नए साल के लिए कुछ जरूरी सबक - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपने विचारों, भावनाओं को अपने पारिवारिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ कुछ सामाजिक दायित्व को समझते हुए सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का स्वागत है। आप जो भी कहना चाहें बेहिचक लिखें, ताकि मैं अपने प्रयास में बेहत्तर कर सकने की दिशा में निरंतर अग्रसर बनी रह सकूँ|

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

नए साल के लिए कुछ जरूरी सबक


उठिए - जल्दी घर के सारे, घर में होंगे पौबारे
लगाइए - सवेरे मंजन, रात को अंजन
नहाइए - पहले सिर, हाथ-पैर फिर
पीजिए - दूध खड़े होकर, दवा-पानी बैठकर
खिलाइए - आए को रोटी, चाहे पतली हो या मोटी
पिलाइए  - प्यासे को पानी, चाहे कुछ होवे हानि
छोडि़ए    - अमूचर की खटाई, रोज की मिठाई
कीजिए - आये का मान, जाते का सम्मान
जाइए - दुःख में पहले, सुख में पीछे
बोलिए - कम से कम, दिखाओ ज्यादा दम
देखिए - माँ का ममत्व, पत्नी का धर्म
भगाइए   - मन के डर को, बूढे़ वर को
खाइए - दाल-रोटी-चटनी, कितनी भी कमाई हो अपनी
धोइए - दिल की कालिख को, कुटुम्ब के दाग को
सोचिए - एकांत में, करो सबके सामने
चलिए - अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी
बोलिए   - जुबान संभालकर, थोड़ा बहुत पहचानकर
सुनिए  - पहले पराये की, फिर अपनों की
रखिए - याद कर्ज चुकाने की, मर्ज को मिटाने की
भूलिए     -  अपनी बड़ाई को, दूसरे की भलाई को
छिपाइए  - उम्र और कमाई, चाहे पूछे सगा भाई
लीजिए - जिम्मेदारी उतनी, संभाल सको जितनी
रखिए -  चीज़ जगह पर, जो मिले समय पर