न लालच, गुस्सा न शिकायतएक समभाव वाला जीव वह
भारी मेहनत करने के बाद भी
रूखा, सूखा खाकर खुश रहता है
दुनिया भर का अत्याचार सहता है
जुग-जुग से लोगों की सेवा करता है
भला करके भी बुरा बनता है
संत ऋषि विद्वानों से कम नहीं वह
तभी तो ज्ञानी ध्यानी भी कई लोगों को
उसकी संज्ञा देकर सम्मानित कर देते हैं
स्वभाव उसका इतना सरल कि
मेहनत करे वह और मौज करें दूसरे
वह मान सम्मान के लिए कभी नहीं मरता
वह मरता है तो सिर्फ काम के लिए
यदि मान सम्मान के लिए मरता तो
आज उसका भी एक बड़ा नाम होता
उसका परिचय वेद पुराण उपनिषद से लेकर
बाइबिल, कुरान सब जगह सहज मिलता है
बावजूद कभी सम्मान का हकदार न बन पाया
उल्टा किसी को नीचे गिराना हो
नीचा दिखाना हो या खीझ उतारनी हो
बेहिचक उसकी संज्ञा दे दी जाती है
उसके जैसा काम बड़े से बड़े
महंगे घोड़े भी नहीं कर सकते
कारण उनमें वैसा आत्मविश्वास नहीं मिलता
वे खीझ सकते हैं, चौंक सकते हैं
उनकी याददाश्त जवाब दे सकती है
वे रास्ता भटक सकते हैं
पर वह भारी काम करने
दुनिया भर का बोझ उठाने
और अत्याचार सहने के बाद भी
सदियों से न खीझा, चौंका न रास्ता भटका है
वह आदमी की तरह कानों का कच्चा भी नहीं
वह मीलों दूर से भी अपने लोगों की बातें
साफ-साफ, सुन-समझ लेता है
जिंदगी के कठिन राहों में अच्छे-खासे लोग भी
रास्ता भूल जाते हैं, भटक जाते हैं
लेकिन एक वही है जो कई वर्ष बाद भी
न अपना रास्ता भूलता न भटकता है
वह घोड़ों की तरह चढ़ाई चढ़नेे के बाद
सरपट भागने वालों में भी नहीं होता
हाँ, एक बात जरूर खटकती है उसकी
वह कभी-कभी ढ़ीठ बन जाता है
जल्दी किसी पर विश्वास नहीं कर पाता
पर जब किसी पर विश्वास कर लेता है
तो आखिरी सांस तक उसे निभाता है
आज इसका कल उसका स्वभाव नहींवह हरदम कर्मठ, समर्पित, सीधे शांत भाव से
सदा ही अपना काम करने वालों में से है
भले ही उसके भाग्य में न अश्वमेघ यज्ञ
और न गौ न नाग-पूजा जैसा कुछ लिखा रहा
लेकिन मतलबी दुनिया में जब-जब उसका दिन आया
तब-तब उसे मतलब के लिए सबने अपना बाप बनाया
...कविता रावत
रविवार, 21 मार्च 2021
मतलबी दुनिया में एक दिन सबका आता है
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मैं शैल-शिला, नदिका, पुण्यस्थल, देवभूमि उत्तराखंड की संतति, प्रकृति की धरोहर ताल-तलैयों, शैल-शिखरों की सुरम्य नगरी भोपाल मध्यप्रदेश में निवासरत हूँ। मैंने बरकतउल्ला विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है। वर्तमान में स्कूल शिक्षा विभाग, भोपाल में कर्मरत हूँ। भोपाल गैस त्रासदी की मार झेलने वाले हजारों में से एक हूँ। ऐसी विषम परिस्थितियों में मेरे अंदर उमड़ी संवेदना से लेखन की शुरुआत हुई, शायद इसीलिए मैं आज आम आदमी के दुःख-दर्द, ख़ुशी-गम को अपने करीब ही पाती हूँ, जैसे वे मेरे अपने ही हैं। ब्लॉग मेरे लिए एक ऐसा सामाजिक मंच है जहाँ मैं अपने आपको एक विश्वव्यापी परिवार के सदस्य के रूप में देख पा रही हूँ, जिस पर अपने मन/दिल में उमड़ते-घुमड़ते खट्टे-मीठे, अनुभवों व विचारों को बांट पाने में समर्थ हो पा रही हूँ।
14 टिप्पणियां:
आपने जो कहा, वह अक्षरशः सत्य है कविता जी ।
गर्दभ महिमा अपरंपार
वा व्व कविता दी, गर्दभ की भी ऐसी महिमा बताई जा सकती है! बहुत सुंदर।
लाजवाब,सारगर्भित कविता। उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
वाह!,कविता जी ,क्या बात है ,बेहतरीन .
इंसान अपने स्वार्थ में न जाने क्या क्या कर बैठता ।। सटीक व्यंग्य । सबके दिन आते , इसका भी आता
वाह ! गदर्भराज के बारे में समुचित जानकारी
बहुत सुन्दर।
गहन अभिव्यक्ति।
बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
बेहतरीन , सारगर्भित रचना जी ।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
बिलकुल सच .... जो चित्र आपने खींचा है वो सहज ही उसकी और ले जाता है ... और समय देखिये, इतना कुछ करके भी उसको उचित मान नहीं मिलता ... शायद मानदंड बदल गए हैं आज ...
बिलकुल सच....भावो को बिम्बो के माध्यम से सहेजा है सुन्दर प्रस्तुति।
nice blog
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