योग दिवस। वर्तमान परिदृश्य में योग की आवश्यकता | International Yoga day | - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शुक्रवार, 21 जून 2024

योग दिवस। वर्तमान परिदृश्य में योग की आवश्यकता | International Yoga day |

आज के भौतिकवादी युग में एक ओर जहां हम विज्ञान द्वारा विकास की दृष्टि से उन्नति के शिखर पर पहुंच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिक रूप से हमारा पतन परिलक्षित हो रहा है। आज  मनुष्य के खान-पान, आचार-व्यवहार सभी में परिवर्तन होने से उसका स्वास्थ्य दिन -ब-दिन गिरता जा रहा है। यही कारण है कि आज हमें ऋषि-मुनियों की शिक्षा को जानने के लिए, उनके द्वारा बनाये उत्तम स्वास्थ्य के रास्ते पर चलने के लिए योग की परम आवश्यकता है, जिससे हम “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय“ की सुखद कल्पना को साकार कर सकें।    
         प्राचीनकाल में योगी समाज से बहुत दूर पर्वतों और जंगलों की गुफा-कंदराओं के एकांत में तपस्या किया करते थे। वे प्रकृति पर आश्रित सादा व सरल जीवन व्यतीत किया करते थे। जीव-जन्तु ही उनके महान शिक्षक थे, क्योंकि जीव-जन्तु सांसारिक समस्याओं और रोगों से मुक्त जीवन व्यतीत करते हैं। प्रकृति उनकी सहायक है। योगी, ऋषि और मुनियों ने पशु-पक्षियों की गतिविधियों पर बड़े ध्यान से विचार कर उनका अनुकरण किया। इस प्रकार वन के जीव-जन्तुओं के अध्ययन से योग की अनेक विधियों का विकास हुआ। इसीलिए अधिकांश योगासनों के नाम जीव-जन्तुओं के नाम पर आधारित हैं। 
           कहा जाता है कि जब योग का प्रचार दुनिया में शुरू हुआ तो इसका पहला प्रचार पश्चिमी देशों में उन लोगों में हुआ जो लोग वैज्ञानिक और ईसाई धर्म को मानने वाले थे। शुरूआत में जब भारत में रहकर ये लोग विदेश वापस गए तो अपने साथ आसन, प्राणायाम लेकर गए। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब ये लोग कैदी हो जाते थे तब इनकी कैदखाने में हालत खस्ता रहती थी। भोजन, पानी, दूषित हवा के कारण किसी को कोलाइटिस, किसी को पेचिश तो किसी को खड़े-खड़े सोने के कारण पीठ की हड्डी में दर्द हो जाया करता था। जब उन्हें वहाँ डाॅक्टरी इलाज से फायदा नहीं मिलता था तो वे उन कैदियों के शरण में जाते थे जो योग जानते थे।  ऐसे में योग के जानकार अपने साथ ही अन्य कैदियों को भी शीर्षासन, सूर्य नमस्कार और उड्डियान बंध अादि द्वारा स्वस्थ रखने का काम करते थे।   कहा जाता है कि दूसरे महायुद्ध में कई लोग ऐसे थे, जिन्होंने जेल खाने में बंदी कैम्पों में योग द्वारा अपने शरीर को सुधारा। इनमें एक डाॅक्टर पोल्डर मैन हाॅलैंड के रहने वाले और दूसरी अॉस्ट्रेलिया की एक महिला रोमाब्लेयर भी थी। यह महिला 15 महीने से अधिक युद्ध बंदियों के बीच रही, जब उसको वहां पीलिया हुअा, तब उसने वहां एक अफ्रीकन व्यक्ति से कुछ आसनों को सीखा और उनका अभ्यास करने से रोगमुक्त  हुई। इस प्रकार अनेक लोगों ने योगाभ्यास द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया।
          ऐसे ही अनेक लोगों के द्वारा जब योग का पता चला तो पश्चिम के लोग चौकें और उन्होंने इस पर अनुसंधान करना शुरू किया। सबसे पहला अनुसंधान बंगाल के प्रख्यात डाॅक्टर दास ने फ्रांस में किया। वे वहां अस्थि रोग विशेषज्ञ थे। उन्होंने लोगों को अनुसंधान करके बताया कि योग की क्रिया करने से उसका असर न केवल मांसपेशियों पर, बल्कि इसका असर हड्डियों पर भी पड़ता है। इसका सीधा अर्थ हुआ कि योग में आसन केवल शारीरिक व्यायाम भर नहीं है।  आज विज्ञान ने मनुष्य को व्यावहारिक जीवन में अनेक तरह की सुख-सुविधाएं प्रदान की हैं, जिससे आज मनुष्य सुविधा भोगी होने से निष्क्रिय और आलसी बनता जा रहा है।  परिणामस्वरूप मनुष्य की जीवन-शैली अप्राकृतिक होने से वह प्रकृति से बहुत दूर चला गया है। इस कारण वह अनेक तरह के कष्टों, दुःखों, कठिनाईयों से घिरता जा रहा है। इन शारीरिक व्याधियों  के अलावा वह मानसिक और आत्मिक रूप से भी रूग्ण होता जा रहा है। उसे शांति नहीं है। अत्यन्त अशांति एवं तनाव में रहने के कारण वह मानसिक रूप से कमजोर होता जा रहा है। कमोवेश यह स्थिति युवाओं और वृद्धों की ही नहीं बल्कि बच्चों की भी है। बच्चों के ऊपर टेलीविजन और कम्प्यूटर, मोबाईल आदि इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों का जबरदस्त प्रभाव है। इस कारण मुख्य रूप से उनकी दृष्टि प्रभावित होने से अनेक तरह के आंखों की व्याधियों से बच्चे ग्रस्त हो जा रहे हैं। 
          मनुष्य कितना ही महत्वाकांक्षी क्यों न हो मगर स्वस्थ मन व शरीर के अभाव में कुछ भी नहीं कर सकता। चाहे खेल का मैदान हो या नौकरी में तरक्की, कुछ कर दिखाने के लिए स्वस्थ रहना पहली प्राथमिकता है। सिद्ध योगियों ने इसका अनुभव किया और आसनों के महत्व पर प्रकाश डाला। पूर्व के मानव मस्तिष्क तथा आधुनिक मानव मस्तिष्क में भले ही थोड़ा-बहुत अंतर क्यों न हो, लेकिन आसन आज भी उतने ही उपयोगी हैं जितने हजारों वर्ष पूर्व, उनके जानने वालों के लिए थे। आज इसकी जागृति हो रही है, क्योंकि थोड़े ही समय में आधुनिक मस्तिष्क भी अपने आधुनिक उपकरणों के प्रयोग को असफल होते देख रहे हैं, जिससे वे योग को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए उचित माध्यम मानने लगे हैं। 
           योग का मुख्य लक्ष्य हमें परम चेतना मार्ग पर ले जाना है, जिससे हमेें अपने अस्तिस्व का ज्ञान हो सके। यदि शरीर रोग ग्रस्त है तो हमें परम चेतना की ओर जाने की इच्छा भी नहीं होगी, क्योंकि शरीर रोग होने से मन पर असर पड़ता है। शरीर में खुजली-दर्द हो तो बेचैन शरीर से बेचैन मन पकड़ में नहीं आता। इसलिए योग द्वारा शरीर को रोग मुक्त करना अत्यन्त आवश्यक है। भारत में योग दर्शन के द्वारा शारीरिक और मानसिक रोगों का निदान बताया गया है। इसमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए योग दर्शन को अपनाने पर बहुत बल दिया गया है। योग दर्शन दैहिक, मानसिक और आत्मिक दुःखों को दूर कर मनुष्य को अरोग्यता प्रदान करता है। सच्चे अर्थ में योगशास्त्र को देह, मन तथा आत्मा का चिकित्सा शास्त्र कहा जाना अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्ति अपने समस्त दुःखों पर विजय पा सकता है।
          प्रायः देखा गया है कि बहुत हिम्मत वाले व्यक्ति भी रोगग्रस्त होने पर हिम्मत हार जाते हैं, क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य की गिरावट से मन कमजोर हो जाता है, लेकिन वही व्यक्ति स्वास्थ्य प्राप्त करने पर पुनः मजबूत बन जाता है।  योग शरीर को चुस्त, स्वस्थ रखने का सबसे आसान माध्यम है। शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक संस्कृति के रूप में योगासनों का इतिहास समय की अनंत गहराईयों में छिपा है। मानव जाति के प्राचीनतम साहित्य वेदों में इनका उल्लेख मिलता है। वेद आध्यात्मिक ज्ञान के भंडार हैं। उनके रचयिता अपने समय के महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे। कुछ लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन हैं।
         आधुनिक युग में योग सारे संसार में जिस तीव्र गति से फैल रहा है वह प्रशंसनीय व स्वागत योग्य है। योग का ज्ञान हर एक की संपत्ति बनता जा रहा है। आज डाॅक्टर और वैज्ञानिक भी योग के माध्यम से स्वस्थ रहने की सलाह दे रहे हैं। यही कारण है कि भारत ही नहीं, अपितु दुनिया भर के लोग यह अनुभव कर रहे हैं कि स्वस्थ जीवन और निरोग रहने के लिए योग सर्वोत्तम माध्यम है।

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अक्सर लोगों द्वारा पूछे जाने वाला सवाल -

योग की आवश्यकता क्यों है?
योग क्या है और क्यों करते हैं?
योग से क्या लाभ होता है?
योग कितने प्रकार के होते हैं?



27 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर आलेख ।

बेनामी ने कहा…

सार्थक,समसामयिक और प्रेरक प्रस्तुति

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

निसन्देह योग विज्ञान आदि विज्ञान है।

Unknown ने कहा…

आज की आवश्यकता है योग ...योग भगाए रोग .....
शानदार सामयिक लेखन

Unknown ने कहा…

योग शरीर को चुस्त, स्वस्थ रखने का सबसे आसान माध्यम है।

तीर-ए-नजर ने कहा…

आज के समय में योग की प्रासंगिकता कहीं ज्यादा है । बढ़िया लेख...

Manoj Kumar ने कहा…

सुन्दर आलेख ।

Dynamic
Computer Science Junction

Harsh Wardhan Jog ने कहा…

सुंदर लेख.
* नियमित योगाभ्यास से शरीर निरोगी रहता है इसमें कोई दो राय नहीं है. * पर योग पीलिया या दूसरी गंभीर बीमारियाँ ठीक कर देगा इसमें मुझे विश्वास नहीं है. * मुझे नहीं मालुम आप योगाभ्यास करती हैं या नहीं. मैं और मेरी पत्नी १७ सालों से नियमित अभ्यास कर रहे हैं पर यदाकदा डॉक्टर से मुलाकात करनी पड़ जाती है. * योग व्यक्ति विशेष की बनावट, gender और मौसम के अनुसार होना चाहिए. शुरूआती ट्रेनिंग किसी जानकार की देखरेख में होनी चाहिए. भीड़ या बड़े शिविर या टीवी से नहीं सिखा जा सकता है और नुक्सान का अंदेशा है. * योगाभ्यास के साथ साथ खानपान पर भी ध्यान देना उतना ही जरूरी है.
धन्यवाद.

Jyoti Dehliwal ने कहा…

आज योग की शक्ति को पुरे विश्व ने माना है। इसीलिए विश्वयोग दिवस मनाया जाता है। सुन्दर आलेख।

जगदानन्द झा ने कहा…

आपने योग के व्यावहारिक पक्ष का उद्धाटन कर ऋषि ऋण से मुक्त होने का सार्थक प्रयास किया है। चरक संहिता के रचयिता पंतज एक ही व्यक्ति थे में टंकण त्रुटि ज्ञात हो रहा है।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

योग के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी......आभार आपका ।

RAJ ने कहा…

अति सुन्दर ...
योग ही जीवन है ........

Surendra Mehra ने कहा…

योग के बारे में आपका यह आर्टिकल बहुत शानदार लगा।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

योग आधुनिक समय के लिए भारत के ऋषि मुनियों की ऐसी देन है जिसको सदियाँ नहीं भुला पाएंगी ... और अब जबकि ये तेजी से विश्व के पटल पर छा रहा है... हर हिन्दुस्तानी के लिए ये गर्व की बात है ... योग के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण और रोचल जानकारी दी है आपने ...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

सारगर्भित आलेख

Himkar Shyam ने कहा…

सार्थक, सामयिक आलेख

जमशेद आज़मी ने कहा…

आवश्‍यक है योग। सुबह उठकर जिन्‍हें योग नहीं करना है, वह कुछ एक्‍सरसाइज ही कर लें तो काम बन जाएगा। पर है तो सब शब्‍दों का फेर ही। बहुत ही सामयिक और सार्थक लेख की प्रस्‍तुति।

iBlogger ने कहा…

कविता जी
नमस्कार iBlogger.in TEAM ने आपका चयन बेस्ट ब्लॉगर ऑफ़ द मंथ के लिए किया है. कृपया हमें मेल करे..
धन्यवाद

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Unknown ने कहा…

aap bahut achaa likhte ho


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Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
JEEWANTIPS ने कहा…

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

Amrita Tanmay ने कहा…

उत्तम आलेख ।

Rewa Tibrewal ने कहा…

सुन्दर आलेख ।

Atoot bandhan ने कहा…

योग के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी आपने कविता जी , आजकल विदेशों में भी योग का व्यापक प्रसार हो रहा है|

Sudha Devrani ने कहा…

योग के बारे में उत्तम जानकारी से भरा ज्ञानवर्धक आलेख ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

जानकारीपूर्ण प्रेरक आलेख।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

आपकी बातें ठीक हैं किन्तु योग शारीरिक व्यायाम तथा प्राणायाम से कहीं अधिक है। गीता में अष्टांग योग का उल्लेख है - 1. यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार, 6. धारणा, 7. ध्यान, 8. समाधि। प्रचारतंत्र के माध्यम से योग को जानने वाले यम, नियम, प्रत्याहार तथा धारणा जैसे योग के अविभाज्य अंगों के विषय में ज्ञान नहीं रखते। वास्तविक योग में देह के साथ-साथ मन एवं आत्मा की शुद्धि भी अन्तर्निहित है।