तम्बाकू सी मोहिनी ..... लम्बे-चौड़े पात - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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रविवार, 31 मई 2020

तम्बाकू सी मोहिनी ..... लम्बे-चौड़े पात

“ तम्बाकू नहीं हमारे पास भैया कैसे कटेगी रात, 
भैया कैसे कटेगी रात, भैया............ 
तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात, 
भैया जिसके लम्बे चौड़े पात....
भैया कैसे कटेगी रात। 
हुक्का करे गुड़-गुड़ चिलम करे चतुराई, 
भैया चिलम करे चतुराई, 
तम्बाकू ऐसा चाहिए भैया 
जिससे रात कट जाई, 
भैया जिससे रात कट जाई" 

सुनाते तो हम बच्चों को बड़ा आनंद आता और हम भी उनके साथ-साथ गुनागुनाते हुए किसी सबक की तरह याद कर लेते। जब कभी हमें शरारत सूझती तो किसी के घर से हुक्का-चिलम उठाकर ले आते और बड़े जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर बारी-बारी गाना सुनाया करते। हम बखूबी जानते कि गांव में तम्बाकू और बीड़ी पीना आम बात है और कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है। इसलिए हम तब तक हुक्का-चिलम लेकर एक खिलाने की तरह उससे खेलते रहते, जब तक कि कोई बड़ा-सयाना आकर हमसे हुक्का-चिलम छीनकर, डांट-डपटकर वहाँ से भगा नहीं लेता।  डांट-डपट से भी हम बच्चों की शरारत यहीं खत्म नहीं हो जाती। कभी हम सभी अलग-अलग घरों में दबे पांव, लुक-छिपकर घुसते हुए वहाँ पड़ी बीड़ी के छोटे-छोटे अधजले टुकड़े बटोर ले आते और फिर उन्हें एक-एक कर जोड़ते हुए एक लम्बी बीड़ी तैयार कर लेते, फिर उसे माचिस से जलाकर बड़े-सयानों की नकल करते हुए बारी-बारी से कस मारने लगे। यदि कोई बच्चा धुंए से परेशान होकर खूं-खूं कर खांसने लगता तो उसे पारी से बाहर कर देते, वह बेचारा मुंह फुलाकर चुपचाप बैठकर करतब देखता रहता। हमारे लिए यह एक सुलभ खेल था, जिसमें हमें  बारी-बारी से अपनी कला प्रदर्शन का सुनहरा अवसर मिलता। कोई नाक से, कोई आंख से तो कोई आकाश में बादलों के छल्ले बनाकर धुएं-धुएं का खेल खेलकर खुश हो लेते  ...........................

13 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

गाँव घरों के ऐसे दृश्य सुनते रहे हैं पापा से।
बाल-सुलभ कौतुक,मधुर स्मृतियाँँ हमारे जीवन की खूबसूरत जमा पूँजी है।
मुझे तम्बाकू का कोई भी रूप बचपन से बेहद नापसंद है।
सेहत और स्वस्थ जीवन का घुन है इसका लत।
तम्बाकू दिवस पर बचपन की याद अच्छी लगी।

विश्वमोहन ने कहा…

सरस संस्मरण पाठक मन को उकेरता हुआ। लेकिन रामलीला का प्रसंग है तो धीरोदात्त भगवान राम से थोड़ा धैर्य उधार ले लेते हैं, वरना बचपन की पोल खुलने का डर है😀

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक संस्मरण।
तम्बाकू निषेध दिवस की शुभकामनाएँ।

Meena sharma ने कहा…

बचपन में किए गए पागलपन पर आज हँसी आती होगी ना...बीड़ी तंबाकू और श्रमजीवी वर्ग का इतना गहरा नाता क्यों है आज तक समझ में नहीं आया!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

गजबे रहा, तंबाखू निषेध दिवस पर बीड़ी और हुक्के का याद आना :)

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुन्दर...मैंने भी बचपन में बीड़ी के टोटों से काफी खेल खेले हैं... अब याद करता हूँ तो हँसी आती है....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छा संस्मरण ...
कई यादें बचपन की रह जाती हैं मन में और हमेशा ताज़ा रहती अहिं ... फिर राम लीलाओं के प्रसंग तो बहुत दिलचस्प ही होते हैं ...

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत अच्छा मजेदार संस्मरण....।

Jyoti khare ने कहा…

बहुत सुंदर संस्मरण
मैंने कई बार बीड़ी की अध्धी से तम्बाखू निकालर खायी है

~Sudha Singh vyaghr~ ने कहा…

मजेदार संस्मरण👌👌🏼

Rakesh ने कहा…

बिलकुल सत्य तम्बाकू जानलेवा है फिर भी ग्रामीण संस्कृति में रचा बसा हे
सुन्दर संस्मरण

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

तम्बाकू ऐसी मोहिनी जिसके लम्बे-चौड़े पात,


मैं हिमाचल एक बहुत छोटे गांव से हूँ, बड़ों को अकसर अपने हुक्के के साथ बैठे , चलते घूमते देखा हैं उसकी गुड़गड़ू और उसकी इक अलग सी महक अभी तक मानसपटल में बसी है

कभी हम बच्चों के हाथ लगता तो हम पिने का नाटक करते , बड़ों की नकल उतारते

जानलेवा है मगर उनके लिए तो सच में मोहिनी ही है

अपने गांव और बचपन की याद तरोताज़ा हो गयी आपका लेख पढ़ कर



बहुत बहुत बधाई