विविधता में एकता हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है। यह विश्व में सबसे प्राचीन सभ्यता का एक ऐसा जाना-माना देश है, जहाँ पुरातन काल से ही कई प्रजातीय समूह साथ-साथ रहते आये हैं। यहाँ 'लघु भारत' के रूप में कन्याकुमारी से लेकर जम्मू-कश्मीर तक निवासरत लोग अलग-अलग भेष-भूषा, भाषा-बोली, परंपरा, धर्मानुयायी होने के बावजूद भी दूर-दूर रहते हुए भी एक-दूसरे जुड़े हुए हैं। संस्कृति को मानवीय आदर्शों, मूल्यों, स्थापनाओं एवं मान्यताओं का समूह माना जाता है। संस्कृति किसी भी देश, समाज या जाति की अंतरात्मा होती है। इसके द्वारा ही उसके समस्त संस्कारोँ का बोध होता है। संस्कृति ही हमें पशुओं से भिन्न करती है और उनसे ऊँचे स्तर पर ले जाती है। हमारी भारतीय संस्कृति की इसी विविधता में एकता की पहचान को झीलों की नगरी में सुरम्य श्यामला हिल्स की पहाड़ियों के बीच स्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लोक शिक्षण संस्थान भोपाल द्वारा तीन दिवसीय (17-19 दिसंबर 2022) बालरंग महोत्सव का आयोजन कर साकार किया गया। जहाँ हमें देश के 16 राज्योँ- मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और एक केंद्रशासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली के शासकीय विद्यालयों के लगभग 10 हज़ार छात्र-छात्राओं द्वारा राष्ट्रीय लोकनृत्य प्रतियोगिता के अंतर्गत अपने राज्योँ की लोक संस्कृतियोँ की रंगारंग प्रस्तुतियाँ देखने को मिली। इस प्रतियोगिता में लोक संस्कृतियोँ की मंच पर रंगारंग प्रस्तुतियाँ तो हरेक व्यक्ति ने देखी होगी और उसकी सराहना भी की होगी। लेकिन इसके दूसरे भाग में भोपाल स्थित शासकीय विद्यालयों के छात्राओं द्वारा बड़ी मेहनत,लगन और सुन्दर ढंग से जो 'लघु भारत प्रदर्शनी' का प्रदर्शन किया गया था, उसे शायद ही सभी लोगों ने गंभीर होकर देखा होगा। यह बात हमने उन कलाकार बच्चों से जानी, जिन्होंने इस लघु भारत प्रदर्शनी में अलग-अलग राज्योँ की लोक संस्कृति को करीब से समझने-जानने के लिए मॉडल तैयार किये थे, जो अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बड़े ही उत्सुक होकर कला प्रशंसकों की प्रतीक्षा करते नज़र आ रहे थे।
घर-दफ्तर की भागमभाग के बीच उलझती-सुलझती जिंदगी से दूर जब हमने स्कूली बच्चों द्वारा निर्मित इस 'लघु भारत प्रदर्शनी' को करीब से देखा और उनसे इस बारे में बातें की तो मन को बड़ा सुकून मिला। 'लघु भारत प्रदर्शनी' के द्वार से प्रवेश करते ही भारत माता का फूलों से सजाया मानचित्र और उसके चारों ओर टिमटिमाते दीपक हमारी सृष्टि के आदि से चली आ रही गरिमामयी सांस्कृतिक एकता की विशेषता का बखान करते दिखे तो मन रोशन हो उठा। सोचने लगी इसी विशेषता के चलते हमारी भारतीय संस्कृति विश्व प्रांगण में उन्नत मस्तक किए हैं। रोम हो या मिश्र या बेवीलोनिया या फिर यूनान की संस्कृतियाँ, ये सभी काल के कराल थपेड़ों से नष्ट हो गईं, लेकिन हमारी संस्कृति काल के अनेक थेपेड़े खाकर भी आज भी अपने आदि स्वरूप में जीवित है। ऐसे में मुहम्मद इक़बाल की पंक्तियाँ याद आयी कि-
“सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा।।
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।।
यहाँ विभिन्न स्कूली छात्र और अध्यापकों द्वारा अलग-अलग राज्योँ की संस्कृति को मॉडलों के रूप में अलग-अलग पंडाल में प्रदर्शित किया गया था। इन पंडालों में छात्रों द्वारा बड़ी कुशलता से अपनी भरपूर ऊर्जा शक्ति से बनाये गए मॉडल सजा के रखे थे, जो रोमांचकारी और मंत्रमुग्ध कर देने वाले थे। यहाँ एक ओर सम्बंधित राज्य का खान- पान, जीवन शैली और प्रगति के कई आयामों को दर्शाने वाले मॉडल दिमाग की सारी खिड़कियां खोलकर धूम मचा रहे थे तो दूसरी ओर उनकी प्राचीन संस्कृति के दर्शाने वाले विविध वस्तुओं के सुन्दर और आकर्षक मॉडल सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने में किसी से पीछे न थे। यहाँ हमें देश के अलग-अलग राज्योँ की संस्कृति के आकर्षक मॉडल को एक जगह हर पंडाल में जाकर देखना-समझना एक अविस्मरणीय सुखद अनुभव रहा।
आप भी विविधता में एकता दर्शाती ऐसी प्रदर्शनी या आयोजनों में जाकर कलाकारों को प्रोत्साहित करके देखिए, उनका उत्साहवर्धन कीजिये। मैं समझती हूँ इससे उन्हें ही नहीं, अपितु आपको भी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में दो पल सुकून के निश्चित रूप से मिल जायेंगे।
अब आप भी हमारे साथ "लघु भारत प्रदर्शनी" की झलक देखिये और अपने विचार व्यक्त करना न भूलिए।
...कविता रावत