होता नित नया सवेरा.... - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

होता नित नया सवेरा....

यदि तेरे घर के आस-पास
होता घर मेरा
दिख जाती इक झलक तेरी
होता नित नया सवेरा
पक्षीगण भी चहक-चहक कर
गाते गीत अनुराग भरे
संग उनके मैं भी गुनगुनाती
खोकर प्यार में तेरे
सूरज की प्रथम किरणों सी
होंठों पर बिखरती तेरे मुस्कान
दिल में छुपा कितना प्यार
कराता मुझको इसका भान
देखकर प्यार में डूबा तुझको
नाच उठता मेरा मयूर मन
मैं भी डूबती प्यार में तेरे
मन बगिया में खिलते सुमन
जब बढ़ती  बेचैनी दिल की
फिर लिखता हाले-दिल राज तेरा
तब गुजरकर मस्त पवन का झोंका
तुझ तक पहुँचाता संदेश मेरा
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कभी प्यार में ऐसे ही जाने कितने तराने दिल से बाहर निकल कर जुबाँ पर होते थे। अब तो  बच्चों में उलझे-सुलझे मन को कुछ सूझता नहीं, प्यार उनमें में कहीं लुप्तप्राय: सा हो गया है। आज घर भी है वो प्यार भी पास है। हमसफ़र के जन्मदिन पर उन प्यार भरे लम्हों की याद में यह तराना प्रस्तुत है।  
     .....कविता रावत