प्यार का ककहरा ! - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 20 मई 2012

प्यार का ककहरा !

थोड़ी सी बात हुई
चंद मुलाकात हुई
वे अपना मान बैठे
जाने क्‍या बात हुई
देखते आये थे जिसे
करने लगे ‘प्यार’ उसे
वे इसे ही समझ बैठे
जग समझे चाहे जिसे
प्यार में सिमटने लगे
दूर सबसे छिटकने लगे
आंखों में सपने लिए
रात भर जगने लगे
दिखते न थे जो आसपास
डालते नहीं थे सूखी घास
उनकी नज़र में आने लगे
वही अब बन खासमखास
पर जब लंबे अरसे बाद
उनसे हुई एक मुलाकात
न थी आंखों में रौनक
न होंठों पे पहले जैसी बात
मुर्दानी सूरत नज़र आई
चेहरे पर उड़ती थी हवाई
कसम खाते थे जिस प्यार की
उसी से थी अब रुसवाई
प्यार की है अजीब दास्तां
जिनका नहीं प्यार से वास्ता
वे भी चल पड़ते हैं अक्‍सर
छोड़कर अपना सीधा रास्‍ता
बैठते जो कभी पास मेरे
तो समझाती राज गहरे
होती न उनकी ये हालत
पढ़ते न प्‍यार के ककहरे


    ..कविता रावत