हिन्दी दिवस हिन्दी का पर्व है - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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सोमवार, 14 सितंबर 2015

हिन्दी दिवस हिन्दी का पर्व है

प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को मनाये जाने वाला हिन्दी दिवस हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने का गौरव, उसके प्रति निष्ठा व्यक्त करने और विश्व भर में हिन्दी चेतना जागृत कर हिन्दी की वर्तमान स्थिति का सिंहावलोकन कर उसकी प्रगति पर विचार करने का दिन है। हिन्दी दिवस एक पर्व है, जिसमें प्रदर्शनी, मेले, गोष्ठी, सम्मेलन तथा समारोह आयोजन किए जाकर हिन्दी सेवियों को पुरस्कृत तथा सम्मानित किया जाता है। इसके साथ ही सरकारी, अर्द्ध सरकारी कार्यालयों तथा बड़े उद्योगों में हिन्दी सप्ताह और हिन्दी पखवाड़ा आयोजित कर हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया जाता है। हिन्दी दिवस हिन्दी का पर्व है। 
           हमारे देश में अन्य समस्याओं के साथ ही भाषा भी एक समस्या है। देश के हर कोने में अलग-अलग भाषा-भाषी लोग रहते हैं। देश में प्रशासन की भाषा, राजभाषा, न्याय की भाषा आदि बिन्दुओं पर मतभेद रहता है और विभिन्न समस्याएं भी भाषा को लेकर उत्पन्न होती हैं। शिक्षा के माध्यम पर उत्पन्न गहरा मतभेद आज एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है। शिक्षा शास्त्रियों का मत है कि शिक्षा का माध्यम प्राथमिक स्तर से लेकर शोध स्तर पर मातृभाषा में होना चाहिए, इस प्रक्रिया से मातृभाषा का उत्थान तो होगा ही साथ ही राष्ट्रभाषा हिन्दी को भी बल मिलेगा। विदित हो कि भारत सहित कई देशों में विदेशी भाषाएं शिक्षा का माध्यम रही हैं, जो आदर्श स्थिति नहीं कही जा सकती है, क्योंकि विदेशी भाषा में मौलिक शोध सम्भव नहीं हो सकता, विदेशी चिन्तन से स्वयं के मौलिक चिन्तन की हत्या प्रायः हो जाती है, चिन्तन दब जाता है। 
           महावीरप्रसाद द्विवेदी लिखते हैं,’ अपने देश, अपनी जाति का उपकार और कल्याण अपनी ही भाषा के साहित्य की उन्ननति से हो सकता है।’ महात्मा गांधी का कहना है, ’अपनी भाषा के ज्ञान के बिना कोई सच्चा देशभक्त नहीं बन सकता। समाज का सुधार अपनी भाषा से ही हो सकता है। हमारे व्यवहार में सफलता और उत्कृष्टता भी हमारी अपनी भाषा से ही आएगी।’ कविवर बल्लतोल कहते हैं, ’आपका मस्तक यदि अपनी भाषा के सामने भक्ति से झुक न जाए तो फिर वह कैसे उठ सकता है।’ डाॅ. जाॅनसन की धारणा है, ’भाषा विचार की पोशाक है।’ भाषा सभ्यता और संस्कृति की वाहन है और उसका अंग भी। माँ के दूध के साथ जो संस्कार मिलते हैं और जो मीठे शब्द सुनाई देते हैं, उनके और विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय के बीच जो मेल होना चाहिए वह अपनी भाषा द्वारा ही सम्भव है, विदेशी भाषा द्वारा संस्कार-रोपण ससम्भव है। हमारे सामने राष्ट्र की वैज्ञानिक तथा औद्योगिक उन्नति और प्रगति के प्रत्यक्ष साक्ष्य हैं- अमेरिका और जापान। अमेरिका वैज्ञानिक दृष्टि से और जापान औद्योगिक प्रगति से विश्व में सर्वोच्च शिखर पर आसीन हैं। इन दोनों को अपनी-अपनी भाषा पर गर्व है। वे अपनी-अपनी भाषा द्वारा राष्ट्र को यश प्रदान कराने में गौरव अनुभव करते हैं। 
कालरिज कहते हैं, ’भाषा मानव-मस्तिष्क की वह प्रयोगशाला है, जिसमें अतीत ही सफलताओं के जय-स्मारक और भावी सफलताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह साथ रहते हैं।’ इसका अर्थ है कि भाषा के द्वारा प्राचीन गौरव अक्षुण्ण रहता है और उज्जवल भविष्य के बीज उसमें निहित रहते हैं। आज भारत राष्ट्र का प्राचीन गौरव उसकी महिमा, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक उन्नति और प्रगति के लिए हिन्दी से बेहतर और कोई भाषा नहीं है। आज पं. नेहरू तथा उनके कांगे्रसी प्रबल समर्थकों द्वारा ‘फूल डालो और राज्य करो’ की नीति के तहत् ’हिन्दी बनाम प्रांतीय भाषाओं’ का जो विवाद खड़ा कर भारत राष्ट्र को दो भागों उत्तर (हिन्दी पक्षधर) और दक्षिण (हिन्दी विरोधी) में विभक्त कर सुनियोजित षड़यंत्र कर अंग्रेजी को देश की एकता बनाए रखने के नाम पर थोपा गया है, उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाकर उसके स्थान पर हिन्दी को पूर्ण रूप से राजभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ करने का समय आ गया है। 

 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित।