमाला
ककहरा हिंदी का ही शब्द है जिसका मतलब वर्णमाला है .
प्यार के ककहरे .....पढ़कर मन फिर से न जाने किस दिशा में जाने लगा है
बेहद असरदार
बाकी रचनायें कल पढ़ेगें मैम
आभार
कुछ ही शब्दों में फैला ये कैसा संसार..
बहुत ही सुन्दर रचना.....अभिनन्दन-
shradhdha, saburi...
Good!
पहला पहला प्यार है.
स्मृतियाँ हजार हैं
हृदय स्पर्शी पंक्तिया..सुन्दर रचना ..
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