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अपने चौहत्तर साल के जीवन में मैंने यह देखा है कि गद्य-पद्य में रचनाधर्मी बहुत लम्बे समय से सृजन कर रहे हैं। लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं जो लोकोक्तियों की रचना में आज भी संलग्न हैं। "लोकोक्तियों की कविता" मेरे विचार से एक नया प्रयोग है। जिसे कवयित्री कविता रावत ने मूर्तरूप दिया है।
मेरा यह मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक रचनाकार छिपा होता है। जो अपनी रुचियों के अनुसार गद्य-पद्य की रचना करता है। लेकिन लोकोक्तियों से कविता की रचना करना एक दुष्कर कार्य होता है। लोकोक्तियों की रचना करने वाले विशिष्ट व्यक्तियों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोग अक्सर सन्त-महात्मा ही होते हैं। अपने गृहस्थ जीवन का निर्वहन करते हुए लोकोक्तियों में कविता का सृजन कर रही कविता रावत का यह अपने आप में एक विलक्षण कार्य है।
कई बार मैंने इस कृति पर कुछ लिखने का मन बनाया। परन्तु अपने निजी कार्यों की उलझन के कारण आज जब अपना जी-मेल खोलकर देखा तो “लोकोक्तियों में कविता” के बारे में कुछ लिखने के लिए मेरी अंगुलियाँ कम्प्यूटर के की बोर्ड पर चलनें लगी।
विदूषी कवयित्री की लेखनी जीवनोपयोगी लोकोक्तियों में कविता लिखने में आज भी गतिमान है। जिसका स्वतः प्रमाण उनकी सद्यः प्रकाशित होने वाली यह कृति है।
“लोकोक्तियों में कविता” में अपने नाम के अनुरूप ही सकारात्मक और अर्थपूर्ण जीवन सूत्रों का एक शब्दकोश है। उदाहरण के लिए यहाँ मैं कवयित्री कविता रावत जी की कविताओं को उद्धृत कर रहा हूँ-
इस संकलन की पहली कविता में डरपोक कुत्तों के मनोविज्ञान को बहुत कुशलता से उद्धृत किया गया है-
"मुर्गा अपने दड़बे पर बड़ा दिलेर होता है।
अपनी गली का कुत्ता भी शेर होता है।।
दुष्ट लोग क्षमा नहीं दंड के भागी होते हैं।
लातों के भूत कभी बातों से नहीं मानते हैं।।
हज़ार कौओं को भगाने हेतु एक पत्थर बहुत है।
सैकड़ों गीदड़ों के लिए एक शेर ही ग़नीमत है।।
बुराई को सिर उठाते ही कुचल देना चाहिए।
चोर पकड़ने के लिए चोर लगाना चाहिए।।
कायर भेड़िए की खाल में मिलते हैं।
डरपोक कुत्ते सबसे तेज़ भौंकते हैं।
एक अन्य कविता में कवयित्री कहती है-
"लुहार बूढ़ा हुआ तो लोहे को कड़ा बताने लगा।।
जिसका मुँह टेढ़ा हो आइने को तमाचा मारता है।
कायर सिपाही हमेशा हथियार को कोसता है।।
जो लिखना नहीं जानता वह कलम को खराब बताता है।
भेड़िए को मेमना पकड़ने का कारण मिल ही जाता है।।
कायर सदा अपने आप को सावधान कहता है।
कंजूस अपने आप को मितव्ययी बताता है।।"
संकलन की एक और रचना भी देखिए-
"बहुत बार प्याला होठों तक आते-आते हाथ से छूट जाता है।।
पास का खुरदरा पत्थर दूर चिकने पत्थर से अच्छा होता है।।
एक छोटा उपहार कसी वचन से बड़ा होता है।
कल की मुर्गी से आज का अंडा भला होता है।।"
इसी मिजाज की एक और उपयोगी रचना देखिए-
"स्वतंत्रता का अर्थ खुली छूट नहीं होती है।
अत्यिधक स्वतंत्रता सब कुछ चौपट करती है।।
लोहा हो या रेशम दोनों बंधन एक जैसे होते हैं।
फायदे अक्सर आदमी को गुलाम बना देते हैं।।"
संकलन की सभी रचनाएँ नीति के श्लोंकों से कम नहीं हैं। देखिए यह रचना-
"काला कौआ पालोगे तो वह चोंच मारकर
तुम्हारी आँख फोड़ देगा।
सांप को कितना भी दूध पिला दो
फिर भी वह डसना नहीं भूलता।।
गुरु की विद्या उन्हीं पर चला देने वाले बहुतेरे मिलते हैं।
गोद में बैठकर आँख में उँगली करने वाले भी रहते हैं।।"
धैर्य के महत्व को दर्शाती एक और रचना भी देखिए-
"धैर्य से विपत्ति को भी वश में किया जा सकता है।।
उतावलापन बड़े-बड़े मंसूबों को चौपट कर देता है।
लोहा आग में तपकर ही फौलाद बन पाता है।
धैर्य कड़ुआ लेकिन इसका फल मीठा होता है।।"
वैसे तो इस संकलन की सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं किन्तु यह रचना भी बहुत उपयोगी है-
"जो नहर पार नहीं कर सकता
वह समुद्र क्या पार करेगा?
जो सीढ़ी नहीं चढ़ सकता
वह भला पहाड़ पर क्या चढ़ेगा?"
इस प्रकार हम देखते हैं कि कवयित्री कविता रावत ने अपनी कृति “लोकोक्तियों में कविता” में मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ प्राकृतिक उपादानों को भी अपनी रचना का विषय बनाया है।
मुझे पूरा विश्वास है कि कवयित्री की अनमोल मोतियों से सुसज्जित कृति “लोकोक्तियों में कविता" को पढ़कर सभी वर्गों के पाठक लाभान्वित होंगे तथा समीक्षकों की दृष्टि से भी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
मोबाइल-7906360576, 7906295141
2 टिप्पणियां:
बहुत-बहुत बधाई हो आपको।
"लोकोक्तियों में कविता" बहुत सुंदर सराहनीय समीक्षा प्रस्तुति । आदरणीय शास्त्री जी और कविता रावत जी को बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
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